Sunday, November 3, 2024
HomeHindiकार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, २०१३: भाग-१

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, २०१३: भाग-१

Also Read

Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों हमारे सनातन धर्म में स्त्रियों को माँ, बहु, बेटी और बहन के रूप में सर्वोच्च स्थान दिया गया है, और इसीलिए हमारे शास्त्रों ने समाज को सिख देते हुए बताया है कि:-“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।” अर्थात: जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

हमारा देश, हमारा धर्म, हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति प्राचीन काल से हि स्त्रीप्रधान रहा है इसीलिए हम गौरीशंकर, सियाराम या फिर राधेश्याम कहकर हि अपने आराध्यों नमन करते हैं। स्त्री यदि माँ है तो उसकी महिमा का गुणगान करते हुए हमारे शास्त्रों ने बताया है कि:-

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।। अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।

मातृ देवो भवः। अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।

अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः। अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा। यँहा तक कि हमारी सनातनी परम्परा के अनुसार हम प्रकृति, पृथ्वी और गाय इत्यादि को भी माता मानकर पूजा अर्चना करते हैं। इसीलिए प्रभु श्रीराम ने भी कहा था:-

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी। अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।

जैसा कि हम आप सभी जानते हैं कि  हमारे देश में हमारे संविधान ने सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। अनुच्छेद १४ के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान के तहत समान अधिकार हैं। अनुच्छेद् १५ के अनुसार भारत का संविधान भारत के नागरिकों के साथ लिंग, पंथ, रंग, जाति धर्म आदि, के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। परन्तु कालांतर में हुए भाषागत् सांस्कृतिक और सामाजिक प्रदुषण के कारण सनातन धर्मियों में विकृत मानसिकता का जन्म हुआ और हमारे धर्म या रीति-रिवाजों से परिवार में पुत्र को पुत्री से अधिक वरीयता दी जाने लगी।

आज प्रदूषित मानसिकता का इतना वर्चस्व है कि अब ये  माना जाने लगा है कि पुत्र ही परिवार का पथ प्रदर्शक होता है। इस आधुनिक भारत में  विश्वास और विचार नहीं बदले हैं। वे आज भी बेटी से ज्यादा बेटे को तरजीह देते हैं और बेटियों को बेटों के बराबर के बजाय दायित्व के रूप में मानते हैं।अब इस तथ्य को साबित करने कि अवश्यक्ता नहीं कि इस देश की बेटियां आजकल बेटों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। वे दिखा रही हैं कि हर क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता है और उन्होंने पुरुष प्रधान क्षेत्र में भी प्रवेश किया है। ओलम्पिक में भारतीय महिला खिलाडियों द्वारा किया गया उत्कृष्ट और अनुपम प्रदर्शन इस तथ्य को स्थापित करता है।

बेटियों के शसक्तीकरण को लेकर आरक्षण, प्रोत्साहन और अन्य आवश्यक मदद देकर सरकार ने भी हमारे देश में महिलाओं  के विकास के लिए बहुत कुछ किया है। महिला सशक्तिकरण मोर्डन इंडिया की जरूरत है, क्योंकि वे भारत की जनसंख्या का ५०% हैं। हमें यहाँ यह लिखते हुए खेद हो रहा है कि आज तक समाज के पुरुष सदस्यों की मानसिकता नहीं सुधरी है, वे अभी भी महिलाओं की क्षमताओं का आकलन करने के लिए तैयार नहीं हैं और उन्हें उनका उचित स्थान देने के लिए तैयार नहीं हैं। घरों या संगठनों में  महिला कि समान स्थिति है।

एक आदमी की तुलना में, एक महिला घर और ऑफिस दोनों को बेहतर तरीके से संभाल सकती है, वे अपनी ईमानदारी, सहनशीलता, लगन व् निष्ठा के कारण वहन प्रबंधन गुरुओं में शामिल हैं। भारत के कुछ हिस्से, जिसमें ज्यादातर दक्षिण में हैं, महिलाओं को आज भी परिवार की मुखिया माना जाता है। कार्यस्थल पर महिलाएं विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न की चपेट में आती हैं जैसे कि शारीरिक संपर्क और अग्रिम, यौन पक्ष की मांग या अनुरोध, यौन रंग बनाना या टिप्पणी करना आदि। इस प्रकार के उत्पीड़न से महिलाओं को भारी शर्मिंदगी होती है और इसे किसी भी कीमत पर  प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

