इस्लाम पर टिप्पणी करने पर किसी को देश निकाला मिला, कोई मार दिया गया , किसी के सिर पर करोड़ों का इनाम रख दिया। देश में अभिव्यक्ति की आजादी को क्यों दबाया जा रहा, अगर टिप्पणी की थी तो कमलेश ने जेल भी तो काटी थी।
हिंदू नेता कमलेश तिवारी के कत्ल ने एक बात तो साफ कर दी है कि भारत में चाहे सरकार मोदी की हो या वाजपयी की या मनमोहन सिंह की। हिंदुओं पर कासिम, बाबर, औरंगजेब के जमाने वाले हमले जारी रहेंगे। कमलेश तिवारी की लखनऊ में उनके दफ्तर में गला रेतकर हत्या कर दी गई। उस दिन जुम्मा था। मौलवी के लिए तिवारी का गला रेतना इस्लाम में जायज था। एक गोली भी मारी गई जो जबड़ा चीरती हुई सिर के पिछले हिस्से में जाकर रुक गई। चाकू से 15 वार भी किए गए। इस्लाम के मुल्ला पिछले चार सालों से सौगंधें खा रहे थे कि तिवारी का सिर कलम करना है। कठमुल्लाओं द्वारा उसके सिर पर लाखों के इनाम रखे गए थे। सिर कलम करते वक्त कलमा पढ़ा जाता है। हमने बहुत बार सोशल मीडिया पर इस्लामिक स्टेट के आतंकियों द्वारा गला रेतते वक्त कुरान की आयतें पढ़े जाने वाले वीडियो देखे हैं। अल्लाह हू अकबर कहते कहते सिर धड़ से अलग कर दिए जाते हैं।
सउदी अरब में कानूनन गला रेतते वक्त आयतें पढ़ी जाती हैं। इस्लाम इसकी इजाजत देता है। तिवारी ने तो फेसबुक पोस्ट के जरिए पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी की थी। कुरान में भी साफ साफ लिखा है कि काफिरों के सिर कलम करने से जन्नत मिलती है। काफिर की एक ही परिभाषा है। गैर इस्लामी। 19 अक्टूबर को राजनीतिक विश्लेषक अब्दुल रज्जाक खान ने टाइम्स नाउ चैनल पर कहा कमलेश के साथ ऐसा ही होना चाहिए था। लगातार तिवारी को मारने की धमकी वाले कई वीडियो, शायरी भरे संदेश वायरल होने लगे हैं। इससे एक बात तो यह है कि मुहम्मद पर टिप्पणी पर 1 अरब से अधिक लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। टिप्पणी चाहे तथ्यों के आधार पर ही क्यों न की गई हो। उन्हें तो बस मारना ही है।
नीचे ट्वीट पर यह गाना तो फिर से वायरल हो गया है
While plastic journos with Hindu sounding names were sharing fake stories about imaginary Hindu kids asking imaginary Muzlim kids to ‘go to Pakistan’, REAL Muzlim kids were doing this 👇 https://t.co/GkRgHOulGa
— Shefali Vaidya. (@ShefVaidya) October 20, 2019
तिवारी ने मुहम्मद पर रंगीला रसूल नाम से फिल्म भी बनाने जा रहे थे
बात 29 नवंबर 2015 की है। आजम खान ने आरएसएस के स्वयंसेवकों को समलैंगिक कह दिया था। आजम खान का कहना था कि आरएसएस वाले शादी नहीं करते क्योंकि वह समलैंगिक हैं। इस पर लखनऊ से हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी ने आजम खान के बयान के खिलाफ पैगंबर मुहम्मद पर एक टिप्पणी की थी। दैनिक भास्कर की एक खबर के मुताबिक तिवारी ने कहा था कि मुहम्मद पैगंबर भी एक गे थे। उनके अपने ससुर और पहले खलीफा अबु बकर के साथ अंतरंग संबंध थे। उन्होंने अबु बकर की 9 साल की बेटी आइशा के साथ रेप किया और बाद में उससे शादी भी कर ली। दैनिक भास्कर में 30 नवंबर, 2015 को छपी खबर में यह भी लिखा गया है कि तिवारी ने कहा था कि मदरसों में समलैंगिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। मदरसे भी पैगंबर मुहम्मद का ही अनुसरण करते हैं और मदरसों का बढ़ाकर आजम खान उनका संरक्षण कर रहा है। तिवारी 20वीं सदी की शुरुआत में लिखी एक किताब रंगीला रसूल पर भी फिल्म बनाने की बात करते थे।
देश भर में दर्जनों वाहन जला दिए गए, तिवारी को जेल भेजा गया था
