Saturday, November 2, 2024
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मोदी से ज़्यादा योगी से क्यों भयभीत है आतंकी?

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

दोस्तों इसे समझने के लिए हमें पहले भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के द्वारा स्थापित किये गए उदाहरणों को समझना पड़ेगा।

चलिए पहले सतयुग की बात करते है। प्रभु श्रीराम की बात करे तो उनके जीवन काल के दो अध्याय बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें पहला है “अयोध्या कांड” और दूसरा है “अरण्य काण्ड”। अब यदि अयोध्या काण्ड का ध्यान करे तो हम पाएंगे की बचपन से ही प्रभु श्रीराम ने हर मर्यादा का पालन किया, विपत्ति के समय भी कभी दया धर्म सत्य करुणा व् मर्यादा का दामन नहीं छोड़ा। अयोध्या काण्ड में विभिन्न प्रकार के नियमों और प्रावधानों के अंतर्गत शासित अयोध्या की व्यवस्था के बारे में बताया गया है। जैसा की हम सभी जानते है की प्रभु श्रीराम भोलेनाथ भगवन शिव शंकर के परम भक्त है। जिस प्रकार परमेश्वर भोलेनाथ सम्पूर्ण सृष्टि की सुख सुविधाओं का त्याग कर कभी शमशान में पुरे शरीर पर भभूत लगाए अपने गणो के साथ धुनि रमाते है या फिर कैलाश पर्वत पर अपने परिवार के साथ निवास करते है ठीक उसी प्रकार प्रभु श्रीराम भी माता पिता के वचन का पालन करते हुए अयोध्या के राजसिंहासन का त्याग कर देते है, वे उनकी कटु आलोचना करने वाली मंथरा के प्रति भी स्नेह और आदर का भाव रखते है। वे कभी भी अपने मन में अपने छोटे भाई भरत के लिए वैमनस्य नहीं लाते और खुशी खुशी समस्त राजसी वैभव का त्याग कर अरण्य की ओर १४ वर्षो के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।

अरण्य काण्ड की बात करे तो अरण्य का अर्थ होता है ऐसी व्यवस्था जो केवल प्रकृति के नियम व् प्रावधान द्वारा शासित होती है। सामान्य शब्दों में कहे तो जंगल या वन जहाँ वनवासी और पशुओं का निवास होता है। प्रभु श्रीराम पुरे अरण्य काण्ड के दौरान पशुओं और मानवो के मध्य सामंजस्य स्थापित करते रहे। वे हमेशा पशु, पक्षी वनवासियों और ग्रामीण अंचलो में बसने वाले इंसानो के मध्य एक विश्वास का वातावरण तैयार करते रहे। प्रभु श्रीराम अयोध्या और अरण्य अध्यायों के दौरान वन और ग्राम में रहने वाले पशुओं को इंसान बनाते रहे और उन्हें स्वय को सुधारने का पूरा अवसर प्रदान करते रहे। सांसारिक नियम चाहे कितने भी कठोर क्यों न हो प्रभु श्रीराम ने उनका पूरा पालन किया और करते भी क्यों नहीं वो मर्यादा पुरुषोत्तम जो थे। त्याग, तपस्या, सदाचार, सत्य, दया, धर्म और करुणा की प्रतिमूर्ति जो थे। वे अपने राजधर्म से कभी विमुख नहीं हुए।उन्होंने बड़े पुत्र, बड़े भाई, अच्छे पति, आदर्श युवराज, चरित्रवान राजा, कुशल प्रशासक और आज्ञाकारी शिष्य हर रिश्ते को बखूबी निभाया और एक आदर्श प्रस्तुत किया प्रभु श्रीराम अपने निंदको और आलोचकों को भी आश्रय देते थे।

प्रभु श्री कृष्ण राजा के बंधनो से मुक्त थे इसलिए कठोर नियम मानने को बाध्य नहीं थे। उन्होंने नियमों को नहीं माना अपितु परिस्थितियों के अनुसार नियम और प्रावधान का सृजन किया। प्रभु श्री कृष्ण सामने वाले को गलती करने और गलती सुधारने का अवसर देते थे परन्तु दण्डित करने से चूकते नहीं थे। वे “सठे साठयम समाचरेत” में विश्वास रखते थे। प्रभु श्रीराम अपने वचन के पक्के थे, उन्होने अयोध्या वासियों को वचन दिया था कि चौदह वर्ष बाद अयोध्या लौट आऊँगा अतः: समय से पहुँचने के लिए उन्होंने पुष्पक विमान का उपयोग किया। वही प्रभु श्री कृष्णा ने गोपियों को वचन दिया था, मथुरा से लौट कर ज़रुर आऊँगा, वो कभी नहीं लौटें। उन्होंने महाभारत के युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की परन्तु भीष्म पितामह को रोकने के लिए वो शस्त्र उठा कर दौड़ पड़े। उन्होंने अभिमन्यु के वध का बदला उसी प्रकार जयद्रथ का वध करा कर लिया। मर्यादा पुरुषोत्तम होने के कारण श्री राम ने गलत सही हर नियम माना, पर श्री कृष्ण ने गलत नियम तोड़े और परिस्थिति के अनुसार उनमे बदलाव लाया। प्रभु श्री राम के राज्य में एक मामूली व्यक्ति हो या कोई वन मनुष्य कोई भी किसी भी विशेष या सामान्य व्यक्ति पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नियम के तहत कटाछ  कर सकता था परन्तु श्री कृष्ण ने अपने भांजे  शिशुपाल को भी सौ से ज्यादा अपशब्द कहने का अधिकार नहीं दिया और १०० वि गलती पर उसे मुक्त कर दिया।

