हाल ही में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत मिडिया चैनेलों से ये कहते हुए सुना था कि दिल्ली की सडको पर बैरिकेडिग पुलिस ने लगायी हुई है किसानो ने नहीं। हरियाणा और उत्तर प्रदेश से लगे इलाकों के मुख्य मार्गों से दिल्ली पुलिस की तरफ से बैरिकेडिंग हटाने के बाद भी बॉर्डर बंद करके बैठे किसान संगठन जिस तरह से रास्तों से अपने टेंट हटाने के लिए तैयार नहीं दिख रहे है, उससे उन्होने अपनी पोल खोलने और झूठा साबित करने का कार्य एक बार फिर से किया है। किसान संगठनों रास्तों से टेंट हटाने और वहां से हटने के इच्छुक नहीं है ये अपनी पोल स्वंय खोल रहे है।
किसान संगठनो की हठधर्मिता लोगों को बंधक बनाकर अपनी मांगे मनवाने वाली प्रवृत्ति को ही रेखांकित कर रही है, उनके रवैये से यह बात तो पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि उनकी दिलचस्पी आम जनता के समय और संसाधनों को जाया करने में अधिक हैं। ये बहुत ही दुखद है और खेद का विषय है कि सर्वोच्च न्यायलय इससे पुरी तरह से अवगत है मगर फिर भी अपेक्षित आदेश- निर्देश जारी करने के लिए आगे नहीं आ रहा है कि राजमार्गों पर कथाकथित किसान संगठनों के कब्जे के कारण प्रतिदिन लाखों लोगो को परेशानियों का सामना करना पड रहा हैं। सर्वोच्च न्यायलय इससे कतई भी अनभिज्ञ नहीं हो सकता है कि किसान संगठनों पर उसकी बार बार टिप्पणियों का कोई प्रभाव नहीं कि धरने-प्रर्दशन के नाम पर सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा जमाकर नहीं रखा जा सकता हैं।
लोकतंत्र में धरना-प्रर्दशन करने का अधिकार अवश्य मिला हुआ है मगर ये कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए कि देश की राजधानी के राजमार्गों को पिछले ग्यारह माह से बंधक बनाकर जाये, क्या विधि के शासन के लिए इससे बडी कोई विडंबना कोई और हो सकती है, लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो ऐसे संगठनों और समूहों को बल प्रदान करेगी, जो अपनी मांगे मनवाने के लिए कभी भी सडकों, रेल पटरियों और सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा कर लेते हैं।
अभी तक किसान संगठन यह दलील देते आ रहे थे कि सडकें हमने नहीं, दिल्ली पुलिस ने अपनी बैरिकेडिंग लगाकर बंद कर रखी है,लेकिन जब पुलिस ने सभी बैरिकेडिंगों को हटा दिया है तो वे कह रहे है कि हम सडकों से अपना कब्जा नहीं छोडने वाले हैं। ये चोरी और सीनाजोरी का उदाहरण ही नहीं, लोगों को जानबूझ कर परेशान करने वाला और सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाने वाला रवैया भी हैं। चूंकि भारतीय किसान यूनियन और इस आंदोलन को लीड करते दिख रहे नेता राकेश टिकैत यह भी कहते हुए दिख रहा है कि पुलिस की बैरिकेडिंग हटने के बाद वे लोग ट्रैक्टर लेकर अपनी फसल बेचने संसद तक जाएगें, इसलिए दिल्ली पुलिस को सतर्क रहने की आवश्यकता है। दिल्ली पुलिस लाल किला की घटना को विस्मृत नहीं कर सकती है। उसे ये भी देखना होगा कि उसकी बैरिकेडिंग हटने के बाद सडकों पर डटे प्रदर्शनकारी किसी दुर्घटना की चपेट में न आने पाएं। किसान संगठनों की हठधर्मिता के बाद वे राजनीतिक दल भी कटघरे में खडे दिखने लगे हैं,जो कृषि कानून विरोधी प्रर्दशनकारियों को अपना सर्मथन दे रहे हैं। अब इस नतीजे के पहुंचने के अलावा कोई उपाय सूझता नही हैं कि ये राजनीतिक दल भी यही चाहते है कि कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनकारी सडकों को बाधित करके इसी तरह से जनता को तंग करते रहें। ऐसे राजनीतिक दलों को समझना होगा कि इस प्रकार से दिए जा रहे समर्थन को जनता भली भांति देख रही हैं, जनता समझदार है उसको अब बहलाया फुसलाया नहीं जा सकता हैं।
-लेख- पूजा कुशवाह
(सभी विचार लेखक के व्यक्तिगत है)
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