उस टिप्पणी के बाद उस वक्त समाजवादी पार्टी की सरकार ने तिवारी के खिलाफ रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगा उन्हें जेल भेज दिया गया था। यानी कानून ने तिवारी को सजा सुनाई और उसे दो दिन के भीतर भीतर 2 दिसंबर, 2015 को ही जेल भेज दिया गया। मगर सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट के खिलाफ 3 जनवरी, 2016 को बंगाल के मालदा में दो दर्जन गाड़ियों को आग लगा दी गई, थाने पर हमला हुआ और उसे भी आग के हवाले कर दिया गया। बिहार के पूर्णिया जिले में 7 जनवरी, 2016 को आल इंडिया इस्लामक काउंसिल ने बाइसी थाने में तोड़फोड़ की, थाने से कई दस्तावेज अपने साथ ले गए। बाकी राज्यों में भी आगजनी और गुंडागर्दी की गई। बाद में तिवारी के खिलाफ रसुका हटा लिया गया था।
पढ़ें कब कब इस्लाम पर टिप्पणी पर मुसलमानों ने कैसे रिएक्ट किया है
2005 डेनमार्क के अखबार में कार्टून छपेः 200 लोग मारे गए
बात 30 सितंबर 2005 की है। डेनमार्क की पत्रिका यालंड्स पोस्टन (Jyllands-Posten) में कुछ कार्टून छपे। मुहम्मद के कार्टून में उनकी शान में कोई गुस्ताखी नहीं की गई थी। उन्हें इस्लाम के संस्थापक और मुसलमानों के मुखिया के तौर पर ही छापा गया था। ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की गई थी कि जिससे कार्टून विवादास्पद लगें। मगर डेनमार्क के एक छोटे से कस्बे वाइबी की उस अखबार जिसकी देश भर में सर्कुलेशन महज 1.2 लाख कॉपी है ने पूरी दुनिया में बवाल खड़ा कर दिया। हालांकि उस वक्त न तो ट्वीटर और न ही फेसबुक इतने सक्रिय हुआ करते थे। अखबार के उस वक्त के संपादक फ्लेमिंग रोज़ का कहना है कि हर मुस्लिम देश ने अपने अपने राजनीतिक फायदे के लिए उन कार्टून का इस्तेमाल किया। सबसे पहले फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास ने इसे मुद्दा बनाया। धीरे धीरे मिस्र की राजनीतिक पार्टियों ने, पाकिस्तान, सउदी अरब, कतर और जिन जिन मुस्लिम देशों में चुनाव या राजनीतिक उठा पठक चल रही थी सबने इस कार्टून के फायदा उठाया। सीरिया और एक अन्य देश में डेनमार्क के दूतावास को बम से उड़ा दिया गया। आगजनी हुई। दुनिया भर के मुस्लिम देशों में लगभग 200 लोगों की जान चली गई। अरबों की संपत्ति नष्ट हो गई। अखबार के पूर्व संपादक रोज़ अब भी सुरक्षा गार्ड लेकर चलते हैं। रोज का कहना है कि जिन 200 लोगों की जान गई या जिन लोगों ने हमारे देश के दूतावास जला दिए या जिन देशों ने हमारे देश के साथ व्यापारिक रिश्ते खत्म कर दिए उन्होंने असल में कार्टून देखे या समझे भी नहीं थे। आप जो मर्जी कह लो। यही कट्टर इस्लाम और उदारवादी इस्लाम है। जबकि मुहम्मद के कार्टून और पेंटिंग पहले भी बनती रही हैं। शुरू से।
2015ः फ्रांस की अखबार चार्ली हेब्दो की पूरी टीम समेत 12 को मार डाला
7 जनवरी, 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में चार्ली हेब्दो नाम की मैग्जीन के दफ्तर में दो जेहादी घुसे और मैग्जीन के संपादक स्टीफन चार्बोनियर (Stephane Charbonnier) समेत 12 लोगों की हत्या कर दी गई थी। हत्या को अंजाम अलकायदा के दो आतंकियों ने दिया था। दोनो भाई थे और काफी समय से चार्ली हब्दो से बदला लेना चाहते थे। हमले के बाद फ्रांस के सुरक्षा बलों ने उन्हें मार गिराया था। चार्ली हेब्दो के पहले दफ्तर पर भी बम से हमला हुआ था। उसके बाद दफ्तर बदल लिया गया था।
चार्ली हेब्दो का अगला अंक जल्द ही सोल्ड आउट हो गया था।चार्ली हेब्दो पर हमले के बाद जब उसका अगला अंक छपा था तब उसकी 79 लाख प्रतियां बिक गई थीं। चार्ली हेब्दो और डेनमार्क की मैग्जीन के संपादकों का यह कहना था कि अगर एक संप्रदाय के लोग उस धर्म संप्रदाय की किताब का हवाला देते हुए हवाई जहाजों को क्रैश कर देते हैं। हजारों लोगों को बम बंदूकों से मौत के घाट उतार देते हैं। ऐसे धर्म संप्रदायों के खिलाफ क्या व्यंग्य और कार्टून छापना कौन सा जुर्म हो गया। चार्ली हेब्दो और डेनमार्क की अखबार ने ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस क्राइस्ट के बारे में भी कई नग्न और विवादास्पद कार्टून छापे हैं। हिंदू धर्म के देवा देवताओं पर भी व्यंग्य किए हैं। भगवान गणेश पर भी कार्टून छापे हैं। मगर किसी ने चार्ली हेब्दो की टीम का कत्लेआम नहीं किया। अभिव्यक्ति की आजादी और 21वीं सदी में डिबेट और व्यंग्य जहां सबसे ज्यादा जरुरत है वहां बंदूक या चाकू से उसे रोका नहीं जा सकता।
