Saturday, July 27, 2024
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बिहार चुनाव और महिलाएं

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अपने बहु प्रिय नाटक “ध्रुवस्वामिनी” की पुनः यात्रा ने मन में पाटलिपुत्र की महान स्त्रियों की विरासत की चिर स्मृति मन में जगा दी, वो भूमि जिसने १६ महाजनपद की अवधारणा देके भारत को राज करना सिखाया उसकी महिलाएं कितनी आत्मबल से लबालब होंगी जिन्होंने भारत को उतरोतर सम्राट तैयार कर के दिए!

आदिकालीन माता सीता हो जिन्होंने लंका जैसे साम्राज्य से अकेले निडरता से आंखे मिलाई, उर्मिला जिन्होंने अपने स्वाधिकार से लक्ष्मण को अपने स्वच्छंद धर्म निर्वाहन को प्रवृत्त किया।

कैसा विषद आत्मबल रहा होगा सुजाता का जिनकी “जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो” के शुभेक्षा से भरी खीर ग्रहण करने पर्यन्त बुद्ध को आत्मबोध हो गया।

फिर यशोधरा, मूरा, शुभाद्रंगी जैसे वीर जाया माताएं और राजकन्याए हो, या उभया मिश्रा जैसी विदुषी जिनके सामने शंकराचार्य को भी लगभग घुटने टेकने पड़े, बिहारी महिलाओं के शौर्य को बहुत अंदर जाकर ढूंढना नहीं पड़ता।

वैसे तार की जोती की माने या ऐसे भी बिहार मातृ सत्तात्मक रहा है means Bihari guys आर मोस्टली mumma’s boy (जोती जी से साभार) सिवाय एक यादव परिवार की बहू आधी रात को घर से निष्कासित की जाती है उसे अपवाद रखें। अपवाद तो गांधी परिवार में मेनका जी के साथ भी ऐसा ही हुआ परंतु हम इसे लेकर भारत में और बिहार में महिलाओं की पारंपरिक स्थिति पर धारणा नहीं बना सकते।

पर जैसा कि सर्वविदित है कि सामाजिक कुपोषण का पहला शिकार भी स्त्री होती है, वर्षो तक घोटालों और प्राकृतिक आपदा झेलता बिहार निश्चय ही अपने कई समर्थ नौनिहालों से हाथ धो चुका है और इसका बहुत बड़ा मूल्य महिलाओ ने चुकाया। एक जातउद्घोषक सरकार में एक जाति विशेष महिलाओ का चुन चुन के बलात्कार की बात हो या बाहुबलियों की अतिशयोक्ति, बिहार की लालनाओ की परीक्षा सदियों तक चली।

वैसे लालू के समय में जो बिटिया शाम होते ही ढोर जैसे घरो में बंद कर दी जाती थी, अब शाम को विहंगो जैसे साईकिल पर उन्मुक्तता से बैठ बिहार विहार करती है, इस वाक्य के अलंकृण निश्चय ही भावतिरेक में, लालू के उस काल को सोच कर आता है जब अपराध ने अपनी नई सीमाएं नापी।

और सीमाएं ही नहीं अपराध निरन्तर नए रूप और प्रतिमान लेता, और स्वाभाविक है समाज में अपराध की पहली और अंतिम भोक्ता महिलाएं होती है चाहे आपको कुल का मान मर्दन करना हो, व्यक्ति का या समुदाय का।

पर NRCB की data से यह जानना बहुत सुखद रहा की नीतीश के शासन में बिहार में महिलाओ के विरूद्ध अपराध भारत में तीसरे पायदान पर है, राजस्थान और दिल्ली से कहीं सुरक्षित बिहार अब उन्मुक्त स्वशन लेता प्रतीत होता है।

तो इस चुनावी मौसम में तब मन हुआ जानने का कि राजनीतिक पराक्रम के खेल में महिलाओं के नियत कोई चुनावी वार्ता है भी या नहीं और कुछ दिन से कुछ बिहार के चुनावी एजेंडे पर देखे गए, साथ ही कुछ राजनीतिक भाषण का भी जायजा हुआ।

आशानुरूप सबसे निराशाजनक बात थी कि बिहार के राजपुत्रो ,तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के भाषणों से खानापूर्ति वाक्यों के अलावा महिला विकास और सशक्तिकरण ही गायब था। चिराग ज्यादा सुनने में नहीं आए पर वोह अपेक्षाकृत काफी कुशल वक्ता और नेता है।

ऐसे ही भारतीय जनता पार्टी का पक्ष रखते हुए श्री गुरुप्रसाद पासवान को इस बीच काफी न्यूज चैनल पर सुना जिससे पता चला कि बिहार में इस बीच राजग सरकार के अंतर्गत
१. ७ करोड़ जन धन खाते जो अक्टूबर २०२० तक खुले उसमे २.५ करोड़ महिलाओ के है
२. ४ lac मुद्रा योजना के अन्तर्गत आवंटित ऋण में २.५ लाख महिलाएं लाभान्वित हुई है.
३. १.५ करोड़ महिलाएं सेल्फ हेल्प के माध्यम से एमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बहु आयामी भूमिका निबाह रही है।
४. इसमें सबसे महत्वपूर्ण समाज की इकाई व्ववस्था, पंचायत में दिया गया आरक्षण उल्लेखनीय है।

यह जानकारी उत्साह जनक है और उससे भी ऊपर यह सुखद है कि बिहार के राजनीति में लालू के जाति गोलबंदी और और तुष्टीकरण से ऊपर महिला विकास और सशक्तिकरण की एक स्वस्थ और बहुप्रतीक्षित विमर्श शुरू हुई जो अब तब बिहार के राजनीतिक पृष्टभूमि से नदारद थी!
इस सकारात्मकता का स्वागत होना चाहिए और ईश्वर इस वार्ता को “पुष्पित” पल्लवित करे!

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