प्रभु श्री राम भक्तों की सहायता तभी करते हैं जब वे स्वयं के लिए खुद लड़ते हैं। वो पीछे से सहायता प्रदान करते हैं। किष्किंधा काण्ड में सुग्रीव को दो बार अपने अग्रज बाली से पिटना पड़ा तब प्रभु श्रीराम ने वाण चलाया और बालि का वध कर सुग्रीव को राजा बनाया। प्रभु श्री कृष्ण स्वयं सारथी बन के आगे बैठते हैं और युद्ध का नेतृत्व करते है। लंका कांड के दौरान भी प्रभु श्रीराम सबसे अंत में युद्ध में भाग लेते है उससे पहले उनके भक्त ही युद्धरत रहते है। वही महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण सारथी बनकर न केवल रथ का नियंत्रण अपने हाथ में रखते है बल्कि युद्ध की रणनीति भी वही बनाते है और इस प्रकार द्रोणाचार्य, कर्ण, विकर्ण, दुर्योधन, दुःशासन, पितामह भीष्म व् जयद्रथ इत्यादि का वध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

अब आप देख लीजिये हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आचरण को। क्या वो त्याग की प्रतिमूर्ति नहीं, देश के लिए घर का त्याग किया, गुजरात के दो बार मुख्यमंत्री होने के बावजूद भी सारे राजसी सुख सुविधाओं का त्याग किया। भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद दो नम्बर का पैसा त्यागने के लिए धनपशुओं को मजबूर किया, गैस सब्सिडी त्यागने के लिए जनता से अपील की, देश के विकास में अपना सबकुछ न्योछावर करने की प्रार्थना की। उनके सारे फैसले राज-धर्म, संविधान के अनुरूप ही होते है, भले ही संविधान का वो नियम सही हो या गलत। मोदी हमेशा अरण्य और ग्राम में सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करते हैं। सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास। वो पशुओं को मानव बनाने का प्रयास करते हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर पूरा विपक्ष, पाकिस्तान, और अन्य गन्दे और आतंकी देश उन्हें 24 घण्टे गाली देते हैं। दिगंबर भाव है, सब त्याग बैठे है, अपमान सम्मान सब। विपक्षियों के अपशब्दों से उन्हें ताकत मिलती है। वे आपदा को अवसर में बदल देने में विश्वास रखते है और करते है, विरोध के अधिकार के नाम पर देश के अंदर छिपे बैठे गद्दार और नमकहराम उनकी नाक के नीचे सड़क जाम कर महीनों बैठ सकते हैं। वो देश के बड़े बेटे है, नियम अनुरूप ही आचरण करेंगे। भेदभाव करते हुए नहीं दिख सकते।

अब थोड़ी चर्चा कर ले योगी आदित्यनाथ जी पर। जो गलत है वो गलत है और जो सही है वो सही है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जो विपक्ष प्रधानमंत्री को अंधाधुंध गलियों की बौछार करता है वही उस विपक्ष में किसी की औकात नहीं की वो योगी जी को एक गाली दे दे, वो नहीं देंगे, क्योंकि वो जानते है 24 घण्टे के अंदर उन पर मुकदमा होगा औऱ अगले ही कुछ दिनों में वे जेल में होंगे। बात कानपूर के विकास दुबे की हो या फिर अन्य अपराधियों की, गाड़ी पलटती है और उन्हें मुक्ति मिल जाती है। जो लोग जेलों में खुद को बंद करा के चैन की साँस ले रहे है उनके अवैध सम्पत्तियो पर योगी जी का बुलडोजर कहर बरपा रहा है, अवैध सम्पत्तिया जब्त हो रही है। मुख्तार अंसारी जैसे कुख्यात अपराधी की चड्ढी  उत्तर प्रदेश का नाम सुनकर गीली हो जा रही है| आम आदमी पार्टी के दो तथाकथित नेतावो संजय सिंह और सोमनाथ भारती को उत्तर प्रदेश में बदतमीजी करने की सजा मिली।

जिस विरोध के अधिकार के तहत दिल्ली में सौ दिन से ज्यादा प्रदर्शन होता रहा, उन्हीं नियमों के तहत यूपी में एक भी प्रदर्शन नहीं चल पाया। यहाँ तक की ६ फ़रवरी को पूरे देश में चक्का जाम करने की बात कहने वाले राकेश टिकैत की औकात नहीं हुई उत्तर प्रदेश का नाम लेने की।योगी जी ने आज़म खान के पूरे परिवार को जेल में सड़ा दिया।

किसी फिल्म का ये बड़ा  चर्चित डायलॉग है।

“यु कम टू शूट, शूट डोंट टॉक”

योगी जी इसी में विश्वाश रखते है और यही कारण है की पूरा आतंकिस्तान चाहे वो देश में है या देश के बाहर योगी जी के नाम से ही बिदक जाता है।

Nagendra Pratap Singh (Advocate)

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