प्रधान मंत्री ने लॉकडाउन को तीन मई रविवार तक बढाने की घोषणा करते समय अंत में कहा:`वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:’
यजुर्वेद (९:२३) के इस श्लोकार्ध का अर्थ है:`हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत और जागृत रखेंगे.’ पुरोहित यानी जो पुर का हित करे वह. पुर अर्थात नगर, शहर. यहां पुरोहित शब्द सत्ताधीशों के अर्थ में तथा नगरजनों के अर्थ में भी लिया जा सकता है क्योंकि नगर का हित केवल सत्ताधीश के मन से ही थोडी होता है. राष्ट्र को जीवंत और जागृत रखने की जिम्मेदारी हम जैसे नागरिकों की भी होती है.
मोदी ने अन्य धर्मों के प्रति कभी नापसंदगी व्यक्त नहीं की. क्योंकि उनके दिल में ऐसी कोई भावना नहीं. लेकिन उन्होंने कभी अपना हिंदुत्व नहीं छिपाया. इस देश की परंपरा और संस्कृति के मूल में हिंदुत्व है, सनातन धर्म है, भगवा रंग है इस बारे में वे हम सब की तुलना में अधिक सजग हैं. और यही सजगता प्रकट करने का एक भी मौका वे नहीं छोडते- फिर चाहे केदारनाथ गूफा में भगवा वस्त्र पहनकर साधना करनी हो, या वाराणसी के काशी विश्वनाथ मेंदिर में शिवजी की पूजा हो, चाहे अपने राष्ट्र व्यापी संबोधनों में संस्कृत श्लोकों का उपयोग करना हो, चाहे भारत आनेवाले विदेशी राष्ट्राध्यक्षों- प्रधानमंत्रियों को सरकार की ओर से भेंट दी जानेवाली ताजमहल की प्रतिकृ्ति के बदले भगवद्गीता देने की नई परंपरा हो.
अखबार-पत्रिकाएं भले ही अभी बंद हों लेकिन उसमें शोर मचानेवाले चुप नहीं हैं. वे सोशल मीडिया में जाकर चिल्ला रहे हैं कि लॉकडाउन की अवधि बढने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड रहा है, गरीबों-किसानों-दिहाडी मजदूरों के सिर पर आसमान टूट पडा है.
यदि मोदी ने लॉकडाउन उठाने की घोषणा की होती, कल से जिसे जहां जाना हो वहां जाने की छूट है- माइग्रेंट वर्कर्स को अपने गांव जाने की छूट है, गांव गए मजदूरों को लौटने की छूट है, मंदिरों-मस्जिदों-चर्चों के बंद द्वार खोलने की छूट दी होती, ट्रेन-विमान के आवागमन पर से पाबंदी उठा ली होती, थिएटरों-मॉल-बार-रेस्टोरेंट को फिर से चालू होने दिया होता तो यही लिब्रांडू कहते: मोदी में अक्ल नहीं है. इस दौर में ऐसा करने से कोरोना दावानल की तरह फैलेगा, देश बडे संकट में पड जाएगा.
देश में जो मोदी विरोधी गैंग है वह केवल मीडिया में या राजनीति में ही नहीं. हम सभी के आस पास मोदी द्वेषी लोग हैं जो `ऐसे तो मोदी अच्छा काम करते हैं लेकिन फलाने मामले में उन्होंने दूसरों की सलाह माननी चाहिए’ कहकर अपने मोदी द्वेष को छिपाने की कोशिश करते हैं. उन्हें अपने मोदीद्वेष को छिपाना पडता है क्योंकि उन्हें पता है कि अगर वे खुलेआम मोदी का विरोध करने लगेंगे तो उनके आसपास के मोदी भक्त उन्हें जातनिकाला दे देंगे, उनके साथ उठना बैठना बंद कर देंगे, वे अकेले पड जाएंगे.
अमेरिका ब्रिटेन जैसे धनवान और विकसित माने जानेवाले देशों की तुलना में भारत कोरोना के खिलाफ लडने में काफी एडवांस है. `इंडिया टुडे’ जैसी न्यूज चैनल विभिन्न देशों में कुल केसेस और कुल मृत्यु का चार्ट बनाकर कहता है कि भारत विश्व की तुलना में कहां है. आंकडों का उपयोग और प्रतिशत का उपयोग कब करना चाहिए क्या यह बात चैनलवालों को पता नहीं है? बिलकुल है. लेकिन जनता को भडकाने के लिए वे प्रतिशत के बदले कितने केस/ मौत के आंकडे देते हैं. भारत की जनसंख्या की तुलना में प्रतिशत निकाला जाना चाहिए. उदाहरण के लिए श्रीलंका में कोरोना से १०० मौतें होती हैं और भारत में २०० मौतें होती हैं तो कोरोना के खिलाफ चल रही लडाई में श्रीलंका की तुलना में भारत आगे है, क्या ऐसा नहीं कहना चाहिए, बेवकूफ चैनल वाले. दोनों देशों की जनसंख्या की तुलना में किस देश का कितना प्रतिशत है, इसकी जानकारी देनी चाहिए.
