संघ-प्रमुख मोहन भागवत जी ने कहा है कि भारत को इतना शक्तिशाली होना चाहिए कि कोई देश हमपर आक्रमण करने की बात सोच भी न सके।
यही-यही वह साम्प्रदायिक विचारधारा है जिसका मैं विरोध करता हूँ। भारत अपने इतिहास के आरम्भ से ही एक कमज़ोर राष्ट्र रहा है; इसका प्रमाण यह है कि यहाँ जो भी आया, हमें ठोंक गया। शक, कुषाण, हूण, यूनानी, इस्लामी, पुर्तगाली, अंग्रेज़- हम सभी से न केवल पराजित हुए, बल्कि सबसे कुचले गये। यही हमारा इतिहास है, यही हमारी परम्परा है।
अगर हम १००० साल पहले शक्तिशाली रहे होते, तो राजा दाहिर ने मुहम्मद बिन कासिम को हरा दिया होता और इस्लाम इस देश में आ ही न पाता। और अगर ऐसा हो जाता, तो शान्ति के इस महान धर्म और धर्मनिरपेक्षता जैसे महान सिद्धांत से तो हम अपरिचित ही रह जाते। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत का शक्तिशाली होना देश के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे के लिए ठीक नहीं है। चाचा नेहरु ने इस बात को समझते हुए देश की सुरक्षा को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे निचला स्थान दिया था। आज के परिप्रेक्ष्य में शक्तिशाली होने का अर्थ होगा-पाकिस्तान पर निर्णायक विजय प्राप्त करना, और यह घटना भी देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर बुरा असर डालेगी। एक तो देश का वह वर्ग जो देश में इस्लामी शासन-व्यवस्था स्थापित करना चाहता है, उसका मनोबल एक बार तो टूट ही जाएगा, और उसे नये सिरे से इस दिशा में प्रयास आरम्भ करने होंगे, और दूसरे आज जो हमारे कांग्रेसी मित्र देश में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए पाकिस्तान से मदद माँगने चले जाते हैं, वह कहाँ जाएंगे?
मैं समझता हूँ कि राहुलजी यह जो राफेल-सौदे का इतना विरोध कर रहे हैं, वह इस कारण से नहीं है कि सौदे में मोदी या अम्बानी ने १३०००० करोड़ रूपये बना लिये: एकाध लाख करोड़ रूपये इधर से उधर हो जाने से इस देश या कांग्रेस पार्टी को क्या फ़र्क पड़ना है? विरोध का प्रमुख कारण यह है कि मोदी देश को शक्तिशाली बनाकर अपना साम्प्रदायिक अजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। राहुलजी भला ऐसा कैसे होने दे सकते हैं?
बात सीधी सी है: भारत को शक्तिशाली नहीं होना चाहिए क्योंकि शक्तिशाली भारत साम्प्रदायिक भारत होगा। धर्मनिरपेक्ष होने के नाते मोहन भागवत की हर बात का विरोध करना वैसे भी हमारा कर्तव्य है, तो आइए, देश को शक्तिशाली बनाने के मोहन भागवत के विचार का हम बलपूर्वक विरोध करें।