महिलाओं को उनके काम करने के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान और सुरक्षित समाज(जहां उन्हें अपने पुरुष समकक्षों के समान माना जाता है) प्रदान करना राज्यों का प्रथम और पवित्र कर्तव्य है। वहां लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए, उन्हें समान अवसर  और सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए। वे सभी भारत की रीढ़ है और हमें उन्हें अपना साझेदार समझना चाहिए, न कि एक प्रतियोगी। लैगिक उत्पीड़न के परिणामस्वरुप भारत के संविधान के अनुच्छेद १४ और अनुच्छेद १५ के अधीन समता और अनुच्छेद २१ के अधीन प्राण और गरिमा से जीवन व्यतीत करने के किसी महिला के मूल अधिकार और किसी वृति का व्यवसाय करने या कोई उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के अधिकार का जिसके अंतर्गत लैंगिक उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण का अधिकार भी है, का उलंघन होता है और् लैंगिक उत्पीड़न से सरंक्षण तथा गरिमा से कार्य करने का अधिकार, महिलाओ के प्रति सभी प्रकार के विभेदो को दूर करने सम्बन्धी अभीसमय जैसे अंतराष्ट्रीय अभीसमयों और लिखतों द्वारा सर्वव्यापी मान्यता प्राप्त ऐसे मानवाधिकार हैं। जिनका भारत सरकार द्वारा २५ जून १९९३को अनुसमर्थन किया गया है और् कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से महिला के संरक्षण के लिए उक्त अभीसमय को प्रभावी करने के लिए उपबंध करना समचीनी है।

भारत की वयस्क महिलाओं की जनसंख्या (जनगणना २०११) के आधार पर गणना की जाए तो पता चलता है कि १४.५८ करोड़ महिलाओं (१८ वर्ष से अधिक की उम्र) के साथ यौन उत्पीड़न जैसा अपमानजनक व्यवहार हुआ है। सवाल उठता है कि वास्तव में कितने प्रकरण दर्ज हुए? राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के अनुसार वर्ष २००६ से २०१२ के बीच आईपीसी की धारा ३५८ के अंतर्गत २८३४०७, धारा ५०९ के तहत ७१८४३ और बलात्कार के १५४२५१ प्रकरण दर्ज हुए। मतलब साफ है कि बलात्कार के अलावा उत्पीड़न के अन्य आंकड़ों को आधार बनाया जाए तो साफ जाहिर होता है कि अब भी वास्तविक उत्पीड़न के एक प्रतिशत मामले भी सामने नहीं आते हैं।

इसी दौरान बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों हेतु एक अलग कानून बना। तदुपरांत यह स्थापित हो गया कि घरों में महिलाओं के साथ कई रूपों में हिंसा बदस्तूर जारी है। इसे लेकर घरेलू हिंसा रोकने के लिए कानून बना। अंतत: यह स्वीकार किया जाने लगा है कि महिलायें भी एक कामकाजी प्राणी हैं, और वे काम की जगह पर भी हिंसा की शिकार होती हैं। इसके लिए अगस्त १९९७ में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में कार्यस्थल पर लैंगिक एवं यौन उत्पीड़न रोकने के लिए विशाखा दिशानिर्देश बनाए थे।

अतः भारत  सरकार ने २२ अप्रैल २०१३ को “कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक अधिनियम लागू किया जो “कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, २०१३” के नाम से जाना जाता है। जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता हैl

ये अधिनियम, ९ दिसम्बर, २०१३, में प्रभाव में आया था। जैसा कि इसका नाम ही इसके उद्देश्य रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में, पीड़ित को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये कार्य करता है। इसके उद्देश्य कि जानकारी इस अधिनियम के प्रस्तावना से हि प्राप्त हो जाती है जो निम्नवत है:-

प्रस्तावना: “महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से सरंक्षण और लैंगिक उत्पीड़न के परिवादो के निवारण तथा प्रतितोषण और उससे सम्बंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए ये अधिनियम”

इस भाग में आइए कुछ परिभाषाओं पर विचार करें;

