एक निजी चैनेल की डिबेट पर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने जो भी बयान दिया था उसको मैं कतई दोहराना नहीं चाहता हूं, किसी भी डिबेट में कई बार ऐसे अवसर उत्पन्न हो जाते हैं कि इंसान का विवेक धैर्य खो ही देता हैं, नूपुर शर्मा ने जो भी वक्तव्य दिया था वो करोडों हिंदू धर्म को मानने वालों के आराध्य भगवान शिव के ऊपर मुस्लिम नेता तस्लीम रहमानी द्वारा की गई घटिया और निंदनीय टिप्पणी के बाद प्रतिक्रिया के रूप में दिया था।
इस बयान पर दो दिनों तक देश में कहीं कोई चर्चा नहीं हुई, दो दिन बाद कथित पत्रकार मोहम्मद जुबैर ने अपने सॉशल मिडिया हैंडल पर उक्त डिबेट की क्लिप को मैनुफुलेट करके वायरल किया जिसके बाद देश-विदेश से समुदाय विशेष के कुछ कट्टरपंथी लोगों की तरफ से नूपुर शर्मा को भद्दी-भद्दी गालियों, जान से मारने, गला काटने की धमकियां मिलनी शुरू हो गई। ये कथित पत्रकार यहीं नहीं रूका उसने पुनः भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने और मुस्लिम विरोधी साबित करने के लिए अपने ट्विटर हैंडल पर कुछ इस्लामिक देशों को टैग करके इस मामले को भडकाने की साजिश रची।
भाजपा ने विवाद बढ़ने के बाद अपनी पार्टी की नेता और प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया था, दोनों नेताओं ने अपने शब्दों पर खेद जताते हुए माफ़ी भी मांग ली थी। उसमे बाद भी लगातार दोनों नेताओं को जान से मारने की धमकी का सिलसिला जारी हैं, वहीँ दूसरी तरह भगवान शिव का अपमान करने वाले तस्लीम रहमानी जैसे लाखों बिना किसी परेशानी के आराम से घूम रहे हैं।
माफ़ी मांगने के बावजूद नूपुर शर्मा के बयान के विरोध में 10 जून को देश के विभिन्न हिस्सों में जुमे की नमाज के बाद व्यापक प्रदर्शन और हिंसा देखने को मिली। प्रयागराज, सहारनपुर, हावड़ा, रांची आदि शहरों में तो प्रदर्शनकारी सीधे सुरक्षा बलों से भिड़ गए और आगजनी एवं पथराव कर व्यवस्था को चुनौती देने पर उतर आए। इन शहरों के अलावा दिल्ली स्थित शाही जामा मस्जिद से लेकर मुरादाबाद, फिरोजाबाद, लखनऊ, कोलकाता, अहमदाबाद, लुधियाना, औरंगाबाद, भद्रवाह, डोडा, किश्तवाड़ आदि शहरों में भी जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन हुए। कहीं-कहीं वे इतने उग्र थे कि या तो कर्फ्यू लगाना पड़ा या फिर धारा 144 लगानी पड़ी। इसके पहले 3 जून को जुमे की नमाज के बाद कानपुर में जो उग्र प्रदर्शन हुए, उसमें भी हिंसा भड़क उठी थी।
भाजपा के दोनों पूर्व नेताओं के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने एफआइआर भी दर्ज की। इस सबके बाद भी मुसलमानों के कट्टरपंथी वर्ग ने सड़कों पर उतरकर उग्रता दिखाई।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन करना आम नागरिकों का संवैधानिक हक है, लेकिन जिस प्रकार जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन और वह भी उग्र प्रदर्शन करने का चलन पिछले कुछ सालों में बढा हैं, वह देश हित में तो कतई नहीं हैं और न ही मुसलमानों के हित में । आखिर मुसलमान जुमे के दिन मस्जिदों से निकलकर सडकों पर उग्र प्रदर्शन , पत्थरबाजी करके क्या संदेश देना चाहते हैं ?
मैं यहां दूसरी बात कहना चाहता हूं, आप मेरी बात से इत्तेफाक नहीं भी रख सकते हैं और कह सकते है मैं दूसरे चश्में से देख रहा हूं, लेकिन मैं इस बात को कहे बिना नहीं रह सकता हूं, मुझे जहाँ तक दिख रहा है कि ये इस्लाम के पैगंबर के बारे में कही बातों के विरोध का प्रदर्शन नहीं दिखता हैं, इस प्रदर्शन के बहाने दूसरी मंशा को बढ़ावा देना चाहते हैं। आपको याद होगा दिसम्बर 2019 को देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में सीएए-एनआरसी के विरोध के नाम पर हिंसक घटनाऐं हुई थी। मैं इसको कतई सीएए-एनआरसी के विरोध का प्रदर्शन नहीं मानता हूं।
वर्ष 2019 वामपंथी और सेकुलर जमातों के लिए बहुत ही पीडादायक वर्ष रहा हैं, 26 मई 2019 में प्रचंड बहुमत से दोबारा नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनाना, 5 अगस्त 2019 को जम्मू एंड कश्मीर से धारा 370 और 35 ए का हटना, 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या में श्रीराम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला देना, इन तीन बडी घटनाओं के बाद असमाजिक और देश के दुश्मनों के भीतर क्रोधाग्नि का ज्वार इतना बढा दिया था कि सीएए विरोधी आंदोलन के नाम पर ये हिंसक प्रदर्शन पर उतर आए थे, मेरी बात को बल इससे भी मिलता है फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए सीएए विरोधी दंगों के मास्टर माइंड ताहिर हुसैन ने कबूल किया था कि वो धारा 370,35 ए के हटने से दुखी था, हिंदुओं को सबक सिखाना चाहता था। दिल्ली दंगों के दूसरे आरोपी उमर खालिद ने भी कबूला था कि भाजपा की दोबारा से केंद्र में सरकार बनने, जम्मू एंड कश्मीर से धारा 370 व 35 ए तथा अयोध्या में राममंदिर के पक्ष में आये फ़ैसले के बाद बौखला गया था और सरकार और हिन्दुओं को सबक सिखाना था।
अब मैं इस मुद्दे पर आता हूं कि वर्तमान में देश में आखिर ये सब क्या हो रहा हैं , तो आप समझ लीजिए भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल केवल बहाना हैं असली मुद्दा दूसरा हैं, दरअसल असली मुद्दा है ज्ञानव्यापी में हुए सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग और अन्य साक्ष्यों से बहुत ही आसानी से ज्ञानव्यापी के उस कब्जे वाले हिस्से पर हिंदू पक्ष की दावेदारी मजबूत हो गई हैं, मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर खडी अवैध ईदगाह को हटवाने की मांग प्रबल हो रही हैं।
जिसके बाद मुस्लिम समुदाय के लोग और नेता कसमें खा रहे हैं कि बाबरी के बाद दूसरी मस्जिद नहीं खोने देगें, ये ज्ञानवापी मंदिर पर जमाये कब्ज़े का हाथ से निकल जाने की बौखलाहट हैं , ये वो उग्र और हिंसक शक्ति प्रदर्शन हैं जिसको दिखाकर ये बहुसंख्यक हिंदुओं और सरकारों के मन में भय बैठाने के लिए कर रहे हैं।
आप देखिये और समझिये, सभी कडियां स्वतः ही जुडती नजर आयेगी अन्यथा आप कह सकते हैं कि मैं दूसरी नजर से देख रहा हूं।
अभिषेक कुमार ( Political-Politics Analyst – follow on twitter @abhishekkumrr )