जो लोग पिछले कई दशकों से देश और देश की जनता को लूटने के लिए अपनी अपनी दुकाने खोले बैठे हुए थे, २०१४ के बाद से उनकी दुकानदारी या तो बंद हो गयी है, या फिर बंद होने वाली है. कुछ समय ऐसा ही और चला तो इनकी दुकानें ही स्थाई रूप से बंद हो जाएंगी.
अब इन सारे दुकानदारों में खलबली इस बात को लेकर मची हुई है कि मोदी को कैसे सत्ता से बाहर किया जाए और अपनी “लूटपाट और ठगी” की दुकानों को फिर से सजाया जाए. मोदी को हटाने के लिए कभी यह लोग पकिस्तान की मदद मांगते हैं, कभी “असहिष्णुता” का झूठा राग अलापकर अपने “अवार्ड वापसी गैंग” से अवार्ड वापस करवाते हैं, कभी नकली किसान और दलित आंदोलन करवाते हैं और कभी “राफेल” का सफ़ेद झूठ देश के सामने परोसकर जनता को गुमराह करने की कोशिश करते हैं. इसके बाद भी इन सबकी इतनी औकात नहीं है कि मोदी के खिलाफ अकेले चुनाव मैदान में उतर कर दिखाएँ, लिहाज़ा महाठगबंधन बनाकर मोदी को परास्त करने का दिवा स्वप्न भी देखते हैं.
लेकिन यह क्या हुआ? महाठगबंधन तो बनने से पहले ही बिखर गया. देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, यह सभी को मालूम है लेकिन यहां तो सर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो गयी. एक दूसरें के कट्टर विरोधी रहे मायावती और अखिलेश यादव ने कांग्रेस को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर एक तरफ फेंक दिया और कांग्रेस को सहानुभूतिवश अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़कर बाकी सभी सीटों पर बिना कांग्रेस को लिए ही गठबंधन कर लिया. यहां सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि अखिलेश-मायावती के गठबंधन ने कांग्रेस को एक तरफ कर दिया. सवाल यह महत्वपूर्ण है कि एक दूसरें की कट्टर विरोधी रही बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी क्या कोई चमत्कार कर पाएंगी ?
पांच सितारा होटल में बैठकर इन दोनों पार्टियों ने जो गठबंधन किया है, उसमे दोनों ही पार्टियों के जमीनी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं की न तो कोई सहमति ली गयी है और न ही यह संभव है कि यह दोनों पार्टियां इस तथाकथित कागज़ी गठबंधन का कोई फायदा उठा पाएंगी. मायावती के साथ जो दुर्व्यवहार समाजवादी पार्टी के नेताओं ने बरसों पहले किया था , उसे भले ही मायावती अपने सियासी फायदे के लिए एक बार भुला भी दें, लेकिन जो जमीनी स्तर का कार्यकर्त्ता है, वह यह सब भुलाने के लिए तैयार नहीं है. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्त्ता भी आज भी मायावती के बारे में वही सोच रखते हैं, जो इस गठबंधन बनने से पहले थी. कुल मिलाकर मोदी जी के खिलाफ किया जाने वाला महागठबंधन पूरी तरह असफल हो गया है और आने वाले दिनों में कांग्रेस अध्यक्ष सत्ता को पाने के लिए “राफेल” जैसी फेक न्यूज़ फैलाकर ही मोदी सरकार को बदनाम करने की चेष्टा कर सकते हैं. इस तरह की “फेक न्यूज़” कांग्रेस को २०१९ की सत्ता दिला पाएगी, इस बात पर देश की समझदार जनता को संदेह हमेशा बना रहेगा.
२०१४ में भी मैंने एक लेख लिखा था कि कांग्रेस के लिए यह आत्मचिंतन का समय है और उन्हें अपने हार के कारणों पर गंभीरता से विचार करते हुए अगले चुनावों की तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए.लेकिन यह काम कांग्रेस पार्टी के नेताओं को कठिन लगा. उन्हें यह लगा कि जिस तरह छल फरेब से केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता हथियाई है, वह तरीका आसान है और इसीलिए उस दिन से लेकर आज तक राहुल गाँधी एक दूसरें केजरीवाल बने घूम रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट से फटकार खाने के बाद भी संसद में “राफेल” का मुद्दा फिर से उठाते हैं,स्पीकर पूछती है कि क्या राहुल गाँधी के पास इस सफ़ेद झूठ को साबित करने के लिए कोई प्रमाण है तो वह साफ़ साफ़ कहते हैं-” नहीं.मेरे पास कोई सुबूत तो नहीं है लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि मोदी चोर है”
अब अगर राहुल गाँधी या कोई और नेता ऐसा समझता है कि इस तरह के बेबुनियाद आरोपों को पूरी बेशर्मी के साथ बार-बार दोहराने से उसे सत्ता मिल सकती है, तो अभी भी ३-४ महीने का समय बाकी है-राहुल गाँधी ऐसे झूठे आरोप लगाने के लिए पूरी तरह आज़ाद हैं. झूठ बोलकर उन्हें केजरीवाल की तरह सत्ता मिलेगी या नहीं, यह आने वाला समय ही बताएगा.