कोरोना जैसे संकट में भी लेफ्टिस्ट मीडिया अपने दिमाग की गंदगी हम तक पहुंचाना बंद नहीं कर रहा है. दिल्ली में केजरीवाल कोरोना को रोकने में, राहत कार्य करने में तथा माइग्रेंट वर्कर्स की समस्या को सुलझाने में बिलकुल नाकाम रहे हैं. इतना ही नहीं निजामुद्दीन मरकज में जुटे हजारों तबलीगियों को परोक्ष रूप से संरक्षण देकर तो केजरीवाल ने घोर अपराध किया है. इस कारण दिल्ली में कोरोना केस देश में सबसे हाइएस्ट/ सेकंड हाइएस्ट है. (दिल्ली की स्पर्धा में महाराष्ट्र की मिलीजुली सरकार है जो अपने पसंद-नापसंद के कारण तथा एनसीपी के अल्पसंख्यक वर्ग के लिए प्रेम के चलते कोरोना से लडने में समर्थ नहीं है). दिल्ली में बढते जा रहे कोरोना के केस/मृत्यु की कडी आलोचना करनी चाहिए. लेकिन केजरीवाल ने सरकारी खर्च पर दिल्ली के टीवी चैनल्स को करोडो रूपए के विज्ञापन दिए हैं. कुत्ते को बिस्किट खिलाने पर वह किस तरह से पूंछ हिलाता है, ये देखकर मजा आता है. राजदीप सरदेसाई इसी तरह से पूंछ हिलाते हुए ट्वीट करता है:`दिल्ली सरकार की पारदर्शिता की सराहना करनी ही पडेगी. कोरोना केस के आंकडे घोषित करने में वे लोग कुछ छिपा नहीं रहे, अन्य राज्यों को उनका अनुकरण करना चाहिए.’
राजदीप को नहीं दिख रहा है कि केजरीवाल ने दिल्ली से यूपी-बिहार के लाखों कामगारों को रातोंरात बाहर खदेडा था तब देश के लिए कितना बडा संकट खडा हुआ था. योगी आदित्यनाथ ने तुरंत इन दिहाडी मजदूरों के लिए रात में जागकर-स्थान पर जाकर, व्यवस्था खडी की और देश को एक विनाश से बचा लिया. योगी की कार्यक्षमता को सराहने के बजाय राजदीप जैसे लोग केजरीवाल की सरेआम हुई विफलता का किस विकृत तर्क से सराहते हैं, इसका बेहतरीन उदाहरण है उसका ये ट्वीट. फिर से पढकर देखिए.
वामपंथी राजदीप की पत्नी सागरिका घोष भी पति से भी सवाई पत्रकार है. वह ट्विटर पर कहती है:’क्या हमारा देश वेस्टर्न कंट्रीज की तरह इकोनॉमी को बंद करके और सोशल डिस्टेंसिंग करना सह सकता है? गरीबी, भुखमरी बेकाबू होती जा रही है.’
इस देश में कोई गरीबी-भुखमरी नहीं है. रोज अनेक सेवाभावी हिंदू संस्थाओं तथा सरकारी योजना के तहत करोडो गरीबों को तैयार खाना मिलता है, घर में पकाने के लिए राशन भी मिलता है. ये सही अर्थ में `सहनाववतु सहनौभुनक्तु’ परंपरा का देश है. हम सभी एक-दूसरे की रक्षा करें, हम सभी साथ मिलकर भोजन करें, हम सभी साथ मिलकर काम करें और उज्ज्वल सफल भविष्य के लिए अध्ययन करें, एक दूसरे से घृणा न करें.
लेकिन ऑक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज में बाप के पैसों पर तागडधिन्ना करके आए लोगों तथा पश्चिमी ग्लिटर से जिनकी आंखों में अंजन लगा है, ऐसे रंगरूटों को ये बात समझ में नहीं आएगी. भारत को एक समृद्ध देश मानने से उनके पेट में मरोड उठती है. इस देश गरीबों-भुखमरे लोगों का है, ऐसा कहकर खुद को लिबरल कहलाने वाले देशद्रोही कोरोना के संकट में भी देश के साथ नहीं रहते. देश की समस्या गरीबी या भुखमरी नहीं है. देश की समस्या देश की खराब इमेज देशवासियों और विदेशियों को दिखाने वाली वामपंथी मीडिया की है, मीडिया को नचानेवाले सेकुलर राजनेताओं की है. यह मीडिया-राजनेताओं का नेक्सस भारत का नया अंडरवर्ल्ड है जिसके गैंगस्टर तथा गैंगलीडरों का प्रतीकात्मक एनकाउंटर अब अनिवार्य हो गया है. इस कार्य के लिए एकाध नहं अनेक एनकाउंटर स्पेशलिस्टों की जरूरत पडेगी.
