वित्त मंत्री अरुण जैटली ने हाल ही में राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए कहा है- “राहुल गांधी स्पष्ट करें कि बैकॉप्स कंपनी भारत में क्यों बनाई गई थी और बाद में लंदन में? राहुल गांधी अपने से जुड़े मामलों में जिस तरह से चुप्पी साध लेते हैं वह इस बार नहीं चलेगा। इस संदिग्ध सौदे में उनका नाम सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। चोर मचाए शोर!”
इस सारे मामले को सरल भाषा में समझने से पहले आपको यह मालूम होना चाहिए कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी जो नेशनल हेराल्ड घोटाले में पहले से ही जमानत पर चल रहे हैं, रक्षा सौदों मे दलाली से जुड़े एक और घोटाले में साफ़ तौर पर फंसते नज़र आ रहे है. वर्ष 2003 से वर्ष 2009 तक राहुल गांधी यूके आधारित जिस ‘बैकओप्स कंपनी’ के प्रमोटर रह चुके हैं, ठीक उसी कंपनी में राहुल गांधी के को-प्रमोटर रहे एक अन्य व्यक्ति यूलरिक मैकनाइट का फ्रांस की एक कंपनी के साथ एक कनेक्शन सामने आया है, जिसके साथ भारत की एक निजी कंपनी ने वर्ष 2011 में एक रक्षा अनुबंध किया था. राहुल गांधी के करीबी को एक भारतीय निजी कंपनी से संबंधित रक्षा सौदे में फ्रांस की एक कंपनी द्वारा ऑफसेट पार्टनर बनाया जाना कई सवाल खड़ा करता है.
राहुल गांधी ‘बैकओप्स कंपनी’ के प्रमोटर के साथ-साथ मुख्य शेयर होल्डर भी थे. उनके पास इस कंपनी के 65% इक्विटी शेयर थे, जबकि उनके साथी यूलरिक मैकनाइट के पास इस कंपनी के 35% इक्विटी शेयर थे. हालांकि वर्ष 2009 में ‘बैकओप्स कंपनी’ को खत्म कर दिया गया था. वर्ष 2011 में भारत की यूपीए सरकार के दौरान फ्लैश फोर्ज लिमिटेड नाम की एक कंपनी ने फ्रांस की एक अन्य कंपनी ‘नेवल ग्रुप’ से स्कोरपीन सबमरीन खरीदने का अनुबंध किया था. यह अनुबंध कुल 20 हजार करोड़ का था.अब यह बात सामने आई है कि राहुल गांधी के पूर्व बिजनेस पार्टनर ने इसी अनुबंध के समक्ष नेवल ग्रुप के साथ एक डिफेंस ऑफसेट अनुबंध किया था जो कि यूपीए के शासनकाल के दौरान किया गया था. अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपने करीबी को यह अनुबंध दिलाया था, ताकि सीधे तौर से वे उनको फायदा पहुंचा सके?
अनुबंध के तहत 6 सबमरीन के पुर्जों को मुंबई की एक कंपनी ‘मजागांव डॉक लिमिटेड ’ द्वारा बनाया जाना था. फ्रांस की नेवल ग्रुप कंपनी को इसी कंपनी के साथ मिलकर 6 सबमरीन को तैयार करना था. फ्लैश फ़ोर्ज ने जिस वर्ष यह अनुबंध किया था, ठीक उसी वर्ष इस कंपनी ने यूके आधारित एक कंपनी ‘ऑप्टिकल आर्मर लिमिटेड’ को भी खरीद लिया था. इसके अगले वर्ष 2012 में फ्लैश फ़ोर्ज कंपनी के 2 निर्देशकों को ‘ऑप्टिकल आर्मर लिमिटेड’ का निर्देशक बना दिया, और इनके साथ ही राहुल गांधी के करीबी यूलरिक मैकनाइट को भी इस कंपनी का डायरेक्टर बना दिया गया और इस कंपनी के साथ डिफेंस ऑफसेट का अनुबंध कर लिया गया. इसके बाद वर्ष 2013 में फ्लैश फोर्ज ने ब्रिटेन की एक दूसरी कंपनी ‘कंपोजिट रेसिन डेवलपमेंट लिमिटेड’को भी खरीद लिया और इस कंपनी डायरेक्टर में भी राहुल के पूर्व बिजनेस पार्टनर यूलरिक मैकनाइट बनाया गया.
राहुल गांधी को एक अन्य भारतीय कंपनी बैकओप्स सर्विस प्राइवेट लिमिटेड से जोड़कर भी देखा जा चुका है जहां उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को-डायरेक्टर के तौर पर काम किया है. वर्ष 2004 के चुनावी हलफनामे में राहुल गांधी ने इस कंपनी में अपने 83% शेयर्स को दिखाया था, और साथ में यह भी खुलासा किया था कि उन्होंने इस कंपनी में ढाई लाख रुपयों का निवेश भी किया है. हालांकि जून 2010 में इस कंपनी को भी खत्म कर दिया गया था.
कुल मिलाकर जहां राहुल गांधी की यूके आधारित बैकओप्स लिमिटेड कंपनी की कार्यशैली संदेह के घेरे में रही, वहीं दूसरी ओर भारत आधारित बैकओप्स सर्विस प्राइवेट लिमिटेड भी कई विवादास्पद प्रोजेक्ट्स का हिस्सा रही. राहुल गांधी की इस कंपनी को निर्माण के महज़ कुछ समय के अंदर ही रहस्यमयी तरीके से कई अहम प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बना दिया गया. एक नई कंपनी को करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट्स मिलना किसी को भी सुनने में बड़ा अटपटा लग सकता है. हालांकि, यह भी सच्चाई है कि इन सब मामलों से देश के कारोबार क्षेत्र में अनैतिक राजनीतिक हस्तक्षेप का पर्दाफाश हुआ है.