समय निरंतर निरंकुश दौड़ता रहता है। इस दौड़ में कई चीजें बदल जाती हैं तो कुछ शाश्वत प्रतीत होती हैं। वैसे शाश्वत चीजों की फेहरिस्त बड़ी छोटी ही है। समय दौड़ता रहता है, बदलता रहता है। अभी भी बदल रहा है।
समय के साथ कब क्या कैसे बदल जाए या कौन से छोटे बदलाव बड़े-बड़े बदलावों का मार्ग प्रशस्त कर दें और किस बड़े बदलाव से कोई फर्क न आए ये तो ज्योतिष का कोई प्रकांड विद्वान भी नहीं भांप सकता।
बदलाव की इस फेहरिस्त में मौसम को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है चूंकि मौसम का मिजाज समझना अपनी प्रेमिका अथवा अर्द्धांगिनी के रूठने का कारण जानने से भी कहीं अधिक दुष्कर व दुस्साध्य है। इसकी कठिनाई इस बात से ही मापी जा सकती है कि दुनिया भर के देशों के मौसम विभाग न जाने कितने कम्प्यूटर, सैटेलाइट की मदद के बावजूद सटीक अनुमान विरले ही लगा पाते हैं जबकि मात्र दो कोशिशों के बाद आप को मालूम हो जाता है कि देवी जी इसलिए खिन्न हैं कि गलती आपकी है। परंतु वातावरण के मौसम का अंदाजा लगाना राजनीति के मौसम का आंकलन करने से सरल है। और जिसे इस मौसम की परख होती है वही असली मौसम वैज्ञानिक कहलाता है।
मुझे पता है कि आखिरी पंक्ति पढ़ते ही कुछ पाठकों ने चीनी पत्रकार के सदृश आंखें घुमा कर सोचा होगा कि अभी ये बेशर्म लेख की आड़ में मोदी और शाह को चापलूसी करेगा। ऐसा सोचने वाले पाठक सरासर गलत हैं। मैं रवीश नहीं हूँ, आड़ से नहीं, खुल के चापलूसी करता हूँ। लेकिन यह लेख उनके बारे में नहीं है।
सच तो ये है कि ये दोनों मौसम पढ़ने में बिलकुल ही फिसड्डी हैं, इसलिए ये उच्च कोटि के कपटी धूर्त चीटिंग करते हैं और अपना पसंदीदा मौसम खुद ही बना लेते हैं। ये लेख असली मौसम वैज्ञानिकों को समर्पित है।
जैसे वातावरण वाला मौसम हवा के साथ ही बदल जाता है, राजनीति के मौसम में भी ‘हवा’ का बड़ा महत्व है। सत्ता पर काबिज होने के लिए ‘हवा’ का अनुकूल प्रवाह अतिआवश्यक है। लेकिन किस तितली के कौन से पंख कहां फड़कने से ‘हवा’ की गति और दिशा कैसे परिवर्तित हो जाए यह तो खुद ‘हवा’ भी नहीं जानती। और इसे भांपना ही पूरा विज्ञान है।
कुछ ही समय पहले तक मौसम ठंडा था और वैज्ञानिक उदासीन। पूर्वोत्तर में बरसे ओलों की सर्द हवाएं सुदूर दक्षिण के केरल तक महसूस की गईं, तभी उत्तर प्रदेश में एक तितली उड़ी और मौसम में स्वतः गर्माहट आ गई, ख़िज़ाँ बहार में तब्दील हो गयी। वैज्ञानिकों की उदासीनता जोश में तब्दील हो गई। केवल वैज्ञानिक ही नहीं, मैडिसन के मशहूर मुक्केबाज दंपत्ती, सस्ती ठरक-कथाकार से लेकर ‘लिबरल’ मुस्लिम स्काॅलर और ‘टोल्ड यू सो’ अर्थशास्त्री तक सब हर्षोल्लास से भर गए हैं।
वैज्ञानिकों ने भी अपने अपने यंत्रों एवं उपकरणों को निकाल लिया है। हरफनमौला केंद्रीय वैज्ञानिक ने ‘हवा’ का ‘प्रवाह’ मापने के लिए आकाश में बयान-गुब्बारा उड़ाया है, वहीं विशिष्ट पदाभिलाषी वैज्ञानिक ‘विश्वास’ यंत्र से तापमान टटोल रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश की महिला वैज्ञानिक और उनके वैज्ञानिक भतीजे की क्या योजना है मुझे पता नहीं।
वहीं जिधर एक ओर दिल्ली के वैज्ञानिक पिछली थीसिस गलत होने के बावजूद संपादित करवाने के लिए माफी मांगने में व्यस्त हैं, उसके दूसरी ओर युवा वैज्ञानिक ने अपने शोशल मीडिया अवतार का नाम बदलने के बाद अपनी मम्मी से कहला कर पूरे संस्थान को अनुसंधान में लगा दिया है। सुनने में आया है कि इस युवा वैज्ञानिक की बहन ने वैज्ञानिक ना होने के बावजूद अनुसंधान में बहुत सहयोग किया, यहाँ तक कि शोधकार्य की निगरानी भी दीदी ही कर रही थीं।
इन सबों से जरा हटके, दक्षिण के वैज्ञानिकों ने तानसेन से प्रेणना ले कर ‘राग’ ‘अलगाव’ का अलाप किया है। देखना ये है कि क्या इससे दरबार की मोमबत्तियां जल उठेंगी?
देश में मौसम वैज्ञानिक बहुत से हैं, और सबकी अपनी अपनी सोच एवं थीसिस भी है। इनमें से कौन सबसे प्रतिभाशाली और कुशाग्रबुद्धि है? किसकी थीसिस कितनी परिशुद्ध? और किसका रिसर्च पेपर अंततः “साइंस जर्नल” में छपेगा? ये सब तो समय के साथ दौड़ते रहने पर ही पता चलेगा। तब तक आप जीवन का आनन्द उठाइए, पर जरा एक आंख मौसम पर भी बनाए रखिएगा, मौसम है, क्या पता कब पलट जाए!