आजकल देश मैं चारो तरफ एक ऐसा माहौल नजर आता है जैसे जहाँ देखो, जिसे देखो और जब देखो, हर कोई ख़फ़ा ख़फ़ा सा है. चाहे अमीर हो, मध्यम श्रेणी से आता हो या गरीब हो. लेकिन आप अगर ध्यान से देखेंगे, चीज़ों को समझने की कोशिश करेंगे तो आपको हक़ीकत दिखाई देगी. हाँ कुछ लोग हैं जो सही में खफा है, नाराज है और देश मैं उनका दम घुट रहा है.
आइये जानने की और समझने की कोशिश करते हैं की सही मायने में कौन लोग ख़फ़ा हैं और पिछले 3 सालों में ऐसा क्या बदल गया की सद्धभावना और भाईचारे के प्रतिक हमारे देश में ऐसा अचानक क्या हो गया की उन लोगों का दम घुटने लगा है.
सबसे पहले बात करते हैं कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की. उनको अगर हम देखें, उनकी बातो को सुने तो ऐसा लगेगा जैसे हामरे देश में उनके ऊपर कोई अत्याचार किया जा रहा है. वो इतने ज़्यादा ख़फ़ा हैं की वो देश के टुकड़े करने वाली बाहरी ताकतों से हाथ मिलाने में और देश के खिलाफ साजिश करने में कोई हिचक, कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है. वो हर उस ताकत के साथ कंधे से कन्धा मिलाके खड़े नजर आते हैं जो ताकत दिन रात हमारे देश को विनाश में झोंकने के लिए लगी रहती है. अब सवाल ये उठता है हमारे देश के नागरिक होते हुए भी वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, क्या ऐसी मज़बूरी है तो उसके पीछे एक ही कारण है और वो है उनके विदेशो से आने वाले करोड़ो रूपये के चंदे पर रोक जो भारत सरकार ने पिछले तीन सालों से लगा रखी है. ये विदेशी चंदा इन लोगों के द्वारा बनाई गए सामाजिक संस्थानों में भारत विरोधी ताकतों द्वारा भेजा जाता था और उसका प्रयोग देश के एकता और अखंडता को चोट पहुँचाने के लिए होता था. अब जब से ये काली कमाई का जरिया बंद हुआ है, ये लोग भारत सरकार से खफा हैं और देश में सोशल मीडिया के माध्यम से एक झूठा प्रचार प्रसार हो रहा है की भारत में रहना अब मुश्किल हो गया है.
इसके बाद बारी आती है अफसरशाही की, उन अफसरों की जो सर्वोच्च पदों पे बैठे हैं और उनके ऊपर देश को चलाने की जिम्मेवारी है. पर वो लोग क्यों खफा है उनको तो आलिशान कार्यालय, महँगी गाड़ियां, बंगले और मोटी तनखाह जैसी सुबिधायें जनता के खून पसीने की कमाई में से दिए गए कर में से निकाल के दी जाती है. कोई भी सरकार हो, उनको तो ये सब मिलता रहा है और आज भी मिल रहा है फिर ऐसा क्या हो गया है. यहाँ दो तीन चीजे हैं जो महत्वपूर्ण हैं. सबसे पहले आज उनको सुबह 9 बजे से लेके रात को 9 बजे तक अपने कार्यालयों में बैठके काम करना पड़ रहा है जबकि पहले अपनी मर्जी से आते थे और चले जाते थे, नहीं भी आये तो फर्क नहीं पड़ता था. दूसरी बात है की ऊपर की काली कमाई जो लगभग बंद हो गई है. पहले करोड़ो के न्यारे वारे किये जाते थे एक फाइल को आगे बढ़ने के लिए पर अब जवाबदेही और समय सीमा तय कर दी गई है. तीसरा सरकारी काम के नाम में परिवार के साथ सरकारी खर्चे पे विदेशी छुटियों पे जाने का मौका मिलता था पर अब तो वो भी बंद हो गया इसलिए खफा होना समझ में आता है. अफसरशाही के खफा होने का आलम ये है की गलत नीतियाँ बनाके और संचालन प्रक्रिया को कठिन बनाके आम जनता को पेरशान कर रहे हैं ताकि लोग सरकार के खिलाफ हो जाए.
आखिर में खफा होने वालों की लिस्ट में शुमार है कुछ पत्रकार. अब वो खफा क्यों हैं जब सरकारों और पत्रकारों का तो चोली दामन का साथ नजर आता है. लेकिन पिछले 3 सालों में ये धारणा गलत साबित हुई है. पहले ये पत्रकार सरकारी फैसलों में अहम् कड़ी होते थे और बिचौलियों का काम करते थे क्यूंकि इनकी राजनितिक गलियारों में पैठ थी. किस अफसर का तबादला कहाँ करवाना है, सरकारी बाबुओं से बड़ी बड़ी परियोजनाओं की सहमति कैसे लेनी है, सरकारी योजनाओं का फायदा कैसे उठाना है ये सब काम ये लोग मोटे कमीशन की ऐवज में बखूबी कराते थे. पहले नेताओं के साथ मुफ्त में विदेशी छुटिट्यों पे जाने का मौका मिलता था लेकिन ये सब अब बंद हो गया है तो उनका भी खफा होना स्वाभाविक नजर आता है.
सरकारों से, देश चलाने वालों से खफा होना भी चाहिए पर कारण वास्तविक हो तो समझ आता है. कोई आपकी लूट खसोट बंद कर दे और आप उसपे खफा हो तो सिर्फ और सिर्फ निंदनीय है. इसे देश के साथ धोखा कहा जाता है चाहे वो कोई भी हो. आप, मैं या वो लोग.