Friday, April 26, 2024
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एक व्‍यवस्‍थागत षडयंत्र है हिजाब विवाद… ऐसे हुआ खुलासा

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धर्मयुद्ध महाभारत के शान्ति पर्व का श्‍लोक ”अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च:” सदैव अधूरा बताया गया जबकि इसका अर्थ है- ”अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। परन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी वैसा ही धर्म है।” इस अधूरा बताए जाने के कारण ही हमें ना तो अपने धर्म की रक्षा के प्रति सावधान किया गया और ना ही आक्रांताओं की क्रूरता का प्रतिवाद करने के लिए जागरूक किया गया। इसी आधे अधूरेपन का परिणाम है कि हम प्रतिदिन देश के सामाजिक तानेबाने को तोड़ने और खासकर हिंदूविरोधी षडयंत्रों के रूप में देख रहे हैं। ऐसा ही एक और षडयंत्र है हिजाब विवाद।

हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने फिलहाल ”स्कूल कॉलेज की तय यूनिफॉर्म का सख्ती से पालन करने और किसी तरह के धार्मिक पहनावे को स्कूल के भीतर मंजूरी नहीं देने वाले राज्य सरकार के आदेश को कायम रखा है और मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित एवं जस्टिस जेएम काजी की पीठ ने कहा, स्कूल-कॉलेजों को ड्रेस कोड तय करने का पूरा हक है इसलिए स्कूल प्रबंधन, प्रधानाचार्य और शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच की अर्जी भी खारिज़ की जाती है। पीठ ने कहा, सरकार के पास स्कूल-कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाले पहनावे पर रोक लगाने का अधिकार है। ऐसे में शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक पहनावे पर रोक के आदेश को चुनौती देने वाली छात्राओं की याचिकाएं आधारहीन हैं। कोर्ट ने इसे भी खारिज़ कर दिया और का कि यह फैसला महिलाओं से उनकी स्वायत्तता या शिक्षा का अधिकार नहीं छीनता, क्योंकि वे कक्षा के बाहर अपनी पसंद का कोई भी वस्त्र पहन सकती हैं।

अब सामने लाती हूं वो तथ्‍य कि ऐसा क्‍यों हुआ-

इसे जिहाद की अगली किश्‍त कहा जा सकता है और जिस सोशल मीडिया को इन षडयंत्रकारियों ने अपना नकाब बनाया, अब वही इन्‍हें बेनकाब कर रहा है। शिक्षा संस्‍थानों में हिजाब पहनने की मांग तो इस षडयंत्र का एक पड़ाव मात्र है परंतु इनके भीतर अभी और कितना ज़हर भरा है, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

सिलसिलेवार ढंग से देखिए कि किस तरह एक एक कदम इन्‍होंने बढ़ाया-

1. सितंबर 2021 की शुरुआत में कट्टरपंथी इस्लाम समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की अनुषंगी संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) ने उडुपी सहित कॉलेजों में अपना सदस्यता अभियान शुरू किया।


2. ठीक एक महीने के बाद इसी अवधि में हिजाब प्रचार के लिए चुनी गई सभी लड़कियों ने ट्विटर पर अपने अकाउंट बनाए और हैशटैग कैंपेन में हिस्सा लेकर सीएफआई के एजेंडे को बढ़ावा देना शुरू किया।

3. बीबीसी को दिए इंटरव्‍यू में अपनइ सफाई देते हुए हिजाब के लिए अभियान चलाने वाली लड़कियों ने बताया कि वो सीएफआई की सदस्य नहीं है और हिजाब विवाद के बाद ही सीएफआई ने उनसे संपर्क किया जबकि इसके ठीक उलट उनकी ट्विटर टाइमलाइन पर ट्विटर अकाउंट बनाने के पहले दिन से ही सीएफआई का प्रचार शुरू हो गया था।

6. हिजाब प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाने वाली लड़की मुस्‍कान ने 1 नवंबर 2021 को CFI द्वारा शुरू किए गए हैशटैग कैंपेन में हिस्सा लेने के लिए कॉपी-पेस्ट कर ट्वीट पोस्ट करना शुरू कर दिया। यह हैशटैग नई शिक्षा नीति के खिलाफ था।

8. बाबरी मस्जिद को लेकर अगला सीएफआई हैशटैग 8 नवंबर 2021 को शुरू किया गया था। जरा देखिए कि उन्होंने किस तरह एक जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है। सीएफआई के अध्यक्ष ने भी इस कैंपेन में ट्वीट किए। आप भी देख सकते हैं इस ट्विटर कैंपेन को लेकर उनका पोस्टर

9. मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को लेकर सीएफआई का अगला ट्विटर कैंपेन 11 नवंबर 2021 को आया।
10. यहां फिर से लड़कियां अपने हैशटैग को बढ़ावा देने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप या सीएफआई के टूलकिट का हिस्सा बनीं।
11. 19 नवंबर 2021 को वे फिर से CFI के हैशटैग कैंपेन का हिस्सा हैं। टूलकिट से कॉपी-पेस्ट की गई भाषा और शब्दों को देखें।

12. 21 नवंबर 2021 को CFI के प्रदेश अध्यक्ष ने लाउडस्‍पीकर्स द्वारा अज़ान पर रोक के खिलाफ ट्विटर कैंपेन चलाया, ये कहते हुए कि हमें ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता ।

13. देखिए कैसे इन लड़कियों ने व्हाट्सएप ग्रुप या सीएफआई के टूलकिट का अनुसरण करते हुए शब्द-दर-शब्द कॉपी-पेस्ट का काम किया था। हिंदुओं को नेपाल जाने की सलाह देते समय ‘संघी’ जैसे शब्दों को जानबूझकर लिखा गया।

