हम सभी तरह के सुविधाओं की चाहत तो रखते हैं, राष्ट्र के संसाधनों पर अपना अधिकार तो जताते हैं लेकिन राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का ध्यान नहीं रखते! खुद की नासमझी को उपर वाले की मर्जी कहकर कब तक खुद को दोषमुक्त करते रहेंगे? Population Growth लोगों की नासमझी है या ऊपर वाले की मर्जी? जो लोग सोचते हैं की अपने बच्चों को पालन सिर्फ वो ही कर रहे हैं, उन्हें न तो वास्तविकता का आभास होता होता है न ही राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक संरचना का! उनके साथ साथ राष्ट्र भी पालन का भार उठाता है!
अब देश उस दौर में नहीं है जब उच्च जन्म-दर को उच्च मृत्यु दर संतुलित कर देती है! अब देश घटती हुई मृत्यु दर की एक सुन्दर अवस्था को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है, ऐसे में उच्च जन्म-दर न सिर्फ परिवार का आकार बढ़ाएगा बल्कि देश की संसाधनों पर बोझ भी बढ़ाएगा! आज भारत के पास विश्व के कुल भू-क्षेत्र का लगभग 2.4 प्रतिशत भाग है लेकिन विश्व की कुल जनसँख्या के लगभग 18-19 प्रतिशत आबादी का पालन पोषण करना पड़ता है!
सुविधा, संसाधन और रोजगार के अवसर की तुलना तो हम पश्चमी देशों से करते हैं लेकिन जनसँख्या वृद्धि के दर और जनसँख्या के घनत्व को पश्चिमी देशों से तुलना नहीं करते! जनसँख्या तो हम ऊपर वाले की मर्जी कहकर बढ़ाते जाते हैं, लेकिन संसाधन तो सीमित है इसकी चिंता नहीं करते! कुछ मान्यताओं का हवाला देकर, कुछ अज्ञानता वश तो कुछ जानबूझकर आबादी को बढ़ावा देकर देश को Population Explosion की तरफ ले जा रहे हैं!
ये सच है की आर्थिक विकास की प्रक्रिया में किसी राष्ट्र की श्रम शक्ति द्वारा अपने यहाँ के भौतिक संसाधनों का उपयोग सन्निहित रहता है ताकि देश की उत्पादन संभावना सिद्ध की जा सके! इसमें संदेह नहीं की विकास कार्यों में देश की श्रम शक्ति का सक्रीय योगदान रहता है किन्तु ये भी सत्य है की तीव्र गति से बढती हुई जनसँख्या विकास प्रक्रिया को मंद कर देती है! बढ़ती हुई जनसँख्या आर्थिक संसाधनों के लिए अनेक रूप में बाधक सिद्ध होती है! इनमें कुछ प्रमुख समस्याएँ तो हम आए दिन अपने जीवन में झेलते हैं लेकिन न कुछ कह पाते थे, न कुछ सोच पाते हैं!
जनसँख्या में तीव्र वृद्धि दर सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आय को सीधा प्रभावित करता है! तीव्र जनसँख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय के आय के स्तर को उन्नत करने में रूकावट सिद्ध होती है! अगर Population Control किया जाए तो शुद्ध प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर बढ़ जाएगी जिसका सीधा असर लोगों की दैनिक जरूरतें और सुविधाओं पर पड़ेगा!
जब कृषि योग्य भूमि में इजाफा लगभग सीमित है, ऐसे में जनसँख्या में तीव्र वृद्धि के परिणाम स्वरुप खाद्य संभरण की समस्या उत्पन्न होगी, न सिर्फ देश बल्कि परिवारों में भी! इसके साथ साथ अनुत्पादक उपभोगता की संख्या में भी वृद्धि होगी जिससे बेरोजगारी की समस्या में भी तेजी से इजाफा होगा! इसके अतिरिक्त आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी भार बढ़ेगा राष्ट्र पर, जिसे पूरा करना आसान न होगा! परिणाम स्वरुप सभी सामान्य मानवी को मिलने वाली सुविधाओं और अवसरों पर विपरीत असर पड़ेगा!
अगर सबको घर चाहिए, एक अच्छी आय चाहिए, उत्तम स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा चाहिए, अच्छी जनसुविधा और परिवहन व्यवस्था चाहिए तो जनसँख्या नियंत्रण तो करना ही पड़ेगा, वरना भेड़ों वाली जिंदगी तो है ही! फिर हमें अपने देश की सुविधा और व्यवस्था को दुसरे विकसित देशों से तुलना नहीं करना चाहिए! सबको रोजगार और भोजन की मांग नहीं करनी चाहिए! हमें सोचना पड़ेगा की सरकारें वर्तमान संसाधनों को बेहतर तरीके से मैनेज कर सकती है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों को नहीं बढ़ा सकता!
यदि जनसँख्या आवश्यकता से अधिक हो तो भी उसे कुँए में तो नहीं डाला जा सकता! आवश्यकता इस बात की है की हमें अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ साथ जनसँख्या नियंत्रण पर भी ध्यान देना होगा! परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रोत्साहित करना होगा! समाज में जागरूकता फैलाना होगा! लेकिन ये सभी उपाय सिर्फ सभी उनलोगों के साथ कारगर है जो अज्ञानता में जनसंख्या वृद्धि के दर को बढ़ा रहे हैं! लेकिन जो ऊपर वाले की मर्जी मानकर जनसँख्या बढ़ा रहे हैं उनकी सदियों पुरानी कूपमंडूक दकियानूसी सोच से निपटने के लिए सरकार को कठोर Population Control Policy बनाना ही होगा!