Saturday, November 2, 2024
HomeHindiवो इधर की उधर लगाने वाले विदूषक कब बन गए, पता चला क्या?

वो इधर की उधर लगाने वाले विदूषक कब बन गए, पता चला क्या?

Also Read

सुबह से शाम तक हम सभी को सोशल मीडिया के माध्यम से अग्रसारित किये जाने वाले अनेकानेक चुटकुले, मेम्स और तमाम मजाकिया सन्देश मिलते रहते हैं. कभी हम हंस पड़ते हैं कभी यूँ ही अग्रसारित कर देते हैं, कभी बिना देखे ही डिलीट भी कर देते हैं. हँसी का व्यवसाय चलता रहता है. ऐसा ही एक सन्देश मिला, आप भी सुनिए –

दरवाज़ा खटका, कोई अन्दर आया.
कोरोना लॉकडाउन में कौन आया,
पति घबराया सामने देखा तो नारद मुनि को पाया.

नारद ने इधर उधर देखा, पत्नी का पता पूछा,
पत्नी के रसोई में व्यस्त होने का इत्मिनान किया,
फिर पति से प्रश्न किया,

लॉकडाउन में पत्नी सजती संवरती है क्या,
पति ने असमंजस से कहा, क्यों?
मुनि ने कहा, यदि तुम्हारे घर पर होते,
न सजती है न संवरती है, तो जब तुम नहीं होते,
तब क्यों संवरती है?

जब तक पति कुछ समझता, मुनि अंतर्ध्यान हो गए.

ग्रुप में अग्रसारित इस सन्देश के नीचे सभी दर्शकों/पाठकों/रसिकों ने जम कर हंसने वाले इमोजी लगाये थे और एल.ओ.एल. लिखा था (श्री कृष्ण की अनुकम्पा से ये सभी स्वयं को हिन्दू मानने वाले हैं). बहुत सर धुनने के बाद भी इस सन्देश में हंसने लायक कुछ न मिलने और मजाकिया सन्देश के नाम पर नारद मुनि को परिवारों को तोड़ने वाले अधम चरित्र के रूप में प्रस्तुत किये जाने से उत्पन्न खीझ के वशीभूत मैंने, “क्लियर चैट” का बटन दबाया और देवर्षि नारद के प्रति इस अक्षम्य अपराध के विरोध में कुछ न करने के अपराध बोध से मुक्ति पायी लेकिन ये दिन मुझ पर कुछ भारी था. “क्लियर चैट” किया ही था कि पारिवारिक द्वंद्व से उलझ रहे एक मित्र का फ़ोन आ गया. चर्चा के बीच उन्होंने बहुत सरल भाव से एक तीसरे व्यक्ति पर टिप्पणी की, “एक वही तो है हमारे घर में नारद मुनि, इधर की उधर करने वाला”. स्पष्ट है यहाँ भी मैं देवर्षि नारद का बचाव करने की स्थिति में नहीं थी.

अपने इतिहास के प्रति हमारी अरुचि, अनभिज्ञता और अनास्था ने आदि प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र देवर्षि नारद, जिनके लिए श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं मैं देवर्षियों में नारद हूँ को आज एक अधम विचार वाले, परिवारों को नष्ट करने वाले व्यक्ति के रूप में घटिया चुटकुलों का नायक बना दिया है. हमें लज्जा का बोध ही नहीं होता. ऐसी बातें पढ़कर हम आनंद लेते हैं, अग्रसारित करते हैं. हम एक पल ठहरकर सोचते भी नहीं कि, कौन थे देवर्षि नारद? संभवतः वर्षों से देवर्षि नारद की ऐसी छवि देखते देखते हम अभ्यस्त हो गए हैं, उस छवि को यदि चरणबद्ध रूप से और बिगाड़ा जाए तो हमें पता ही चलता. हमने स्वीकार कर लिया है कि नारद मुनि बस ऐसे ही इधर की उधर लगाते रहते हैं.

न जाने कितनी फिल्मों, धारावाहिकों, पुस्तकों ने देवर्षि को लम्बे समय तक विदूषक के रूप में प्रस्तुत किया है. शिखा के नाम पर सिर पर खड़ा एक एंटीना, वाणी में ऋषि के गाम्भीर्य के स्थान पर सतही वाचालता, ज्ञान चर्चा और दिग्दर्शन कराने के स्थान पर इसकी उसकी लगायी- बुझायी करना, नारायण –नारायण कहने का भाव ऐसा जिसमें भक्तिभाव का नहीं  चालाकी और षडयंत्र को क्रियान्वित करने का भान हो, भंगिमा सदा विदूषक की . स्मरण नहीं आता कि कभी हमने इस पर कोई आपत्ति की हो.

इसका कारण निश्चित रूप से अपनी पहचान के प्रति हमारी उदासीनता रही है. हमने देवर्षि नारद को विदूषक के रूप में स्वीकार कर लिया. कब किया इसका कोई लेखा जोखा नहीं है. न तो हमारी पाठ्य पुस्तकों में था, न परिवार ने बताया कि देवर्षि नारद त्रिकाल दर्शी तत्वज्ञानी हैं, वे वेदव्यास जैसे ऋषि के मार्गदर्शक हैं. देवर्षि नारद वो महान गुरु हैं जिन्होंने बालक ध्रुव और प्रह्लाद को अपनी शरण में लेकर बाल्यावस्था में ही ब्रह्म ज्ञान करा दिया. वे आदि पत्रकार हैं  सम्पूर्ण देवलोक में ज्ञान का प्रवाह करने वाले हैं.

इस स्थिति को बदलना होगा. अपनी आस्था के प्रतीकों को पहचानना होगा. उनको जानना होगा. उनका स्वरुप भ्रष्ट होने से बचाना होगा. उनके उपहास का प्रतिकार करना होगा. ये हमारी सभ्यता के अस्तित्व और पहचान का युद्ध है. हम सब योद्धा हैं. हम सब को अपने अपने भाग का युद्ध लड़ना ही होगा.

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular