दिल्ली विधान सभा के चुनाव परिणाम आ चुके है. कुल ६२ प्रतिशत वोटों में से आम आदमी पार्टी का वोट शेयर ३७ प्रतिशत और भाजपा का २५ प्रतिशत रहा – लगभग ३८ प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग ही नहीं किया. केजरीवाल को जो ३७ प्रतिशत वोट मिले हैं उनमे से ३० प्रतिशत वोट तो रोहिंग्या बांग्लादेशी घुसपैठियों और मुस्लिम कट्टर पंथियों के हैं जो पिछले काफी समय से नागरिकता कानून का विरोध भी इसीलिए कर रहे थे कर रहे थे क्योंकि कानून लागू होते ही इन लोगों को धक्के मारकर बाहर निकला जाना तय है. इस बात को केजरीवाल समेत सभी विपक्षी पार्टियां भली भाँति जानती और समझती हैं और इसीलिए यह सभी पार्टियां नागरिकता कानून का विरोध इसीलिए कर रही हैं कि उनका पूरा का पूरा वोट बैंक एक ही झटके में देश से बाहर फेंक दिया जाएगा. सारी समस्या उन ७ प्रतिशत हिन्दू वोटों की हैं जिन्हे “फ्री” के चक्कर में कुछ भी समझ में नहीं आया और उनकी अपनी “मुफ्तखोरी” देश हित और दिल्ली के हित पर भारी पड़ गयी.
देखा जाए तो यह ७ प्रतिशत मुफ्तखोर हिन्दू कोई नया काम नहीं कर रहे हैं- इनकी गलती सिर्फ इतनी है कि इन्होने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है. केजरीवाल को वोट देने वाले ७ प्रतिशत हिन्दू शायद १९९० के उस समय को भूल गए हैं जब कश्मीर से लगभग ५ लाख हिन्दुओं को मुस्लिमों ने मार मार कर सिर्फ इसलिए भगाया था क्योंकि वहां वे बहुसंख्यक थे. अवैध घुसपैठियों को मिलाकर लगभग ३० प्रतिशत मुसलमान आज दिल्ली में हैं-इन लोगों का अपना एक एजेंडा है और उस पर लगातार काम करते हुए एक “ख़ास” पार्टी को वोट कर रहे हैं. सवाल यह है कि अगर ७ प्रतिशत “लालची” हिन्दू उनकी पसंद की पार्टी को वोट देकर उनके एजेंडे को आगे क्यों बढ़ा रहे हैं? जिस दिन कश्मीर के हिन्दुओं की तरह उन्हें दिल्ली से भगाया जाएगा तब सारी की सारी “मुफ्तखोरी” का हिसाब चुकता हो जाएगा क्योंकि कश्मीर से जितने भी हिन्दू भगाये गए थे उन्हें अपनी जमीन जायदाद वहीं छोड़कर आनी पडी थी.
सोमालिया के राजा ने भी सत्ता में बने रहने के लिए “मुफ्तखोरी” का सहारा लिया था और जब खजाने खाली हो गए तो देश छोड़कर भाग खड़ा हुआ. चाणक्य बहुत पहले ही इस बात को लिख चुके हैं कि जिस राज्य की जनता लालची होती है वहां सिर्फ ठग शासन करते हैं. “मुफ्त का माल” वैसे तो सभी को अच्छा लगता है लेकिन उसकी भविष्य में क्या कीमत चुकानी पड़ेगी इसका ख्याल भी रखा जाना जरूरी है.
“टुकड़े टुकड़े गैंग” के समर्थकों की जो सरकार दिल्ली में बनी है, उसके चलते न सिर्फ कन्हैया और उमर खालिद जैसे देशद्रोह के आरोपियों के मामले को आगे नहीं बढ़ने दिया जायेगा बल्कि इन्ही लोगों की तर्ज़ पर शरजील इमाम पर भी देशद्रोह के मामले को दिल्ली सरकार की परमिशन नहीं दी जाएगी. जो ३८ प्रतिशत हिन्दू दिल्ली में मतदान करने नहीं गए और जो ७% हिन्दू “मुफ्तखोरी” के चलते केजरीवाल को वोट कर बैठे, उनके इस अपराध की सजा दिल्ली को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी इसका अंदाज़ा शायद उन्हें भी नहीं है.
चलते चलते : “टुकड़े टुकड़े गैंग” के समर्थक अक्सर भाजपा पर यह आरोप लगाते आये हैं कि वह हर समय हिन्दू-मुस्लमान और पाकिस्तान का राग अलापती रहती है. क्या यह लोग बताएँगे कि १९४७ में जब भाजपा नहीं थी तब हिन्दू-मुसलमान का राग अलापकर पाकिस्तान किसने बनबाया था?