वो छत्रपति थे, वो पौरुष का अंतिम अध्याय थे, संस्कारों की पावन मूरत, महिला सम्मान उनके रक्त में बहता था, वो नौसेना कमांडर थे, वो शक्तिशाली को पानी पिलाकर मारना जानते थे, मातृभूमि के लिए जान देना नहीं अपितु जान लेना उन्हें आता था, वो संस्कारों से सिंचित एक ऐसा वटवृक्ष थे, जिसकी भुजाओं की गर्मी से औरंगज़ेब जैसे बादशाहों का सिंहासन डोल उठा था, वो महानतम योद्धा परम आदरणीय छत्रपति शिवजी महाराज थे। नमन कीजिये उस रोल मॉडल को जिन्होंने उस समय के युवाओं को मात्र प्रेरित ही नहीं अपितु जीवन जीने का कारण स्पष्ट कर दिया, सोये हुए गौरव को ऐसा जगाया की उनके देहावसान के तीन सौ वर्षों बाद भी उनका नाम भारत माता के सबसे लाडले सपूत के रूप में अज़र अमर हो गया। कल यानि 19 फरवरी 1627 को उनका देहावसान हुआ था। आज भी पूरे देश में और विशेष रूप से महाराष्ट्र में उन्हें महसूस किया जाता है। एक विशाल व्यक्तित्व और उससे भी बढ़कर विचार बन चुके आदरणीय छत्रपति शिवजी महाराज को आइये याद करें इस अवसर पर और जाने उनके बारे में।
लालन पालन में माँ की भूमिका
माता जीजाबाई की संस्कारयुक्त शिक्षा बाल शिवा पर सकारात्मक प्रभाव डालने लगी थी। रामायण और महाभारत के ज्ञान के साथ पौरुष और नेतृत्व क्षमता दिखने लगी जब उनके पिताजी की दी हुई छोटी सी रियासत से हुई शुरुआत को उन्होंने एक मराठा साम्राज्य का गठन कर दिया। ये माता जीजाबाई की ही शिक्षाओं का असर था जो उन्होंने युद्ध में एक बार बंदी बना कर लाई गई महिलाओं को ससम्मान न सिर्फ वापस भेजा अपितु जिम्मेदार लोगों को दंडित भी किया गया।
धार्मिक किन्तु धर्मनिरपेक्ष
धर्मनिरपेक्षता उनकी एक ऐसी विशेषता थी जिसने उन्हें सर्वमान्य नेता के रूप में मान्यता दी। उनकी सेना में पैंसठ हजार से अधिक मुस्लिम सैनिक थे और हिन्दू पादशाही की स्थापना करने के साथ साथ उनके राज्य में रहने वाले मुस्लिम लोगों को हिन्दुओ के सामान धार्मिक अधिकार प्राप्त थे।
आधुनिक नौसेना के जनक
शिवाजी महाराज न सिर्फ दूरदृष्टा थे, अपितु आधुनिकता की सैन्य अभियानों में आवश्यकता को भी समझते थे। उन्हें नौसेना की स्थापना का श्रेय दिया जाता है, भारत में उस समय उन्होंने सबसे पहले नौसेना की स्थापना की और कई किले बनवाये जिससे शत्रु से राज्य की रक्षा की जा सके।
महिला सम्मान के असली पुरोधा
एक सभ्य समाज के नेतृत्व में जिन गुणों को हम आज परिलक्षित करना चाहते हैं, शिवाजी महाराज में वो सभी उस समय थे। अपने समय से बहुत आगे की सोच रखने वाले शिवाजी महाराज ने अपने राज्य में सभी को महिलाओं का सम्मान करने और शत्रु समाज की महिलाओं से भी दुर्व्यवहार न करने का आदेश दिया हुआ था। एक बार एक मुग़ल सूबेदार की बहु को उनका एक सैनिक इसलिए पकड़ लाया कि महाराज उससे खुश होंगे। लेकिन हुआ उल्टा। महाराज ने उस महिला को सम्मानपूर्वक वापस लौटा उस सैनिक को दण्डित किया। इस प्रकार एक आदर्श समाज की व्यवस्था के जनक थे छत्रपति शिवाजी महाराज।
गुरिल्ला युद्ध के जनक
शिवाजी महाराज अपने क्षेत्र के कण कण से परिचित थे। पहाड़ और पठार उनके प्रिय सखा थे। कहाँ से अचानक आकर हमला बोलना और गायब हो जाना उनकी विशेषता थी। वो अपने क्षेत्र के इस प्रेम के कारण ही गुरिल्ला युद्ध कर बच निकलते थे और मुग़ल हाथ मलते रह जाते थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज अप्रतिम योद्धा, कुशल रणनीतिकार और सामाजिक रूप से वसुधैव कुटुंबकम के प्रणेता थे। उनकी महान सोच और उनकी दूरदृष्टि ने मराठा साम्राज्य की नींव डाली जिसने संख्या में कम होने के बाद भी दक्कन में निज़ाम और उत्तर में मुगलों को लालकिले ही हद तक सीमित कर दिया था। आगरे की किले से बचकर निकलना हो या खुदसे बहुत बड़े दैत्याकार अफ़ज़ल खान का वध, उन्होंने अपने कृत्यों से हमेशा सिखाया है की विपत्ति चाहे मुगलो की फौज के समान असीमित हो या अफ़ज़ल खान जैसे दैत्याकार दानव सरीखी विशाल – आपकी विजय निश्चित है यदि आपमें हौसला, साहस और विवेक है और आप कर्मशील हैं।
कोटि कोटि नमन! जय शिवाजी!