कभी मगध और पाटलिपुत्र के गठजोड़ से दुनिया भर में अपने ज्ञान और सम्रद्धि से सम्पूर्ण विश्व को चकाचौंध कर देने वाला बिहार आज अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है।
यह जानकारी उत्साह जनक है और उससे भी ऊपर यह सुखद है कि बिहार के राजनीति में लालू के जाति गोलबंदी और और तुष्टीकरण से ऊपर महिला विकास और सशक्तिकरण की एक स्वस्थ और बहुप्रतीक्षित विमर्श शुरू हुई जो अब तब बिहार के राजनीतिक पृष्टभूमि से नदारद थी!
ये एक ऐसा सवाल है जो चुनाव ख़त्म होने के बाद अगले पांच साल हम जरुर पूछते है पर जब वोट डालने का समय आता है तब हम बिहार को भूल कर जातिवाद जैसे विभाजनकारी मानसिकता को चुन लेते है। इस मानसिकता को बदले बिना हम बिहार के विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते।
मौर्यकालीन बिहार जो उस समय देश का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध क्षेत्र हुआ करता था, आचार्य चाणक्य ने कल्पना भी नहीं की होगी कि विदेशी आक्रांता और देशी राजनीति उनके बिहार को गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, अपराध, भ्रष्टाचार और जातिवाद से इस तरह संक्रमित कर देगी।
मुरली मनोहर जोशीजी के दृष्टिकोण से भारतीय राजनीति पर एक व्यंग्यपूर्ण नज़रिया. A satirical look at Indian politics from Murli Manohar Joshi's perspective.
It is still to be known that how much the reservation has so far helped the communities like SC/ST in upbringing their life quality. But it is evident that it has helped politicians who stand on ideology that supports reservation.