महाराष्ट्र सरकार के चीफ सेक्रेटरी की हस्ताक्षरवाली चिट्ठी जिन्हें दी गई, वे जमानत पर छूटे अरबपति परिवार अपने रसोइए, नौकरों को लेकर मुंबई से महाबलेश्वर घूमने निकले पडते हैं और राज्य के मुख्यमंत्री ऊपरी तौर पर कदम उठाकर सारे मामले को दबा दे रहे हैं, इसके बावजूद बिकाऊ मीडिया कोई उहापोह नहीं करता. ऐसे मीडिया का आप क्या विश्वास करेंगे? सारे देश में लॉकडाउन के कारण तकलीफ में पडे करोडो लोगों को नियमित रूप से दो समय का भोजन-राशन पहुंचाया जा रहा है, ऐसी खबरों की केवल एक झलक दिखाकर कोई भी मीडिया उसकी विस्तार से रिपोर्टिंग नहीं कर रहा है. ऐसे मीडिया को आप क्या कहेंगे?
यह देश भव्य है, उदार है और सभी को संभालता है. पश्चिमी देश दूसरों को लूटकर, गुलामों का व्यापार करके तथा कमजोरों को डरा-धमका कर या फुसलाकर समृद्ध बने हैं. भारत को कभी ऐसी गंदी नीति से समृद्ध बनने की जरूरत नहीं पडी. इस देश में कोई जरूरतमंद लाचार नहीं होता. उसे संभालने वाले एक नहीं अनेक लोग हैं. यहां सेवा करने के लिए होड लगी रहती है. वहां की सेवा संस्थाएं जनता से दान लेकर उसमें से ९० प्रतिशत राशि अपना तंत्र चलाने के लिए, बडे बडे वेतन लेने के लिए उपयोग में लाती हैं. हमारी सेवा संस्थाओं में कई संस्थाएं ऐहसी हैं जिनके संचालक ओवरहेड्स के खर्च अपनी जेब से निकालते हैं. संस्था को मिलनेवाली सौ रुपए की दान राशि जरूरतमंदों तक पहुंचती है तब उसकी कीमत १० रूपए नहीं हो जाती बल्कि सौ के बजाय सवा सौ रूपए हो जाती है. ऐसी संस्थाओं के साथ काम किया है इसीलिए उनकी कार्यक्षमता का प्रत्यक्ष परिचय है.
प्रधानमंत्री एक अपील करते हैं तो उसके जवाब में अरबों रूपए दान में देनेवाले उद्योगपति इस देश में हैं. जिनके पास कोई बचत नहीं है वे छोटी राशि भेजकर भी प्रधान मंत्री के पीएम केयर्स फंड में अनुदान देते हैं.
अभी घर से बाहर जो कुछ भी होता है उसकी फर्स्टहैंड जानकारी नहीं होना स्वाभाविक है. घर में रहकर जो फर्स्टहैंड जानकारी मिली है वह शेयर करके समापन कर रहा हूं. हम जिस कालोनी में रहते हैं, वहां की जनता मध्यमवर्गीय है. कोई करोडपति-अरबपति नहीं है. १४ मंजिल की सात इमारतें हैं. सोसायटी की देखरेख के लिए स्टाफ, सुरक्षा व्यवस्था के लिए स्टाफ, सफाई कर्मचारी- अच्छे नियमित रूप से देखभाल करते हैं. लॉकडाउन के दौरान इन सभी को दुगुना वेतन देने का निर्णय किया गया जिसका अनुमोदन हर किसी ने एकमत होकर किया, ये तो ठीक है. लेकिन कुछ दिन पहले सोसायटी के मानद मंत्री का ईमेल सभी को आया: मित्रो, इन सभी के चायपान-भोजन की व्यवस्था के लिए मेंबर्स इतने उत्साही हैं कि डुप्लिकेशन हो रहा है और सामान बर्बाद हो जा रहा है. इसीलिए आप में से जो लोग भी चाय-नाश्ता-भोजन पहुंचाना चाहते हैं, उसके बारे में फलाने भाई के साथ कोऑर्डिनेट करने का निवेदन है.
ये भारत है. हमारी सोसायटी भारत का एक छोटा सा रूप है जहां बहुरंगी जनता रहती है. भूखों को- जरूरतमंदों को खिलाने के लिए दौडभाग होती है, ऐसे देश में हम रहते हैं. टीवी मीडिया के अपप्रचार पर ध्यान न दें और अखबार नहीं छप रहे हैं, इसे भगवान का आशीर्वाद मानिए.•••