काका हाथरसी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी रचनाओं ने बहुतों को न केवल हंसाया बल्कि देश के राजनीतिक परिवेश को झेलने में मदद भी की।
वैसे तो उनकी रचनाएं वक्त से परे हैं, और किसी भी समय के परिदृश्य में सटीक ही रहेंगी परन्तु आज के समय में जो लोग उनकी कविताओं को पढ़ेंगे वे चौंक जाएंगे कि काका ने समय से पहले ही ये कैसे लिख दिया। इसलिए हमने सोचा कि चूंकि काका तो हमारे पैदा होने से पहले निकल लिए, तो क्यूं ना उनकी ओर से हमीं कुछ बातें साफ कर दें।
इसलिए उनकी चंद पंक्तियों के साथ हमने एक-एक पंक्ति का ‘डिसक्लेमर’, जिसे अंग्रेजी में अस्वीकरण कहते हैं, जोड़ दिया।
“गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाता।
जो मूल शब्द था सदाचोर वह सदाचार अब कहलाया॥”
नोट- इसका लालू से संबंध नहीं
“गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं।
है सारी जनता थर्ड क्लास, एयरकंडीशन नेता मैं॥”
नोट- इसका राहुल से संबंध नहीं
“रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूं।
यदि भूले-भटके ले भी लूं तो कृष्णार्पण कर देता हूं॥”
नोट- इसका अखिलेश से संबंध नहीं
“अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो।
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो॥”
नोट- इसका मायावती से संबंध नहीं
“नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर?
नाम मिला कुछ और तो, शक्ल अक्ल कुछ और
शक्ल अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने
बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने
कहँ ‘काका’ कवि, दयाराम जी मारें मच्छर
विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर”
नोट- इसका शेहला से संबंध नहीं
“चतुरसेन बुद्धू मिले बुद्धसेन निर्बुद्ध
श्री आनंदीलालजी रहे सर्वदा क्रुद्ध
रहें सर्वदा क्रुद्ध, मास्टर चक्कर खाते,
इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते,
कहं ‘काका’, बलवीरसिंहजी लटे हुए हैं,
थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुए हैं।”
नोट- इसका कन्हैय्या से संबंध नहीं
“पूंछ न आधी इंच भी, कहलाते हनुमान,
मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर-कमान।
घर में तीर-कमान, बदी करता है नेका,
तीर्थराज ने कभी इलाहाबाद न देखा।
सत्यपाल ‘काका’ की रकम डकार चुके हैं,
विजयसिंह दस बार इलैक्शन हार चुके हैं।”
नोट- इसका जिग्नेश या राहुल से संबंध नहीं
“बिना टिकट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू
पकड़ें टी. टी. गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू
गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना
प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना”
नोट- इसका किसी चिदम्बरम से संबंध नहीं
“शान – मान – व्यक्तित्व का करना चाहो विकास
गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास
नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ
बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ
‘ काका ‘, सीखो रंग – ढंग पीने – खाने के
‘ रिश्वत लेना पाप ‘ लिखा बाहर थाने के”
नोट- इसका मुलायम से संबंध नहीं