मित्रों आजकल एक २७ वर्षीय सनातनी संत कि खूब चर्चा प्रिंट मिडिया और इलेक्ट्रानिक मिडिया में हो रही है। ” अन्ध विश्वास निर्मूलन समिति” के नाम पर सनातन समाज से वैमनस्य रखने वाले भाड़े के टट्टूओ को मोहरा बना कर विधर्मी समूहो ने उन्हें किसी ना किसी प्रकार अपने षड्यंत्र का शिकार बनाने की कार्ययोजना पर अमल करना भी शुरू कर दिया है।
आप समझ गए होंगे की स्वामी नित्यानंद सहित अनेक संतो को बदनाम और अपमानित करके, सनातन धर्म के सबसे बड़े संत शंकराचार्य को गिरफ्तार करवा के इनका ह्रदय शांत ना हुआ तो अब इन्होने धीरेन्द्र शास्त्री जी को अपना अगला निशाना बना लिया है।
और कारण केवल एक है और वो है कि इनके धर्मपरिवर्तन के कुख्यात कार्यक्रम में श्री धीरेन्द्र शास्त्री जी अब रुकावट बनने लगे हैं, उन्होंने बुंदेलखंड के कई जिलों में राम कथा का वाचन करके कई धर्मांतरित आदिवासी परिवारों कि “घर वापसी” करवाई है।
इनके “घर वापसी” करवाने के सफल आयोजनो से क्रोधित होकर विधर्मीयो और सनातन विद्रोहीयो ने इनके विरुद्ध आपराधिक षड्यंत्र का सूत्रपात कर दिया है।
आइये देखते हैं कि आखिर ये महान संत है कौन?
बागेश्वर धाम:-
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम गढ़ा में स्थित “बागेश्वर धाम”, जो स्वंयभू हनुमान जी की दिव्यता के लिए देश – विदेश में प्रसिद्ध है। कई तपस्वियों की दिव्य भूमि है बागेश्वर धाम, जहां लोगों को बालाजी महाराज की कृपा और आशीर्वाद दर्शन मात्र से ही मिल जाते हैं।
अब आते हैं श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी पर, मित्रों इनका जन्म ४ जुलाई १९९६ को मध्य प्रदेश के छतरपुर के पास स्थित गड़ागंज ग्राम में हुआ था। इनके दादा पंडित सेतुलाल गर्ग भी कथावाचक थे। शास्त्री जी ने दीक्षा Bhej दादा से ही ली है। श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के जन्म के समय से इनका पूरा परिवार उसी गड़ागंज में रहता है, जहां पर प्राचीन बागेश्वर धाम का मंदिर स्थित है।
श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के दादा श्री पंडित भगवान दास गर्ग (सेतु लाल) ने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा हासिल की थी, जिसके बाद वे गड़ा गांव पहुंचे, जहां उन्होंने बागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर का जीर्णोंद्धार करवाया था। यहीं पर श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी के दादाजी भी दरबार लगाया करते, उन्होंने संन्यास आश्रम ग्रहण कर लिया था।
श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी ने शुरुआती शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हासिल की, उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा, गांव के स्कूल से हि पाई, इसके पश्चात की पढ़ाई के लिए उन्हें ५ किलोमीटर दूर गंज के स्कूल में जाना होता था। आर्थिक अभाव के कारण वह ५ किलोमीटर कि दुरी प्रतिदिन पैदल ही तय किया करते थे। यहां से उन्होंने १२वी तक की शिक्षा प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कला संकाय से स्नातक में दाखिला लिया, लेकिन आर्थिक अभाव और धर्म में भक्ति और आस्था के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।
अब धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के ऊपर उनके दादा का अमिट प्रभाव पड़ा और वो छोटी उम्र से हि कथावाचक के रूप मे प्रसिद्धि प्राप्त करने लगे। और धीरे धीरे वे अपने दादा जी के पश्चात बागेश्वर धाम के प्रसिद्द कथावाचक और संत के रूप में परिवर्तित हो गए।
धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी आजकल सनातन धर्म विरोधियों के निशाने पर हैं। वो भोले भाले आदिवासियों को लालच देकर बहलाकर फुसलाकर धर्म परिवर्तन कराने वाले निकृष्ट मानसिकता के मनोरोगीयो के संगठन के निशाने पर आ गए हैं । इन दुष्ट प्रकृति के चरित्रो के बारे में हि हमारे शास्त्रों में कहा गया है:-
काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन॥
बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों॥
वे काम, क्रोध, मद और लोभ के अधीन होते हैं और निर्दयी, कपटी, कुटिल और पापों के घर होते हैं। वे बिना कारण ही सभी से बैर किया करते हैं। जो भलाई करता है उसके साथ भी बुराई ही करते हैं।
अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी॥
बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा॥
वे अवगुणों के समुद्र, मंद बुद्धि, कामी (रागयुक्त), वेदों के निंदक और जबर्दस्ती पराए धन के स्वामी (लूटनेवाले) होते हैं। वे दूसरों से द्रोह तो करते ही हैं; परंतु गुणीजनों से विशेष रूप से करते हैं। उनके हृदय में दंभ और कपट भरा रहता है, परंतु वे ऊपर से सुंदर वेष धारण किए रहते हैं।
इसी प्रकार आगे दुष्ट प्रकृति के बारे में बताया गया है:-
यथा परोपकारेषु नित्यं जागर्ति सज्जनः ।
तथा परापकारेषु जागर्ति सततं खलः ॥
जैसे सज्जन परोपकार करने में नित्य जाग्रत होता है, वैसे दुर्जन अपकार करने में हमेशा जाग्रत होता है ।
तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायाश्र्च मस्तके ।
वृश्र्चिकस्य विषं पृच्छे सर्वांगे दुर्जनस्य तत् ॥
सर्प का झहर दांत में, मक्खी का मस्तक में और बिच्छु का पूंछ में होता है । लेकिन दुर्जनका झहर तो उसके पूरे अंग में होता है ।
तो मित्रों ऐसे हि दुष्ट आत्माओ का काला घना साया इस युवा और मधुर कथा वाचक के इर्द गिर्द एक षड्यंत्र के रूप में मंडराने लगा है। ये विदेशी आपराधिक षड्यंत्रकारी विधर्मी उस हर सनातनी को अपमानित करने का प्रयास करता है जो इनके धर्मपरिवर्तन के आगे शीश उठा के खड़े हो जाते हैं और “घर वापसी” कराने में सफल हो जाते हैं।
मित्रों आज से चार माह पूर्व बागेश्वर महाराज श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने बुन्देलखण्ड के पन्ना जिले के ९० प्रतिशत आदिवासी वनवासी वाले इलाके “कलदा पहाड़” पर श्रीराम कथा का वाचन किया। मित्रों ये वहीं क्षेत्र है जिसे धर्मान्तरण कराने वाली मिशनरियों और सनातन विरोधी अन्य संस्थाओं ने अपना चरागाह बनाकर रखा है।
श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी महराज ने यहां खुद टेंट पंडाल लगाया आदिवासियों को मंच पर बुलाकर उनसे आरती कराई और पूर्ण विधि विधान से अनेक परिवारों की सनातन में धर्म वापसी कराई। और बस उसी दिन से यह युवा संत देश की अनेक संस्थओं का दुश्मन बन गया।
महाराज ने किसी भी चेतावनी और षड्यंत्र की परवाह किये बगैर “दमोह” में ईसाई बन चुके ३०० परिवारों की घर वापसी कराई तो इन विधर्मियो के छाति पर सांप डोलने लगे।
उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत्।।
जो जोखिम लेता हो (उधम), साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे ये ६ गुण जिस व्यक्ति के पास होते हैं, उसकी मदद भगवान भी करता है और श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने उसी प्रकार का साहस और समर्पण का प्रदर्शन किया है।
रामो विग्रहवान् धर्मस्साधुस्सत्यपराक्रमः।
राजा सर्वस्य लोकस्य देवानां मघवानिव।।
भगवान श्रीराम धर्म के मूर्त स्वरूप हैं, वे बड़े साधु व सत्यपराक्रमी हैं। जिस प्रकार इंद्र देवताओं के नायक है, उसी प्रकार भगवान श्रीराम हम सबके नायक है। और हमारे नायक हम्म सब सनातनी धर्मीयो की रक्षा तो करेंगे ही परन्तु इस बार हमें भी अपने साधु संतो को सुरक्षा प्रदान करने के लिए हर परिस्थिति में तैयार रहना चाहिए।
मै अपने सनातन धर्मी संत के साथ हूँ, क्या आप भी हैं?
लेखन और संकलन: – नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
[email protected]