Sunday, November 3, 2024
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देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून बने

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हाल हीं में बजट सत्र के दौरान संसद में भाजपा सांसद द्वारा बढ़ती जनसंख्या के विषय में चिंता जाहिर की गई। सांसद के तरफ से यह कहा गया कि देश में आज बढ़ती जनसंख्या सभी समस्याओं का मूल जड़ है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भी जनसंख्या विस्फोट के बारे में पहले ही चिंता जताई गयी थी, लेकिन भारत में राजनीतिक वोट बैंक के कारण इस गंभीर समस्या को नजरंदाज किया जाता रहा है। राज नेता इसे सांप्रदायिक मुद्दा कहकर बचने की भरपूर कोशिश करते हैं। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश में बढ़ती जनसंख्या वर्तमान में सारी समस्याओं से ज्यादा खतरनाक है।

देश की हर गली, हर नुक्कड़, हर चौराहा आज बढ़ती आबादी का प्रत्यक्ष उदाहरण बन गया है। बस स्टॉप, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, अस्पताल ऑर मंदिर जैसे सार्वजनिक जगहों पर भारी भीड़ आसानी से देखी जा सकती है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि साल 2025 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ देगा ऑर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जायेगा। हमने आज मृत्यु दर पर तो सफलतापूर्वक नियंत्रण पा लिया है, परंतु जन्म दर को नियंत्रित करने में नाकामयाब रहे हैं। यदि जनसंख्या में इसी दर से वृद्धि होना जारी रहा, तो अब से कुछ वर्षों के बाद हमारे पास बेरोजगार, भूखे एवं निराश व्यक्तियों की एक फौज खड़ी हो जाएगी जो देश की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रणालियों और संस्थाओं की जड़ों को हिला कर रख देगी। सभी मांगों का एक संख्यात्मक आयाम होता है। चाहे स्वास्थ, शिक्षा, आवास, नियोजन, जलापूर्ति अथवा अन्य क्षेत्र यह एक सवाल है कि कितनों के लिए?

भारत ऐसा देश था, जिसने सन 1950 के दशक में एक सरकार –समर्थित परिवार नियोजन कार्यक्रम को विकसित किया था। इन्डोनेशिया, थाईलैंड तथा दक्षिण कोरिया जैसे विकासशील देशों, जिन्होंने इनका अनुसरण किया, के द्वारा सफलतापूर्वक अपनी जनसंख्या को स्थिर कर लिया है किन्तु 70 वर्षों के बाद भारत अभी भी सबसे पीछे चल रहा है। भारत ने अनेक कार्यकर्मों के माध्यम से  लोगों को जागृत करने की भरपूर कोशिश की गई ऑर उसमें करोड़ो रुपए खर्च भी हुए परंतु  जनसंख्या वृद्धि में रोक लगाने में हम सक्षम नहीं हो सके।

दुनिया में वियतनाम पहला देश था जो वर्ष 1960 में ही, सबसे पहले दो बच्चों की नीति पर कानून बनाया था। इसके बाद वर्ष 1970 के साल में ही सिंगापुर में स्टॉप एट टू पॉलिसी शुरू की गयी थी। दो बच्चों से अधिक पैदा करने वाले परिवारों को सरकार द्वारा दिये गए लाभों से वंचित करने का आदेश सुना दिया गया था। 1970 में ब्रिटिश शासन में हांगकांग में यह कानून लागू किया गया था, लेकिन तब इसे अनिवार्य नहीं किया गया था। 2012 में ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी दो बच्चों की नीति लेकर आई थी जिसके तहत सरकार ने परिवार के पहले दो बच्चों को ही लाभ देने का घोषणा किया था। इस्लामिक देश ईरान में भी 1990 से 2016 के समय दो बच्चों की नीति को प्रोत्साहित करने के लिए अभियान चलाया गया था। वर्ष 2016 में चीन द्वारा दो बच्चों के कानून को प्रभावी रूप से लागू किया गया। जनसंख्या नियंत्रण कानून के इतने उदाहरण सामने होने के बाद भी भारत अभी तक जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने में असमर्थ है।

इन्दिरा गांधी शासन काल के दौरान संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण अभियान तो शुरू किया लेकिन लोगों की जबरन नसबंदी और महिलाओं की जबरन नलबंदी या प्रलोभन देकर किए गए आपरेशनों ने इतना जन आक्रोश फैला कि जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा आपातकाल के अत्याचारों के शोर में ही समा गई। भारत में मुस्लिम वोटरों के नाराज होने के चक्कर में केंद्र की कांग्रेस सरकार हिम्मत न कर सकी। जब भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की आवाज उठी तो उसे धर्म के साथ जोड़ा गया है। जनसंख्या नियंत्रण एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। विगत कुछ दशकों की राजनीति अनिश्चिता तथा सांप्रदायिक उन्माद के मध्य जनसंख्या विस्फोट की समस्या को पृष्ठभूमि में ढकेल दिया गया है। न राजनीतिक दल अथवा सरकारें उस समस्या पर ध्यान केन्द्रित किए जाने को आवश्यक समझते हुए प्रतीत होते हैं। इस तथ्य पर विद्वानों द्वारा किए गए अध्ययनों एवं विचारों की कोई कमी नहीं है, कि भारत आर्थिक एवं मानवीय विकास की दौड़ में मुख्य रूप से इसलिए पिछड़ रहा है, क्योंकि यह अपनी जनसंख्या की वृद्धि को सीमित करने में बहुत अधिक प्रगति का प्रदर्शन नहीं कर सका है।

जनसंख्या नियंत्रण कानून का उद्देश्य न केवल व्यक्तियों की संख्या की अनियंत्रित वृद्धि (जनसंख्या विस्फोट) पर नियंत्रण करना होना चाहिए, बल्कि जनसंख्या के अनियंत्रित आवागमन को रोका जाना शहरी क्षेत्रों में लोगों के बढ़ते केन्द्रीकरण को रोका जाना, तथा जनता के पर्याप्त आवास स्थान एवं स्वस्थ पर्यावरण भी करवाया जाना होना चाहिए। देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता है। हमें समाज में जागृति लानी होगी। इसमें कुछ मुश्किलें जैसे– धर्म या सामाजिक परम्पराओं  के आधार पर विरोध का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन हर हाल में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू होना चाहिए।                                                

ज्योति रंजन पाठक (औथर )–‘चंचला ‘ उपन्यास

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