Friday, April 26, 2024
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उन्होंने इतिहास से कुछ नहीं सिखा, जो भाइचारे की बात करते हैं

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
मित्रों सनातन धर्म दिव्य और पवित्र आत्माओं के धरती पर अवतरण का एक माध्यम है। युगों युगों से अनेक महान साधु संतो, ऋषियों व महर्षियों का अवतरण हुआ है। इन महर्षियों ने अपने अपने काल-खन्ड में अपने सद्चरित्र, सरल स्वभाव और सम्पूर्ण प्राणी जगत के कल्याण करने कि भावना से अभिभूत होकर समाज को अपने अपने विचारो, उपदेशों और संदेशों के माध्यम से सही मार्ग अपनाकर जीवन को सार्थक बनाने कि प्रेरणा दी। महर्षि वाल्मीकि से लेकर भारत माता के महान सपूत श्री नरेन्द्र मोदी जी तक सभी महान व्यक्तित्वों ने "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास" वाले सिद्धांत पर चलने हेतु प्रेरित किया। 

पर मित्रों जहाँ कुछ संतो व महात्माओं ने अति अहिंसावादी नीति को अपनाकर सनातन धर्मियों को बिलकुल नपुंसकता कि स्थिति में पहुंचा दिया, जबकि वहीँ पर कुछ संतों व महात्माओं ने आत्मरक्षा को आवश्यक बताते हुए ये संदेश दिया कि “अत्याचार करने वाले से बड़ा अपराधी अत्याचार सहने वाला होता है”। आचार्य चाणक्य से बड़ा उदाहरण सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में आपको नहीं मिल सकता। ऐसे हि आर्य समाज के संस्थापक श्री दयानन्द सरस्वती जी थे या फिर “राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ” के संस्थापक डॉ केशव हेडगेवार साहेब हों इन सभी पवित्र आत्माओं ने अत्याचार के विरुद्ध और सत्य व धर्म के लिए हर युद्ध को जितने के लिए तैयार रहने कि प्रेरणा दी।

भगवान श्री कृष्ण ने भी अपने पवित्र वचनों के द्वारा हमे बताया है कि:-

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

अर्थात संतो कि सुरक्षा के लिए, दुष्टों का सर्वनाश करने के लिए और धर्म कि पुनः स्थापना करने के लिए ईश्वर हर युग में समय समय पर  अवतरित होता है। यंहा पर जो ध्यान देने वाली बात है वो ये कि “दुष्टों का सर्वनाश” करने हेतु, इसका तात्पर्य क्या है? यंहा पर स्पष्टतया ये संदेश दिया जा रहा है कि धर्म कि स्थापना करने हेतु, अधर्मीयों और दुष्टों का सर्वनाश करना आवश्यक है और उनका सर्वनाश अहिंसा से तो कभी नहीं किया जा सकता। प्रभु श्रीराम मर्यादा #पुरुषोत्तम कहलाते हैं, पर उन्होंने भी वक़्त आने पर हथियार उठाए और दुष्टों अधर्मीयों का सर्वनाश कर  धर्म कि स्थापना कि। प्रभु श्रीकृष्ण मुरलीधर थे परन्तु उन्हें भी सुदर्शन चक्र का उपयोग करना पड़ा और दुष्टों का नाश करने के लिए तथा मथुरा को कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए।

याद कीजिए रामायण का वो प्रसंग जब लंका तक जाने के लिए प्रभु श्रीराम ने समुद्र से हाथ जोड़कर प्रार्थना कि परन्तु तीन दिन बित जाने के बाद भी, ना तो समुद्र ने मार्ग दिया और ना हि कोई उपाय बताया, तत्पश्चात कि घटना निम्नवत है:-

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।।५७।।

और फिर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपना धनुष उठाकर ज्यों हि समुद्र को सुखाने के लिए बाण को प्रत्यंचा पर चढाया, समुद्र देव हाथ जोड़कर उनके समक्ष प्रकट हो गए और लंका प्रस्थान करने हेतु मार्ग के निर्माण कि विधि बतला दी। कहने का तात्पर्य ये है कि यदि कोई अत्याचारी अत्याचार कर रहा है तो उसका पुरजोर विरोध होना चाहिए और तब तक होना  चाहिए जब तक “अत्याचारी या तो सुधर नहीं जाता या फिर गुजर नहीं जाता।”

आधुनिक काल में कई संत हुए, जिनमें एक प्रमुख नाम आचार्य रजनीश @ ओशो का भी था।इनके क्रन्तिकारी विचारो ने अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, सहित पूरे यूरोप में तहलका मचा रखा था। इनके अनुयायी विश्व के कोने कोने में थे। इन्होनें ने तो अमेरिका प्रायद्वीप में एक अलग रजनीशपुरम हि बसा रखा था।

इन्हीं के द्वारा अपने भक्त को दिया गया यह उपदेश आज भी प्रासंगिक है और सबसे अधिक महत्व रखता है हम सब सनातनधर्मीयों के लिए। कृपया ध्यान से पढ़े:-