1988: सलमान रुशदी के खिलाफ ईरान ने फतवा जारी कर दिया, सिर पर 24 करोड़ रुपए का इनाम
कश्मीरी मूल के ब्रिटिश नागरिक और प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेज सितंबर 1988 में छपी। उससे पहले वह मिडनाइट चाइल्ड के लिए मैन्स बुकर अवार्ड जीत चुके थे।सैटेनिक वर्सेज में पैगंबर मुहम्मद के किरदार को विवादास्पद ढंग से रेखांकित किया गया था। इरान ने उसी वक्त रश्दी के नाम मौत का फतवा जारी कर दिया। ब्रिटेन के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए। दुनिया भर में दंगे भड़क गए। आगजनी में दर्जनों लोग मारे गए। 3 अगस्त 1989 को मुस्तफा महमूद मजेह नाम का एक व्यक्ति लंदन के एक होटल में एक किताब में आरडीएक्स फिट कर रहा था। उस किताब को रुश्दी को भेंट किया जाना था। बम फिट करते वक्त फट गया और होटल के दो फ्लोर ध्वस्त हो गए। मजेह मौके पर मारा गया। बाद में मजेह को इरान सरकार ने शहीद का दर्जा दिया और उसकी मां को इरान में बसने का न्यौता दिया गया। 72 वर्षीय रुश्दी कई बार भारत आए लेकिन उनकी किताब सैटेनिक वर्सेज से अभी तक प्रतिबंध नहीं हट पाया है। वह सालों अंडर ग्राउंड रहे। उन्हें हर 14 फरवरी को धमकी भरे कार्ड मिलते हैं।
1994: डॉ. तस्लीमा नसरीन 29 साल से देश निकाले पर है
तस्लीमा नसरीन जब भी किसी कार्यक्रम में जाती हैं मुसलमान उन पर हमला कर देते हैं। वह एक बांग्लादेशी एमबीबीएस डॉक्टर हैं। फिजिशियन के तौर पर बांग्लादेश में काम कर रही थीं। मेडिकल कालेज में रेप और पीड़ित महिलाओं को देखकर उनका मन बहुत दुखता था। उन्होंने एक के बाद एक लेख और किताबें लिखीं। उन किताबों में इस्लाम में महिलाओं के साथ जानवरों जैसे बर्ताव की सच्ची कहानियां छापीं। मगर जब उन्होंने 1993 में लज्जा फिल्म लिखी तब उनकी जान खतरे में पड़ गई। उन्हें देश छोड़ना पड़ा और तब से अब तक वह देश निकाले के तहत दुनिया के अलग अलग देशों में रह रही हैं। उन्हें आधा दर्जन देशों ने नागरिकता भी दी हुई है। भारत के कोलकाता में भी वह कुछ साल रहीं लेकिन भारत की सरकारों ने तुष्टिकरण की नीति के तहत उनका साथ नहीं दिया और उन्हें भारत भी छोड़ना पड़ा। डॉ. तस्लीमा नसरीन को तो बांग्लादेश सरकार ने उनकी पिता से भी नहीं मिलने दिया था जो उस वक्त मृत्यूशैया पर पड़े थे।
अभिव्यक्ति की आजादी बहाल होनी चाहिए
अगर कोई व्यक्ति इतिहास के पन्नों से कुछ लाकर छापता है या सोशल मीडिया पर टिप्पणी करता है तो उसका कत्ल कहां तक जायज है। यह 7वीं सदी नहीं है और न ही यह सउदी अरब का कोई कबीला है। यह भारत है और यहां भारत का संविधान चलता है। अरब के देश में जन्मे किसी धार्मिक गुरु के बारे में टिप्पणी अभिव्यक्ति की आजादी के तहत ही की जाती हैं। दुनिया भर में उस धर्मगुरु के नाम पर रोजाना कत्ल हो रहे हैं। लोगों के कले काटते हुए के वीडियो सामने आ रहे हैं। सीरिया में यजदी लड़कियों को मंडी में निलाम किया जा रहा है। ऐसे में ऐसी मानसिकता को जन्म देने वाले धर्मगुरु के बारे में अगर कोई टिप्पणी होती है तो उसे डिबेट के जरिए चैलेंज किया जाना चाहिए न कि किसी का गला काट दिया जाए। हालांकि वामपंथी गुट और तथाकथित लिबरल बुद्धिजीवी इस नृशंस हत्या पर मौन हैं।
*सोर्सः कमलेश तिवारी के 4 साल पुराने बयान पर दैनिक भास्कर की खबर नीचे क्लिक कर पढ़ेंः
रवि रौणखर, जालंधर
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