कांग्रेस कई मौकों पर यह एलान करती रहती है कि उंसने भारत को आजादी दिलाई। बात वैसे सही भी है, और हम भारतीय अपनी आजादी पर गर्व करते हैं जो कि स्वभाविक भी है। पर फिर भी कुछ सवाल बार बार जेहन में आतें है कि क्या सच में हमे देश की आजादी पर गर्व होना चाहिए? क्या कभी किसी वैसे चीज पर गर्व किया जा सकता है जो एक तरह से भीख में मिली हो? आखिर क्या जरुरत पड़ी भीख में आज़ादी लेने की? क्या उस समय कांग्रेस इतनी कमजोर थी, या फिर कुछ लोग राजनितिक भूख में इतने अंधे हो गए की देश की आज़ादी के बदले देश का सम्मान ही बेंच दिया। आज़ादी तो हमे मिल गयी पर क्या हम ये गर्व से अंग्रेज़ों के सामने कह सकते हैं कि हमने छीन कर ली आज़ादी ? शायद कभी नहीं।
वैसे क्या हमने कभी सोंचा है कि कैसा होता अगर भारत को सुभाष चंद्र बॉस जी की आजाद हिन्द फौज ने आज़ादी दिलाई होती, या फिर 1857 की क्रान्ति का अंत देश की आजादी के साथ होता। मेरे विचार से तो तब शायद हमे देश की आज़ादी पर खुशी के साथ-साथ गर्व भी महसूस होता।
जीवन की एक घटना जेहन में आ गयी। एक मकान मालिक जो की मेरे पहचान का है ने किसी व्यक्ति को किराए पर घर दिया। पहले कुछ महीने तो सब कुछ सही चलता है, पर उसके बाद उस किराएदार ने किराया देना बंद कर दिया। मालिक काफी सीधा और सरल व्यक्ति है अतः बार बार उस किरायेदार से विनती करता कि या तो किराया दे दे या फिर मकान खाली कर दे। छह माह ऐसे ही बीत गए, और वो किरायेदार मजे में उस घर में डेरा जमाये बैठा था। एक दिन वो मकान मालिक अपने परिवार के साथ किरायेदार के पास पहुँचता है, और परिवार के सभी लोग किरायेदार के पैरों में गिर कर विनती करते हैं कि मकान खाली कर दे। अब किरायेदार को थोड़ी दया आ जाती है और वो मकान खाली कर देता है।
उस समय उस मकान मालिक के चेहरे पर सुकून तो थी किन्तु खुशी नहीं थी। मैं ताजुब भरे नज़रों से उस मकान मालिक से पूछता हूँ कि आखिर वो खुश क्यों नहीं दिख रहा। जवाब दिल को काफी झखझोर देने वाला था,और मैं निःशब्द हो गया। उसने कहा साहेब क्या मैं इस बात कि खुशी मनाऊं कि मेरा ही अधिकार किसी ने मुझे ही भीख में दिया, या फिर इस बात पर आंसू बहाऊँ कि आज मेरा आत्मसम्मान हार गया।
खैर बात अब पुरानी हो गयी, और जो बीत गयी सो बात गयी। किन्तु जब देश की आजादी को याद करता हूँ तो उस मकान मालिक की कहानी मिलती जुलती सी लगती है। आखिर हमने भी तो कुछ गोरों को ये देश किराए पर दिया था व्यापार करने के लिए, और पता ही नहीं चला कब वे व्यापारी से लुटेरे हो गए और हम पर ही हुकूमत करने लगें।
बार बार जेहन में एक बात आती है कि क्या देश आजाद होता अगर द्वितीय विश्व युद्ध होता ही नही। कहीं कहीं तो ये भी दावा किया जाता है कि अँगरेज़ भारत को छोड़ना ही नहीं चाहते थें किन्तु वो तो अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन रोसवैल्ट थें जिन्होने उस समय के ब्रिटिश प्रधानमंत्री पर दबाव बनाया भारत को आज़ाद करने का। ये मैं नहीं कह रहा बल्कि द क्विंट कि ये रिपोर्ट कहती है।
क्या हमने सोंचा है कि क्या होता अगर अमेरिका उस समय भारत और ब्रिटेन के बीच आता ही नहीं। तो क्या उस समय देश आजाद होता। शायद नहीं। और, क्या हमे इसके लिए अमेरिका का शुक्रगुजार नहीं होना चाहिए। वैसे क्या होता अगर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत अंग्रेज़ों का साथ न देकर सुभाष चंद्र बोष की आजाद हिन्द फौज का साथ देता। तो आज शायद आजादी की कहानी ही कुछ और होती।
किन्तु जहाँ तक मेरा विचार है कांग्रेस ने जो कुछ किया देश की भलाई के लिए ही किया। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती तो हमें श्रीमान नेहरू जी जैसा प्रधानमंत्री नहीं मिलते, और न ही आज राहुल गांधी जैसा देश रत्न मिलते। हमें नेहरू जी का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उनके कारण ही आज हमे पाकिस्तान जैसा देश मिला मज़ाक बनाने के लिए। और जो मजे हम भारत पाक क्रिकेट मैच के दौरान लेते है उसका भी श्रेय नेहरू जी को ही जाता है। ये नेहरू जी की ही देन है की हमे चीन जैसा भाई मिला। हालांकि चाचा जी को इसके लिए अपने उस भाई को भारत की जमीन का एक दुकड़ा देना पड़ा। अब ये अलग बात है कि वो भाई समय समय पर भारत के पीठ में छुरा घोपता रहता है। किन्तु हमे इसके लिए भी शुक्रगुजार होना चाहिए क्यों कि इससे ही हमें आंदोलन करने के लिए समय समय पर बॉयकॉट चाइनीज प्रोडक्ट जैसे टॉपिक मिलते है। और हमे नेहरू जी का इस बात के लिए भी धन्यवाद करना चाहिए कि आज जो राजनितिक पार्टियां फिर चाहे वो बीजेपी हो या कोई और, वो जो पाकिस्तान, जम्मू कश्मीर, और कश्मीर पंडितों के हक़ जैसे मुद्दों के नाम पर चुनाव लड़ती है और जीत भी जाती है वो मुद्दे भी कहीं न कहीं नेहरू जी की देन है। जरा सोंचो अगर नेहरू प्रधानमन्त्री नहीं होते तो आज के नेताओं को ये मुद्दे भी कहाँ से मिलता ! फिर शायद उनको कोई नया मुद्दा खोजना होता।
अब अगर बात राहुल जी की जाए तो वो एक प्रेरणा के स्रोत हैं कि छोटा भीम देखने की कोई उम्र नहीं होती। और मुझे ये पूरी उम्मीद है कि जिस दिन राहुल गांधी जी प्रधानमन्त्री बन गए उस दिन वैसी मशीन का निर्माण जरूर होगा जिसमे एक तरफ से आलू डालो तो दूसरे तरफ से सोना निकले। राहुल जी हिन्दुस्तान के जनता को मजे देना चाहते हैं, और मुझे पूरी उम्मीद है की एक दिन वो ये मजा हम आम जनता को देकर रहेंगे। और जरा सोंचो अगर कांग्रेस सत्ता में 60 साल नहीं होती तो आज हमारे प्रधानमन्त्री मोदी जी ये नहीं बोल पाते की कांग्रेस ने 60 सालों तक देश को लुटा है। एक नजरिये से देखा जाए तो मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने में कांग्रेस का भी भरपूर योगदान है। और मोदी जी आज जो कुछ भी देश हित में कर रहे हैं वो भी कांग्रेस की ही देन है क्योंकि अगर कांग्रेस ही देश का विकाश कर देती तो फिर मोदी जी के क्या करते। ये कांग्रेस की महानता ही है कि कुछ घोटाले कर मोदी जी को मौका दिया देश हित में कुछ काम करने का। अतः हमे उन घोटालों के लिए भी कांग्रेस का शुक्रगुजार होना चाहिए।
अंततः कुल मिला कर देखा जाए तो देश की आज़ादी में कांग्रेस का योगदान सराहनीय है फिर चाहे वो आजादी भीख में ही क्यों न मिली हो।