एक बार प्रवचन के दौरान अचार्य रजनीश से उनके एक अनुयायी ने पूछा की।
प्रश्न – *कृपया बताएं कि जब घर और संपत्ति जलाई जा रही हो, जिहादियों द्वारा हत्याएं की जा रही हों तो हमें क्या करना चाहिए? हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए या अपनी सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाना चाहिए, कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य रजनीश ने भक्त कि ओर देखा और मुस्कराते हुए उत्तर दिया।
उत्तर- श्रीमान आपका प्रश्न आपकी मूर्खता को दर्शा रहा है, ऐसा नहीं लगता कि आपने इतिहास से कुछ सीखा है। जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर पर हमला किया, उस समय सोमनाथ भारत का सबसे बड़ा और सबसे अमीर मंदिर था। उस मंदिर में पूजा करने वाले 1200 हिंदू पुजारियों ने सोचा कि हम दिन-रात ध्यान, भक्ति, पूजा में लगे हुए हैं। तो भगवान हमारी रक्षा करेगा। उन्होंने सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की, इसके विपरीत, जो क्षत्रिय अपनी रक्षा कर सकते थे, उन्होंने भी मना कर दिया। परिणामस्वरूप, महमूद ने हजारों निहत्थे हिंदू पुजारियों को मार डाला, मूर्तियों और मंदिरों को तोड़ दिया और बहुत सारा धन, हीरे, जवाहरात, सोना और चांदी ले गया। भगवान का ध्यान और भक्ति पूजा उनकी रक्षा नहीं कर सकी। आज सैकड़ों साल बाद भी वही मूर्खता जारी है, ऐसा नहीं लगता कि आपने अपने महापुरुषों के जीवन से कुछ सीखा है।

आचार्य रजनीश ने पुनः समझाते हुए कहा कि “यदि ध्यान में इतनी शक्ति होती कि वह दुष्टों का हृदय बदल सकता है, तो रामचंद्र जी को हमेशा अपने साथ धनुष-बाण रखने की आवश्यकता क्यों पड़ती। ध्यान की शक्ति से वह राक्षसों और रावण के हृदय को सुर-असुर “भाइ भाइ” के रूप में समझा देते और सारा झगड़ा समाप्त हो जाता।”लेकिन राम भी किसी को नहीं समझा सकते थे और राम-रावण के युद्ध का निर्णय हथियार से तय किया गया।”

अगर ध्यान में इतनी शक्ति होती कि वह दूसरों के मन को बदल सके तो प्रभु श्री कृष्ण को कंस और जरासंघ का वध करने की क्या आवश्यकता होगी! इसके विपरीत महाभारत का युद्ध सर्वोत्तम उदाहरण है इस तथ्य को समझने के लिए कि अत्याचारी के अत्याचार का अंत किये बिना आप अत्याचार के दंश से स्वय को सुरक्षित नहीं रख सकते।

याद करिये मोहम्मद अली जिन्ना के द्वारा शुरू किया गया “Direct Action Day” के तहत मुसलिम लीग के दैत्य सोहराबवर्दी के गुंडों के साथ मिलकर कलकत्ता कि गलियों को हिंदुओ के खून से रंग रहे थे तब तथाकथित अहिंसा के पुजारी और महात्मा सहित सभी तमाशा देख रहे थे, परन्तु जैसे हि एक हिन्दू शुरवीर “गोपालदास पाठा” ने अपने साथियों के साथ मिलकर दैत्यों का नाश करना चालू किया वे सभी अपनी अपनी औरतों के पिछे छिपकर अपनी जान को बक्श देने कि गुहार लगाने लगे और अंतत: वो तथाकथित महात्मा सामने आया और भूख हड़ताल करने के नौटंकी शुरू कर दिया। आज भी मुसलिम लीग के दैत्यों के सलवार गीले हो जाते हैं, जब उन्हें शुरवीर “गोपालदास पाठा” कि याद दिलाई जाती है।

अत: महाराणा सांगा, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, हेमचंद्र विक्रमादित्य, महाराणा रतन सिंह, ललित्यदेव वर्मन, गुरु गोविन्द सिंह, महाराजा रणजीत सिंह इत्यादि हमारे आराध्यों के अमर बलिदान को धूल में मिला देते हो यदि तुम उनसे भाइचारा निभाने कि बात करते हो। म्यांमार के महान संत विराथू कहते हैं कि “आप एक पागल कुत्ते के साथ कैसे सुरक्षित रह सकते हैं” इससे उनका स्पष्ट संकेत उस मानसिकता कि ओर है जिसके वजूद में रहते हम उनसे भाईचारा निभाने कि बात तो सोच भी नहीं सकते।

हमारे शस्त्रों में ये स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा। इसे इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है कि “धर्म की रक्षा करो, तुम स्वतः रक्षित हो जाओगे। इस एक पंक्ति “धर्मो रक्षति रक्षितः” में कितनी बातें कह दी गईं हैं इसे कोई स्वस्थ मष्तिष्क वाला व्यक्ति ही समझ सकता है। और एक सनातनी अपने धर्म, सभ्यता, संस्कृति और भाषा की रक्षा अहिंसा के मार्ग पर चलकर नहीं अपितु धर्मयुद्ध कि घोषणा कर और दुष्टों और पापियों का सर्वनाश करके हि कर सकता है।

अब बात भाईचारे की रही हि नहीं। अब अपने अस्तित्व की रक्षा करने को प्राथमिकता देने का वक़्त आ गया है। तैयार हो जाओ, धर्म की स्थापना करने हेतु धर्म युद्ध के लिए।

जय हिंद। वन्दे मातरम।

नागेन्द्र प्रताप सिंह।(अधिवक्ता) [email protected]

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