भारत में लोकतंत्र की अवधारणा बहुत ही पुराना है। लोकतंत्र की स्थापना भारत के बिहार राज्य में हुआ था। आज के परिप्रेक्ष्य में भारत में लोकतंत्र की स्थापना हमारे स्वतंत्रता मिलने के पश्चात हुआ। भारत में जितना लोकतंत्र पुराना है उतना किसी और देश में ऐसा साक्षी नहीं मिलता। भारत में लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक का एक नया अध्याय जुड़ गया। भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात लोकतंत्र के साथ साथ भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना। जहां पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की अवधारणा थी जो कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नहीं होनी चाहिए।
हमारे देश के अल्पसंख्यक कट्टर धार्मिक समूह ने धर्मनिरपेक्ष शब्द का अपने फायदे के लिए हमेशा गलत इस्तेमाल किया।वह चाहे शाहीन बाग हो या बाबरी मस्जिद। उनके इस कृत्य में हमारे देश के तथाकथित इतिहासकार और वामपंथी समूह ने बराबर साथ दिया। हमेशा से भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बरगलाया गया वह चाहे हमारे महात्मा गांधी हो या जवाहरलाल नेहरू। महात्मा गांधी खिलाफत आंदोलन के समय ब्रिटेन के विरुद्ध तुर्की का साथ दिया लेकिन क्या उन्होंने भारत के बंगाल में दंगा के समय इन्हें धार्मिक समूह ने उनका साथ दिया? जवाब है नहीं।
आज भी बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कुछ भी थोपा जा रहा है और हिंदू सनातन धर्म के साथ कुछ भी कोई भी बोल देता है क्योंकि हिंदू धर्म में ईशनिंदा का जैसे शब्दों का हमेशा अभाव रहा है। हिंदू सनातन धर्म हमेशा से ही अपना बचाओ की अवस्था में ही रहा है। दूसरों धर्मों के प्रति हिंदू धर्म कुछ ज्यादा ही उदार रहा है जिसका हमेशा से भारत के कट्टर तथाकथित मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने अपने स्वार्थ के कारण हिंदुओं के पुरातन संस्कृति हो या वेशभूषा हो या चाहे मंदिरों पर उनके आक्रमण हो यह दिखाता है कि उनके अंदर हमेशा से ही हिंदुओं के प्रति द्वेष रहा है।