भारत हमेशा से अपने पड़ोसियों और मित्रोँ का हितैषी रहा हैं, भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् नीति रही हैं। श्रीलंका में जो हालत हैं, भारत उससे भली-भांति अवगत हैं, साथ ही ये भी जानता हैं कि चालबाज़ चीन की नजर श्रीलंका पर हैं, श्रीलंका में उभरे आर्थिक संकट के बाद भारत ने श्रीलंका को चीन की चालबाजियों से बचाने लिए श्रीलंका को आर्थिक और ऊर्जा संकट से निपटने सहित ईंधन, भोजन और दवाओं की खरीद के लिए करोड़ों डॉलर की मदद की है। भारत ने श्रीलंका में बिजली कटौती के संकट को कम करने के लिए 40,000 मीट्रिक टन डीजल की चार खेप भेजी। साथ ही 65,000 टन खाद और 40,000 टन चावल भी भेजा गया। जनवरी बाद से श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुए। इनमें त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म्स तक इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की पहुंच आसान बनाना शामिल है।
भारत के श्रीलंका के साथ पुराने सांस्कृतिक संबंध तो हैं ही, चीन की कूटनीति से निपटने में भी भारत के लिए श्रीलंका अहम है। पिछले 15 सालों से भारत और चीन, दोनों श्रीलंका को अपने कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों में तरजीह देते आए हैं। इसकी बड़ी वजह हिंद महासागर में श्रीलंका की भोगौलिक स्थिति है, जो रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है।श्रीलंका के साथ बेहतर संबंध व्यापार के अलावा समुद्री सीमा में सामरिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। दरअसल, साल 2005 में महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीलंका का झुकाव चीन की तरफ बढ़ा और घरेलू आर्थिक विकास के लिए उन्हें चीन ज्यादा विश्वसनीय साझेदार लगा। श्रीलंका को चीन को कर्ज नहीं चुकाने पर पोर्ट के साथ 15 हजार एकड़ जमीन सौंपनी पड़ी।
इसके बाद से श्रीलंका की अधिकांश विकास योजनाओं का काम चीन को मिला, जिसमें हंबनटोटा पोर्ट और कोलंबो गाले एक्सप्रेसवे शामिल हैं। 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोलंबो का दौरा किया तो इसे भारत के लिए स्पष्ट कूटनीतिक संकेत माना गया था। जिनपिंग के श्रीलंका दौरे के बाद अगले ही साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका का दौरा किया।
2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे महिंदा राजपक्षे को देश में 30 साल से जारी गृह युद्ध को खत्म करने का श्रेय तो दिया जाता है, पर श्रीलंका के कर्ज के बोझ तले दबने के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदार माना जाता है। राजपक्षे के बारे में कहा जाता है चीन के लिए उनका ज्यादातर मामलों में हां में ही जवाब होता था। न तेल खरीदने के लिए पैसे। श्रीलंका पर भारी विदेशी कर्ज का बोझ है और वो किस्तें चुकाने में असमर्थ है। ऐसे में आपूर्तिकर्ता उधार तेल देने से मना कर रहे हैं।
श्रीलंका में बुनियादी चीजों की भारी किल्लत है। इससे 60 लाख लोग भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। ऐसे जटिल हालात पर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जाहिर की है। विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के नए खाद्य असुरक्षा आकलन के मुताबिक, श्रीलंका में 10 में से तीन परिवार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनका अगला भोजन कहां से आएगा। डब्ल्यूएफपी ने चेतावनी देते हुए ये भी कहा है कि पोषण की कमी गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर परिणाम लेकर सामने आएगा। वहीं, श्रीलंका में लगभग 61 प्रतिशत परिवार नियमित रूप से जीवन यापन के लिए लागत में कटौती की तैयारी कर रह हैं। कई ऐसे परिवार हैं जो भोजन की मात्रा को कम कर रहे हैं। कई लोग पौष्टिक भोजन लेने से बचते दिख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य राहत एजेंसी का अनुमान है कि और भी लोग उस सूची में शामिल होंगे, जिन्हें इस संकट से जूझना पड़ रहा है।