चमन चुरनों का असली दर्द बालाकोट का सर्जिकल स्ट्राइक है. वरना जो सवाल पुलवामा को लेकर उठाये जाते हैं वही सवाल 26/11 और तमाम दूसरे आतंकवादी हमलों को लेकर हैं बल्कि वो सवाल और भी व्यापक हैं.
राहुल जी को समझना चाहिए कि उनका सामना तो किसी रवीश से ही होगा लेकिन उनके समर्थकों का सामना हम जैसे छोटे-मोटे अर्णव से होता है.
वैसे दिलचस्प ये देखना रहेगा कि ‘सामना’ इस पर कैसे रिएक्ट करता है?
असल में राहुल गाँधी सहित सभी वकारपंथियों का दर्द बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर है! सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगने के बाद अब वो राजनीतिक नफा-नुकसान की बात करने लगे हैं. इस पर से उनका सामना किसी रवैश्या पत्रकार से होता है जो खुद भी कुछ ऐसी ही लाइन लेता है. पर दिक्कत राहुल जी और रवैश्या पत्रकार के समर्थकों को होता है क्योंकि उन्हें छोटे-मोटे अर्णव और सुधीर का सामना करना पड़ता है. उन्हें बस यही डर लगा रहता है कि कहीं उन्हें कोई देशद्रोही कहने के बाद सिद्ध ना कर दे.
जो सवाल राहुल गाँधी पुलवामा हमले को लेकर पूछते क्या उन सभी सवालों का जवाब उन्हें 26/11 और दूसरे आतंकवादी हमलों को लेकर नहीं देना चाहिए? 26/11 के बाद तो पाकिस्तान पर कोई करवाई भी नहीं की गयी शिवाय इसके कि उस समय के गृह मंत्री से इस्तीफ़ा ले लिया गया और हमले में पकड़े गये एकलौते आतंकवादी कसाब को तीन वर्ष तक बिरियानी खिलाने के बाद फांसी दी गयी. पर उस हमले में सेना ने 9 अन्य आतंकवादियों को जहन्नुम पहुंचा दिया वरना आतंकवादियों के लिए कोर्ट खुलवाने वाला गिरोह उनकी माफ़ी की फ़रियाद तो करता ही साथ ही उन्हें भी बेहतर बिरियानी दिया जा सके इसका भी प्रबंध हो जाता!
मुंबई पर हमले के उपरांत करवाई के लिए शिवराज पाटिल को गृह मंत्री पद से हटाया गया. क्या इससे दूसरे आतंकवादी हमले रुक गये? 26/11 के बाद भी अगर छोटे हमलों को छोड़ दिया जाय तो बड़े आतंकवादी हमले, जिसमें या तो पाकिस्तान का हाथ था या फिर भारत में रह रहे पाकिस्तानियों का, ऐसे 20 से भी अधिक हमले हुए. और ये हमले पाकिस्तान से सटे राज्यों में नहीं बल्कि हैदराबाद, दिल्ली, पुणे, बंगलुरु, गुवाहाटी, वाराणसी आदि स्थानों पर हुए.
पर 2014 के बाद यदि नक्सली हमलों को छोड़ दिया जाय तो अधिकतर हमले पाकिस्तान से लगे सीमावर्ती इलाकों में हुए हैं. 370 के हटने के बाद वो भी सीमावर्ती इलाकों में आतंकवादी कुछ पर उससे पहले सेना उनका काम तमाम कर देती है.
राहुल गाँधी और रवैश्या गिरोहों का सवाल हाल ही में गिरफ्तार किये गये देविंदर सिंह को भी लेकर है. उनका कहना है कि कहीं देविंदर को बलि का बकरा तो नहीं बनाया जा रहा है और असली दोषी कहीं प्रधानमंत्री ही तो नहीं हैं? पर देविंदर सिंह की न्युक्ति तो आज की है नहीं, फिर इसमें कोंग्रेस को खुद को भी कटघरे में खड़ा करबा होगा. यदि अफज़ल के मामले में देविंदर पर शक था तो फिर 10 वषों के यूपीए शासनकाल में क्या करती रही?
अब जब जांच की जा रही और देविंदर सिंह को कड़ी बना और दूसरी गिरफ्तारियां हो रही तो भी इन्हें ही मिर्ची लग रही रही है.
दरअसल कोंग्रेस चाहती है कि कोई रवैश्या एक कहानी लिखे और फिर लोग उसे विश्वास कर लें. 26/11 के हमले के बाद भी यही तो हुआ था. कोंग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक कहानी लिखा कर बता दिया कि उस हमले के लिए राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ जिम्मेदार है. पर 2009 से 2014 तक उनकी सरकार रही लेकिन संघ पर अधिकारिक रूप से कोई आरोप नहीं लगा सिद्ध करना तो दूर की बात है.
रवैश्या गिरोह ‘सीमा पर तनाव है क्या पता करो चुनाव है क्या?’ वाले कालखंड में ही जीना चाहते हैं. यदि उनकी बातों में इतनी ही सच्चाई रह गयी होती तो लगातार राज्यों में चुनाव हारने के बावजूद फिर कोई दूसरा पुलवामा क्यूँ नहीं हो जाता?