“मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हिरे मोती मेरे देश की धरती” लगभग पांच दशक पहले लिखे गए गुलशन बावरा के ये शब्द आज भी देशवासियो को गांव, खेत, खलिहान और किसान के उस भावनात्मक जुड़ाव को याद दिलाते है जो कभी न कभी हम सब का अतीत था। ये एक ऐसा अतीत है जो सुखद था और संपन्न भी। शहरीकरण और आधुनिकता के इस दौर में हमारे पास अपनी हर जरुरत को पूरा करने के कई विकल्प है। चाहे वो कही आने जाने के लिए यातायात के साधन हो या फिर सर्दी या गर्मी से बचने के लिए विशेष यंत्र। चाहे वो दुनिया से जोड़ने वाला कंप्यूटर हो या शारीरिक कष्टों से लड़ने की चिकित्सीय सुविधाएं। पर एक चीज़ जो न कभी बदली न कभी बदल पायेगी। जिसका कोई विकल्प ना बना है ना बन पायेगा। वो है अनाज, जो हमारी भूख को मिटाता है। ये अनाज दिन रात की मेहनत से गांव का किसान उगाता है। किसान ही हमारा अन्नदाता सदियों से रहा है और सदियों तक रहेगा। गर्मी, बरसात हो या पूस की सर्दी किसान दिन लगा रहता है अपने खेतो में। वो सच में गेहू की भूरी बालियों में सोना उगाता है। लेकिन क्या किसान का यह सोना खेतो से कटने के बाद उसके नियंत्रण में रह पाता है ? क्या खुद को गला जो फसल वो अपने खेतो में उगाता है उसे उसकी सही कीमत मिल पाती है? जवाब है नहीं …. कभी नहीं।
किसान की मिलकियत बस उसकी जमीन तक होती है। उसके बाद वो मंडी में जाता है। जहाँ उसका सामना मंडी के दलालो से होता है। मंडी के ये दलाल किसान के फसल की औनी पौनी कीमत लगाते है। बेचारा किसान गिद्धों के बिच फसे एक छोटे से परिंदे की तरह होता है जो बस किसी तरह अपनी जान बचा कर निकल भागना चाहता है। अपनी लागत के आस पास उसे जो भी कीमत मिलती है उसे ले कर वो अपनी फसल बेच देता है। बहुत ही कम दर पर यह खरीद होती है। कई बार ऐसे हालात जान बुझ कर बनाये जाते है जिससे बाजार मूल्य गिर जाए और किसान लागत से भी बहुत कम दर पर अपनी फसल बेच दे। ऐसे में भारत सरकार आगे आती है और किसानो को नुकसान से बचाने के लिए खुद उनकी फसल खरीदती है। साल में दो बार 23 विभिन्न फसलों के लिए भारत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP )की घोषणा करती है। ये बात ध्यान देने वाली है की वर्तमान सरकार ने विगत कुछ वर्षो में खरीद भी बढ़ाई है और MSP की दरे भी। सरकार हर तरह से किसानो के साथ खड़े होने का प्रयास कर रही है।
इसी प्रक्रिया में मोदी सरकार कृषि बिल 2020 ले कर आयी है। यह कानून हमारे कृषि प्रधान देश के किसानो को सशक्त बनाता है। इस बिल में उनकी समसयाओ के व्यवहारिक समाधानों का प्रावधान है। परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है की राजनितिक स्वार्थ के लिए किसानो को भड़काया जा रहा है। अफवाहों का बीज बो कर उनकी भावनाओ को उसकाया जा रहा है। झूठे दावे कर किसानो को आक्रोशित किया जा रहा है। किसानो को आस्वस्त करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी ने खुद कई बार सफाई दी है। सच और झूठ के फर्क को समझाने की कोशिश की है।
आइये हम भी कुछ झूठ और सच के फर्क को समझे :
1. न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने के लिए कृषि बिल की साजिश रची गयी है।
भारत सरकार ने यह स्पष्ट किया है तथा कई माध्यमों से ये प्रचारित भी किया है की MSP से कृषि बिल का कोई लेना देना नहीं है। MSP मिल रही है और आगे भी मिलती रहेगी। कृषि बिल में कहीं भी MSP की कोई चर्चा नहीं है। इसके उलट मोदी सरकार में MSP बढ़ा ही है। जैसे धान का MSP 2.4 गुणा, गेहू का 1.77 गुणा और दलहन 77 गुणा बढ़ा है।
2 . कृषि मंडियों को बंद कर दिया जाएगा।
मंडियों को ले कर सरकार ने कभी कोई चर्चा नहीं की है। मंडिया यथावत चलती रहेंगी। इसकी भी कोई चर्चा कृषि बिल में कही नहीं है। इसके उलट भारत सरकार किसानो को अपनी फसल देश की किसी भी मंडी में बेचने का विकल्प दे रही है। जहाँ अच्छी कीमत मिले किसान अपनी फसल वही बेच सकते है। यहाँ यह भी ध्यान रखना जरुरी है की APMC (कृषि उपज विपणन समिति ) राज्य सरकारों के अधीन होते है। उनका केंद्र के कानूनों से कोई लेना देना नहीं है।
3 . कृषि बिल किसानो को बड़ी कम्पनियो के अधीन कर देगा।
किसान को किसी दलाल या किसी मंडी के बजाय सीधे कंपनियों से साझेदारी करने की स्वतंत्रता होगी। एक पार्टनर की तरह किसान कंपनी को अपना माल बेच सकेगा। एक दीर्घकालिक साझेदारी किसान के हक़ में ही होगी। अगर कोई किसान आलू की खेती करता है तो उसे मंडी में जा कर आधे दाम में दलालो के माध्यम से आलू बेचने के बजाय एक चिप्स बनाने वाली कंपनी के साथ सीधा करार करने की स्वतंत्रता होगी। किसान को निर्धारित दाम मिलेगा। किसान इस करार से निकलने के लिए हमेशा स्वतंत्र होगा वो भी बिना किसी पेनल्टी के। किसान कंपनियों के अधीन नहीं बल्कि परोक्ष रूप से कम्पनिया किसानो के अधीन काम करेंगी।
4. किसानो की जमीन पर पूंजीपतियों का कब्ज़ा हो जायेगा।
किसान बिल में सिर्फ और सिर्फ किसानो के हित का ध्यान रखा गया है। बिल में यह साफ साफ़ निर्देशित है की जमीन की बिक्री, लीज और गिरवी रखना पूर्णतः निषिद्ध है। कम्पनी और किसान के बीच करार सिर्फ फसल का होगा। छोटे और मझले किसान तय मुनाफा करार के माध्यम से कमाएंगे।
एक बात स्पष्ट है की विपक्षी पार्टिया सच्चाई को छुपा करा उसके बिलकुल विपरीत एक उलटी छवि किसानो के सामने पेश कर रही है। इसमें उनका सिर्फ और सिर्फ राजनितिक स्वार्थ है। किसान का हित दरकिनार कर सिर्फ सरकार से टकराने के लिए किसानो को आगे किया जा रहा है। किसान ये भी न भूले की पंजाब और हरयाणा में किसानो को भड़काने वाली कांग्रेस पार्टी के अपने 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में एक ऐसे ही प्रावधान का वादा किया गया था।
किसान आंदोलन एक राजनितिक प्रयोग है। जो लोग लगभग सात साल से मोदी को किसी तरह की चुनौती नहीं दे पाए वो किसानो को मोहरा बना रहे है. प्रधानमंत्री भी अत्यंत चिंतित है शायद इसी लिए वो बार बार किसानो से अपील कर रहे है।