पंजाबी गायक और कॉंग्रेस नेता शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ़ सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने राज्य सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया हैं. यह वारदात कानून व्यवस्था की हालत तो बता ही रही हैं, उससे भी बड़ा सवाल राज्य सरकार के उस फ़ैसले पर भी खड़ा हो गया हैं जिसमें सरकार ने अचानक से चार सौ ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा वापस ले ली. यह घटना गंभीर इसलिए भी हैं कि इसके तार कनाडा और आर्मेनिया में बैठें अपराधियों से जुड़े होने की बात सामने आई हैं. इससे तो लग रहा हैं कि पंजाब गैंगवार के चंगुल में फंस गया है और इसमें लिप्त अपराधी दूसरे देश में बैठ कर ऐसे हत्याकांडो को अंजाम दे रहे हैं. सिद्धू मूसेवाला की हत्या की जिम्मेदारी गैंगस्टर लॉरेंस विश्नोई और कनाडा में बैठे उसके साथी गोल्डी बराड ने ली हैं. हालांकि सरकार ने घटना की जाँच हाईकोर्ट के मौजूदा जज से कराने का एलान किया हैं. इस काम में केंद्रीय जाँच ब्यूरो व राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के मदद लेने की बात कही हैं. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि घटना के पीछे का सच सामने आएगा.
सिद्धू मूसेवाला पर जिस तरह से हमला हुआ, उससे लगता है कि वारदात को अंजाम देने की तैयारी पहले से रही होगी और हत्यारे सिर्फ मौके की तलाश में होंगे. जैसे ही सरकार ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा में कमी करने या हटाने का कदम उठाया, सिद्धू मूसेवाला के पीछे पड़े लोगों को मौका मिल गया. हालांकि जैसा बताया जा गया हैं कि सिद्धू मूसेवाला को अभी भी दो सुरक्षाकर्मी मिले हुए थे, जबकि पहले चार थे. जैसा कि मृतक के पिता बलकौर सिंह ने पुलिस में दर्ज शिकायत में बताया की हत्या से ठीक पहले जब वह अपने घर से निकला, तब उसके साथ दोनों सुरक्षाकर्मी नहीं थे, न ही उसने बुलेटप्रूफ़ जैकेट पहनी थी.
ये जाँच का विषय हैं कि आखिर सिद्धू मूसेवाला बिना सुरक्षाकर्मी के अचानक घर से कैसे निकल गया? इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि पंजाब अभी भी बेहद संवेदनशील राज्य हैं. इसे ख़तरा सिर्फ सीमापार आतंकवाद और खालिस्तानी अलगाववादियों से नहीं हैं बल्कि नशे के कारोबारियों और गैंगवार से जुड़े अपराधियों का भी यहां दबदबा हैं. गौरतलब है कि राज्य में पिछले चार साल में गैंगवार में आठ लोगों की हत्या हो चुकी है और चौंकाने वाली बात यह कि इन सभी की साजिश कनाडा और आर्मेनिया में रची गई थी. पर लगता है कि सरकारें सोती रहीं. जिस राज्य में ऐसे दहला देने वाले अपराध होते रहें, नशे के कारोबारी सक्रिय हो, खालिस्तानी गुटों और आतंकवाद का ख़तरा हो, वह जाहिर है राजनीति करने वालोँ की जान को भी ख़तरा कम नहीं होगा.
डेरों में संघर्ष और हिंसा की घटनाएँ भी छिपी नहीं हैं. ऐसे में चार सौ से ज्यादा उन लोगों, जिनकी जान को हमेशा ख़तरा हो, की सुरक्षा वापस लेने या उसमें कटौती करने के फ़ैसले पर सवाल उठना स्वाभाविक हैं. पंजाब में जिन लोगों की सुरक्षा वापस की गई है, उनमें विधायक, पुलिस अधिकारी, डेरों के मुखिया आदि शामिल हैं. यह सही हैं ऐसे लोगों की सुरक्षा पर खर्चा मामूली नहीं होता और पैसा करदाताओं का ही होता है, इसलिए इसे लेकर भी सवाल उठते ही रहे हैं. पर लगता हैं कि पंजाब सरकार ने ऐसे लोगों की सुरक्षा को लेकर खतरे के स्तर को कहीं ना कहीं नजरअंदाज कर दिया . लगता यह भी है कि इतनी जल्दबाजी में सरकार ने यह कदम कहीं सिर्फ सुर्ख़ियां बटोरने के लिए ही तो नहीं उठाया, जिसका नतीजा सिद्धू मूसेवाला की हत्या के रूप में सामने आया. इस बात को इसलिए भी बल मिल रहा हैं जिन लोगों की सुरक्षा कम की या हटाई गई उस लिस्ट को सार्वजानिक कर दिया गया था. सच क्या है ये जाँच के बाद सामने आ ही जायेगा.
- अभिषेक कुमार ( Political -Election Analyst / Twitter @abhishekkumrr )