 14. इतना ही नहीं हाथरस मामले में आरोपी तथा सीएए और दिल्ली दंगों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग में करने वाला यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार अपराधी रऊफ शरीफ का समर्थन करने के लिए 12 दिसंबर 2021 को सीएफआई का अगला हैशटैग शुरू किया गया और फिर वही कॉपी-पेस्ट एक जैसी भाषा का इस्तेमाल। इस पूरे अभियान से यह समझना मुश्‍किल नहीं कि कैसे संभावित सीएफआई और पीएफआई द्वारा इन लड़कियों को कट्टरपंथी बना या गया। इससे ये भी साबित होता है कि ये लड़कियां सीएफआई से बहुत अच्छी तरह जुड़ी हुई थीं और हिजाब प्रचार के बाद ही ”सीएफआई द्वारा स्‍वयं संपर्क किए जाने” का उनका दावा पूर्णत: गलत है।

15.  31 दिसंबर 2021 को इन लड़कियों और सीएफआई की राज्य समिति के सदस्य मसूद मन्ना ने एक कॉलेज परिसर से प्रचार शुरू क र दिया।
16.  फिर 1 जनवरी को वामपंथी और इस्लामिक वेब पोर्टल्स के एक प्रोपेगैंडा रिपोर्टर मीर फैसल ने ”The Wire” के लिए लड़कियों से एक इं टरव्यू लिया। इसके अगले ही दिन यानि कि 2 जनवरी 2022 को इन लड़कियों ने इस दुष्प्रचार को अगले स्तर तक ले जाने के लिए CFI के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
17.  इसके बाद 13 जनवरी 2022 को फिर से ”The Wire” ने इनका इंटरव्‍यू किया।
18.  इस तरह लगातार अपना काम करते हुए 19 जनवरी 2022 को वामपंथी छात्र और वामपंथी टीवी चैनल NDTV की खबरों में आ गए।
19. 20 जनवरी 2022 को ”The Wire” के लिए लिखने वाली एक पत्रकार राबिया शिरीन ने इसे और आगे बढ़ाया।
और इसतरह यह मामला आखिरकार वायरल हो गया, तो आईपीएसएमएफ द्वारा वित्त पोषित मीडिया सहित सभी वामपंथी प्रचारक पत्रकार अपनी भूमिका बारी बारी से निभाने लगे।

20. ट्विटर पर पूरी बिसात बिछाने के बाद फिर बारी आई इसे कोर्ट में लड़ने की, जिसकी जिम्‍मेदारी कांग्रेस के वकील यूपी में कांग्रेस लीगल कमेटी के अध्यक्ष देवदत्त कामत और कांग्रेस शासन में एडवोकेट जनरल रह चुके रविवर्मा कुमार ने संभाली और हिजाब को सिखों की पगड़ी से जोड़ते हुए इसे संवैधानिक अधिकार बताया।

21. कोर्ट के बाद ज़मीन इसे उडुपी के कॉलेज कैंपस में चार प्रोफेशनल कैमरा मैन्स के साथ छात्रा ‘मुस्‍कान‘ उतरी वरना ज़रा सोचिए कि नंगे पैर स्कूटी चलाते हुए अंदर आना और अल्लाह हू अकबर बोलना, इसे चार कैमरों द्वारा कवर करना , यह सब पूर्व नियोजित था। यदि नहीं था तो स्कूटी के अंदर आते ही कैसे रिकॉर्डिंग शुरू हो गई? कैमरे में लड़की का एक एक फ्रेम लिया जा रहा था। कैमरे वाले व्यवसायिक तरीके से भाग भाग कर शूटिंग कर रहे थे।

पिछले 3 महीने से इसकी योजना बनाई जा रही थी। इतना ही नहीं जो हिन्दू युवा #जयश्रीराम के नारे लगाकर लड़की को हूट कर रहे थे, वह भी मुस्लिम निकले, मीडिया में इसे हिंदुओ की भीड़ कहा गया, जो भगवा पहन कर जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे।

अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया है, वह इस पर क्‍या रुख अपनाता है, कुछ नहीं कहा जा सकता परंतु इतना अवश्‍य है कि एक व्‍यवस्‍थागम तरीके से चलाए जा रहे प्रोपेगंडा की परतें उधड़ने तो लगी ही हैं। लोगों को समझ आ रहा है कि आखिर हर दूसरे-तीसरे महीने होने वाले ऐसे बवाल के पीछे इस्‍लामिक ताकतें और कांग्रेस की उपस्‍थिति निश्‍चित होता है, ये गठजोड़ देश के लिए बड़ा भयानक हो चला है।

इस संदर्भ में चाणक्‍यनीति का एक श्‍लोक है-

अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्।
आत्मतुल्यबलं शत्रु: विनयेन बलेन वा।।

जिसमें आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को अपने शत्रु के बारे में पता होना बहुत जरूरी है. क्योंकि शत्रु कमजोर है या बलशाली इसका पता होने पर ही उसके खिलाफ नीति बनाई जा सकती है. चाणक्य कहते हैं कि अगर दुश्मन आपसे ज्यादा शक्तिशाली है तो उसे हराने के लिए व्यक्ति को उसके अनुकूल आचरण करना चाहिए. वहीं, अगर दुश्मन का स्वभाव दुष्ट है वो छल करने वाला है तो उसे हराने के लिए उसके विरूद्ध यानी उसके विपरीत आचरण करना चाहिए…तो देखते हैं इस दुष्‍प्रचारक प्रवृत्‍ति से सरकार कैसे निपटेगी।

  • – अलकनंदा सिंह

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