दुविधा में व्यक्ति संकोच करता है कि वह कोई काम करे या न करे। किंतु दोगलापन वह है जब वो कुछ ना करे और सिर्फ़ दिखावा करे। दुविधा और दोगलापन दोनों घातक हैं। दुविधा स्वयं के लिए घातक है और दोगलापन समाज के लिए। आपको तय करना होगा कि आप किस तरफ से मैदान में है? आप फिल्म का समर्थन करते हैं या नहीं? आप कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार को सामने लाना चाहते हैं या आपके लिए ये सिर्फ एक मनोरंजन है। बात ये नहीं है कि उस समय केंद्र में किसकी सरकार थी और राज्य में किसकी? बात यह है कि पीड़ित कौन था और अपराधी कौन? बात यह है, कि आज आप कहां खड़े हैं? पीड़ितों के साथ या आतंकियों के साथ? आपको तय करना होगा। यह 60-40 का फार्मूला नहीं चलेगा। थोड़ा इधर भी थोड़ा उधर भी। रही बात सरकार की तो 19 जनवरी 1990 जब ये धर्म पर आधारित नरसंहार शुरू हुआ, तब फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री था और धारा 370 के कारण उसके पास असीमित अधिकार थे। दिसंबर 1989 तक राजीव गांधी की सरकार थी जिनकी भूलों के कारण ही केंद्र में जनता दल की सरकार बनी।
आप क्या सोचते हैं कि, 19 जनवरी 1990 को शुरू हुआ जघन्य नरसंहार सिर्फ एक दिन में घटित हुआ होगा? सिर्फ एक दिन में सारी तैयारियां हो गई थी? नहीं यह वर्षों का षड्यंत्र था जिसे तथाकथित सेकुलर सरकारों ने नजरअंदाज किया। बाद में तो षड्यंत्र को सिर्फ अंजाम दिया गया। आप यह कह कर नहीं बच सकते कि उस दिन तो हम छुट्टी पर थे। जबकि षड्यंत्र आपके कुर्सी पर रहते ही रचा गया था। पहले बोले यह तो सिर्फ एक फिल्म है। फिर बोले फलाने की सरकार थी। अरे यदि राजकुमार की सरकार नहीं थी तो फिल्म से भय कैसा? आने दीजिए सच सामने और तय करने दीजिए जनता को कि कौन सही है और कौन गलत? आकलन करने दीजिए कि कौन किसके साथ खड़ा है? आपके एक-एक शब्द आपका पक्ष उजागर करते हैं। यह वो कश्मीर है जहां स्वयं माता वैष्णो देवी और बाबा अमरनाथ विराजते हैं। पर हम कश्मीरियत के नाम पर सिर्फ झीलों में चलने वाली नावों को ही देख पाए। यह वो कश्मीर है जहां कुंडलवन में तीसरी शताब्दी में बौद्ध संप्रदाय की चौथी महासभा हुई। किंतु हम फारुख और शेख अब्दुल्ला को ही जान पाए।
यह वो कश्मीर है जहां का अनंतनाग क्षेत्र नागवंशी राजाओं की राजधानी थी जो कश्यप ऋषि के वंशज थे। पर हम मुफ्ती और महबूबा को ही जान पाए। जरा सोचिए मात्र 30 साल पुराने नरसंहार को कितनी सफाई से दबा दिया गया जबकि उसके प्रत्यक्षदर्शी और भुक्तभोगी अभी भी जीवित हैं तो सोचिए भारत के हजारों साल पुराने गौरवशाली अतीत के साथ इन तथाकथित सेकुलर इतिहासकारों ने कितना अन्याय किया होगा? किंतु अब जनता जागरुक है। अब सत्य को अधिक दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता। जब आग सुलग रही हो तब तो फूंक मारकर आप उसको बुझा सकते हैं किंतु यदि आग ज्वाला बन चुकी हो तो उसे बुझाने का प्रयास मत करो अन्यथा स्वयं जल जाओगे। यही गलती राजकुमार और उसकी सेना कर रही है। राष्ट्रवाद की चिंगारी अब एक ज्वाला बन चुकी है। उसे बरगला कर बुझाने का प्रयास करना मूर्खता होगी। इसलिए दुविधा और दोगलापन छोड़कर राष्ट्रवाद के साथ चलिए।
जय हिंद, वंदे मातरम!
आज ललकार कर बोला हिन्दू वीर है।
सारा कश्मीर ये हमारा कश्मीर है।।