धारा 2(क) “व्यथित महिला” से निम्नलिखित अभीप्रेत है :-

(i) किसी कार्यस्थल के सम्बन्ध में, किसी भी आयु कि ऐसी महिला चाहे नियोजित है या नहीं जो प्रत्यर्थी द्वारा किसी भी प्रकार के लेंगिक उत्पीड़न  के कार्य को करने का अभिकथन करती है। (ii)किसी निवास स्थान या घर के संबंध में, किसी भी उम्र की ऐसी महिला जो ऐसे किसी निवास स्थान या गृह में नियोजित है।

धारा 2(ई) “घरेलू कर्मकार”:- से एक ऐसी महिला अभीप्रेत है जो किसी गृह में पारिश्रमिक के लिए, गृह से सम्बन्धित कार्य करने के लिए नियोजित है, किसी भी घर में  चाहे नकद या वस्तु के रूप में, या तो सीधे हो या किसी  अभिकरण के माध्यम से अस्थायी, स्थायी, अंशकालिक या पूर्णकालिक आधार पर नियोजित है, लेकिन इसमें नियोक्ता के परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं है।

धारा 2 (च) ““कमर्चारी” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी कार्यस्थल पर किसी कार्य के लिए या तो सीधे या किसी अभिकरण के माध्यम से, जिसके अंतर्गत कोई ठेकेदार भी है, प्रधान नियोजक कि जानकारी से या उसके बिना, नियमित, अस्थायी, तदर्थ या दैनिक मजदूरी के आधार पर, चाहे पारिश्रमिक पर या उसके बिना नियोजित है या स्वेच्छिक आधार पर या अन्यथा कार्य कर रहा है, चाहे नियोजन के निबंधन अभिव्यक्त हो या विवक्षित है या नहीं और इसके अंतर्गत कोई सहकर्मकार, कोई संविदा कर्मकार, परिबिक्षाधिन् शीछु, प्रशिक्षु या ऐसे किसी अन्य नाम से ज्ञात कोई व्यक्ति भी है”।

धारा 2 (ढ) “लैंगिक उत्पीड़न” में निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक अवांछनीय कार्य या व्यवहार चाहे प्रत्यक्ष रूप से या विवक्षित रूप से है अर्थात्

(i) शारीरिक संपर्क और अग्रगमन; या (ii) लैंगिक अनुकूलता की मांग या अनुरोध करना; या (iii) लैंगिक अत्युक्त टिप्पणीया करना; या (iv) अश्लील साहित्य दिखाना; या (v) लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण करना;

धारा 2(ण) “कार्यस्थल” के अंतगर्त निम्नलिखित भी है–

(i) ऐसा कोई विभाग, संगठन, उपकर्म, स्थापन, उ᳒द्द्म, संस्था, कायार्लय, शाखा या यूनिट, जो समुचितसरकार या स्थानीय प्राधिकरण या किसी सरकारी कंपनी या निगम या सहकारी सोसाइटी द्वारा स्थापित, उसके स्वमित्वाधिन् या नियंतर्णाधीन या पूणर्त: या सारत:, उसके द्वारा प्रत्यक्षत:  या अप्रत्यक्षत्: उपलब्ध कराई गई निधि द्वारा वित्तपोषित कि जाती है। (ii) कोई प्राइवेट सेक्टर संगठन या किसी प्राइवेट उ᳒द्द्म, उपकर्म, उ᳒द्द्म, संस्था, स्थापन, सोसाइटी, न्यास, गैर-सरकारी संगठन, यूनिट या सेवा प्रदाता, जो वाणिज्यिक, वृतिक, व्यावसायिक, शैक्षिक, मनोरंजक, औद्योगिक्, स्वास्थ्य सेवाएं या वित्तिय क्रियाकलाप करता है जिनके अंतर्गत उत्पादन प्रदाता, विक्रय और वितरण या सेवा भी शामिल है। (iii) अस्पताल या नर्सिंग होम; (iv) कोई खेल संस्थान, स्टेडियम, खेल परिसर या प्रतियोगिता या खेल स्थल, चाहे आवासीय या प्रशिक्षण, खेल या उससे संबंधित अन्य गतिविधियों के लिए उपयोग नहीं किया जाता है; (v) रोजगार के दौरान या उसके दौरान कर्मचारी द्वारा दौरा किया गया कोई भी स्थान ऐसी यात्रा करने के लिए नियोक्ता द्वारा परिवहन सहित; (vi) एक निवास स्थान या एक घर।

दूसरे भाग में हम इस अधिनियम के अन्य धाराओं और उनके अंतर्गत दिए गए प्रावधानों पर विचार विमर्श करेंगे।

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular