Friday, April 26, 2024
HomeHindiषड्यंत्र (सत्ता के लिये)

षड्यंत्र (सत्ता के लिये)

Also Read

baatkadavihai
baatkadavihai
i am A writer, A poet, A lawyer. basically from rajasthan.

इस षड्यंत्र की शुरुआत हुई 2014 से। जब देश को अपने बापों की जागीर समझने वाले राजनीतिक घरानों और सबसे महत्वपूर्ण उन राजनीतिक घरानों पर अपनी वोट की एकता का दबाव डालने वाले तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय और उन अल्पसंख्यकों को राजनीति संरक्षण देने के लिये सत्ताधारी राजनीतिक घरानों को धन देने वाली विदेशी ताक़तों को एक अप्रत्याशित (unexpected) झटका लगा।

2014 तक जहाँ सभी सत्ताधारी राजनीतिक दल और सत्ता में आने की येन केन प्रकारेण प्रयास में लगे राजनीतिक दल ये मान चुके थे, और जो उनके दिलों दिमाग़ में आज तक बसा है की देश में राष्ट्रीय या राज्जीय सत्ता पाने का रास्ता विशिष्ट अल्पसंखयक समुदाय की ही गलियों से होकर गुज़रता है हालाँकि उन राजनीतिक दलों ने उन गलियों को भी कभी विकसित नहीं किया क्यूँ की वो उन गलियों में बहुसंख्यक के भूत का डर दिखा कर अपनी सत्ता की कुर्सियों को मज़बूत किये बैठे थे और उन्हें यक़ीन था की जो बहुसंख्यक समुदाय हज़ारों सालों से मूलतः इसी देश का निवासी होने के बावजूद अपने ही घर में बाहरी आक्रमणकरियों के अन्याय, आतंक, अराजकता और अपमान को सहन किए जाता रहा है वो कभी सर उठाने की जुर्रत नहीं करेगा।

लेकिन जहाँ एक ओर लगभग एक दशक से इस बहुसंख्यक डरे, सोये कमज़ोर समुदाय को एक आशा की किरण दिखने लगी थी वहीं दूसरी ओर सत्ता को अपनी विरासत समझने वाले राजनीतिक दल लूट खसोट और भ्रष्टाचार की सारी सीमाएँ पार कर चुके थे और इतने भ्रष्टाचारों के बावजूद भी उन्होंने सत्ता में वापस आने के लिए तथाकथित अल्पसंख्यकों को लुभा कर वोट पाने के लिये राष्ट्र विरोधी और बहुसंख्यक विनाशी अल्पसंख्यक क़ानून बनाने की घोषणा कर और देश के संसाधनों पर पहला हक़ सिर्फ़ अल्पसंख्यक का है बोल कर अल्पसंख्यक वोट को निश्चित कर सत्ता में वापस आने की अपनी कुटिल चाल चल दी।

लेकिन उन सबकी उमीदों के विपरीत हज़ारों सालों से प्रताड़ित डरे सोये बहुसंख्यक समुदाय ने अपने अस्तित्व को समाप्त होने से बचाने के लिए एकजुटता के साथ वोट देकर बहुमत से देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने को सत्ता से उखाड़ फ़ेक अपने होने का एहसास दुनिया और बाक़ी राजनीतिक दलों को करवाया।

सत्ता तो बदल चुकी थी किन्तु इसमें इतनी देर हो गयी थी की एक राजनीतिक दल को छोड़ कर लगभग सभी राजनीतिक दल ख़ासकर राजनीतिक घरानों वाले दल तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय, विदेशी ताक़तों और खुद के भ्रष्टाचार के कुकर्मों के इतने दबाव में आ चुके थे की वो ये मानने को ही तैयार नहीं थे की बहुसंख्यक एकजुट होकर सत्ता बदल सकता है।

जिसका परिणाम ये हुआ की एक के बाद एक राज्यों में भी राजनीतिक घरानों की सत्ताएँ जाने लगी। लेकिन जब तक इन राजनीतिक घरानों वाले दलों और भ्रष्टाचारी राजनेताओं को बहुसंख्यकों की वोट शक्ति का एहसास हुआ तब तक बहुसंख्यक इनके कपटी राजनीति इरादों की पहुँच से दूर वास्तविक उदारवादी एवं राष्ट्रवादी सोच की ढाल के संरक्षण में आ चुका था।

सत्ता के लालची सभी छोटे बड़े दलों और भ्रष्ट नेताओं की सत्ता में वापस आने की छटपटाहट इतनी बढ़ चुकी थी की वे सभी नेता और दल कभी मन्दिरों में माथा टेक तो कभी कपड़ों के ऊपर जेनऊ पहन उस बहुसंख्यक वर्ग को लुभाने का असफल प्रयास करने लगे जिस बहुसंख्यक को इन्होंने भगवा आतंकी और मंदिरों में लड़कियाँ छेड़ने वाला बता कर मंदिरों तक का अपमान किया था।

देश में नयी सत्ता के आने और उसके कामों से प्रभावित होकर और कुटिल राजनीतिक दलों एवं नेताओं द्वारा सत्ता प्राप्ति के लिए तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग की अनदेखी किये जाने दुखी होकर तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग का एक हिस्सा नई सरकार के समर्थन में आने लगा।

ये होता देख सभी देश विरोधी देशी और विदेशी ताक़तें और सत्ता के पिपासु भ्रष्ट और घरानों वाले राजनीतिक दल सब मिल कर अंग्रेज़ों के फूट डालो राज करो की नीति को देश में बढ़ती इस एकता को तोड़ने के लिए प्रयोग में लाने लगे और उन्होंने उसका पहला कदम उठाया 2015 में भीम आर्मी नामक ज़हर बना कर जो की बहुसंख्यक वर्ग के दलित हिस्से को बरगला कर एकजुट हुए बहुसंख्यक वर्ग को दलितों और सवर्णों में बटाने लगा।
फिर उनको मौक़ा मिला 370 हटने और राम मंदिर निर्माण के निर्णय पर तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग के उस हिस्से को तोड़ कर बहुसंख्यक विरोधी बनाने का को जो की नयी सत्ता के समर्थन में आकर मुख्यधारा में जुड़ने लगा था अन्ततः उनका ये प्रयास सफल हुआ CAA क़ानून के नाम पर झूँठ के आंदोलन को दिल्ली में ख़ूनी दंगों में बदल लगभग पूरे अल्पसंख्यक वर्ग को वापस बहुसंख्यक विरोधी बना कर।

जिसका परिणाम हमें करोना के लॉकडाउन के दौरान पूरे देश में तथाकथित वर्ग द्वारा डाक्टरों और सुरक्षा कर्मियों पर हुए हमलों और सब्ज़ियों फलों को संक्रमित करने की घृणित हरकतों में देखने को मिला।

फिर उनको मौक़ा मिला नये किसान क़ानूनों के नाम पर हज़ारों वर्षों से रही बहुसंख्यक वर्ग की मज़बूत ढाल को तोड़ने की। जिसकी नीव उन्होंने डाली पंजाब के किसानों को भड़का कर किसान आंदोलन के द्वारा, किसान आंदोलन तो बहाना था मुख्य मक़सद बहुसंख्यक वर्ग को तोड़ना था। किसान आंदोलन के नाम पर सिखों को खलिस्तान के लिए भड़काने का प्रयास कर बहुसंख्यक वर्ग को तोड़ने की असफल और घृणित चल चली जिसका परिणाम 26 जनवरी को देखने को मिला।

और जब उनको लगा की ये चल असफल रही तो अब जाट वर्ग को भड़का कर फूट डालने का असफल प्रयास कर रहे हैं।

इनके इस कपट को पहचानें और एकजुट रहें। यही हमारी शक्ति है।

जय हिंद जय भारत

बात कड़वी है

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

baatkadavihai
baatkadavihai
i am A writer, A poet, A lawyer. basically from rajasthan.
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular