1) वो न गरीबी और भुखमरी से त्रस्त था।
न ही उसकी मौत मुंबई से पटना पैदल जाते वक्त हुई।
2) उसने न तो सीने पर गोली खा कर कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने प्राण न्योछावर किये।
न ही उसकी मृत्यु कोरोना या उसके जैसी भयावह बीमारी के कारन हुई।
3) धार्मिक और क़ानूनी, दोनों ही दृश्टिकोण से आत्महत्या “अपराध” की श्रेणी में आता है।
4) नायक और नायिकाओं को समाज में मनोबल बढ़ाने के लिए जाना जाना चाहिए (नाना पाटेकर,सोनू सूद, अक्षय)।
न की समाज को आत्महत्या हेतु, उकसाने के लिए।
5) रुपहले परदे पर “महेंद्र सिंह धोनी” का किरदार मात्र निभा लेने से, लोगों के आँखों का तारा बना ये बंदा,
अगर धोनी के जीवन के 10% चुनौतियों से भी पला पड़ा होता ….. तो फिर अब तक इसने दो-ढाईसौ बार आत्महत्या की होती।
सुनने में तो ये भी आया था की ये महाशय “राकेश शर्मा” भी बनने वाले थे।
इतना सब जानते हुए भी –
पूरा प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कराह रहा है।
सोशल मीडिया में दुःख का सैलाब सा आ गया है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है की इन महापुरुष ने आत्महत्या नहीं की है, अपितु “भगत सिंह” जैसे “मेरा रंग दे बसंती चोला” गाते हुए चीनी सरकार द्वारा लद्दाख में अतिक्रमण के विरोध में हसते-हसते फांसी चढ़ गया हो।
ध्यान रहे:
आकस्मिक मृत्यु का दुःख मुझे भी है।
लेकिन sensible दिखने के आडंबर में “आत्महत्या” जैसे अपराध का महिमामंडन नहीं सकता।