अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?
सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर में?
उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी बता किस घर में
जब भी दिल्ली की दुर्दशा के बारे में सुनता हूँ या पढता हूँ, दिनकर की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं। 2015 की फरवरी को जब अरविन्द केजरीवाल के जीत के बाद अचानक से ही सागरिका घोष को दिल्ली एक बड़ा परिवार दिख रहा था, जहाँ लोग सड़कों पर एक दूसरे से गले मिल रहे और मुस्कुरा रहे थें, तब शायद सागरिका ने भी नहीं सोचा होगा कि एक साल में दिल्ली की हवा, पानी और सड़कें यूँ बदल जाएँगी कि वही मुस्कुराने वाले लोग सड़कों पर प्रदुषण मास्क और रूमाल बांधकर घूमते दिखेंगे।
प्रश्न ये उठता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री, जिन्होंने रामलीला मैदान और जंतर मंतर पर ईमानदारी और स्वच्छ राजनीति की कसमें खायी थी, वो आजकल क्या कर रहे हैं । उत्तर बेहतरीन है
केजरीवाल या तो ट्विटर पर बैठ कर मोदी को ट्रोल कर रहे हैं
हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति कहती है कि आपको अपनी बूढ़ी माँ और धर्मपत्नी को अपने साथ रखना चाहिए। PM आवास बहुत बड़ा है, थोड़ा दिल बड़ा कीजिए https://t.co/CT243GTTzc
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 10, 2017
या दिल्ली को बिलकुल भूल कर गोवा, पंजाब में क्रंति लाने की बातें कर रहे हैं
Congress High Command made Punjab manifesto. Why doesn’t Cong get these promises implemented in other Cong ruled states?
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 9, 2017
या फिर हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी, मीडिया, अदानी, अम्बानी पर दोष लादकर, अपना हाथ झाड़ ले रहे हैं
Dear AAJ Tak, BJP runs MCD, not AAP. Del’s cleanliness is MCD’s job. Stop blaming us n saving BJP on every issue pic.twitter.com/eC7WyPgeRR
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 9, 2017
घूम-फिर कर केजरीवाल का सारा समाधान वही आ जाता है — दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है; दिल्ली में मुख्यमंत्री के पास शक्ति नहीं है; दिल्ली के MCD वाले पैसे के लिए भूखे हैं।
दिल्ली सरकार और एमसीडी प्रशासन के बीच कई दिनों से गहमागहमी है, जिसके कारण कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है। सफाई कर्मचारियों को महीनों तक वेतन नहीं मिलता है, जिसके कारण हर कुछ दिन पर उनका हड़ताल शुरू हो जाता है। इस बार भी सफ़ाई कर्मचारियों को दो महीने से वेतन नहीं मिला था। हड़ताल और हल्ला के बाद दिल्ली सरकार ने 119 करोड़ का एडवांस फंड जारी किया, लेकिन सफाई कर्मचारियों के यूनियन अध्यक्ष संजय गहलोत का कहना है कि यदि सरकार 600 करोड़ रुपये देकर स्थाई समाधान नहीं निकालती तो हड़ताल चलता रहेगा| कुछ रिपोर्ट के अनुसार कई सफाई कर्मचारी मामले के राजनीतिकरण से काफ़ी दुःखी हैं।
ओटो वॉन बिस्मार्क ने कहा है, “Politics is the art of the possible, the attainable — the art of the next best”। राजनीति संभव करने की कला है। राजनीति में हमेशा चांदी की थाली में सबकुछ परोस कर नहीं मिलता। राजनीति में सबकुछ सजा सजाया नहीं मिलता। लेकिन अरविन्द केजरीवाल को सब कुछ चाहिए। यदि नगर निगम वाले भ्रष्ट हैं, तो उनसे काम कराने का समाधान भी तो राज्य सरकार ही निकलेगी ना? अगर मुख्यमंत्री केवल आरोप लगाकर पल्ला झाड़ता रहेगा तो उस बेचारी जनता का क्या होगा जिसने अपना खून पसीना एक करके उसे निर्वाचित किया था।
किसी राज्य में ग़रीब किसान मरता है तो केजरीवाल दिन भर ट्वीट करते हैं, कहीं किसी ग़रीब को demonetisation के चलते खड़ा होना पड़ता है तो केजरीवाल प्रेस-कांफ्रेंस बुलवा लेते हैं; लेकिन दिल्ली के ग़रीब सफ़ाई कर्मचारियों को जब महीनों महीनों वेतन नहीं मिलता, तब केजरीवाल की सारी कैफ़ियत ही बदल जाती है। ग़ौरतलब है कि समाधान निकालने की जगह आम आदमी पार्टी ने अपना पूरा वजन गोवा और पंजाब पर लगा दिया है, और बाकी के खाली समय में अरविन्द केजरीवाल बैठ कर मोदी और उनकी माँ पर चुटकुले लिख रहे हैं।