जी हाँ दोस्तों विदेशो में हमारे देश के मुख अभिव्यक्ति बने श्री एस जयशंकर जी कि राजनितिक वाक्पटुता और स्पष्टवादिता के सभी मूरीद हो चुके हैं, धन्य हैं हमारे पारखी प्रधानमंत्री जिन्होंने इस हिरे को परखा और विदेश मन्त्रालय कि कमान सौप दी। जैसा कि हमारे शाष्त्रों में कहा गया है।
गुणानामन्तरं प्रायस्तज्ञो वेत्ति न चापरम्।
मालतीमल्लिकाऽऽमोदं घ्राणं वेत्ति न लोचनम्।।
अर्थ : गुणों, विशेषताओं में अंतर प्रायः विशेषज्ञों, ज्ञानीजनों द्वारा ही जाना जाता है, दूसरों के द्वारा कदापि नहीं। जिस प्रकार चमेली की गंध नाक से ही जानी जा सकती है, आंख द्वारा कभी नहीं। ठीक उसी प्रकार शास्त्र ये भी बताते हैं कि
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं, सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम्।।
अर्थ:-सत्संगति, बुद्धि की जड़ता को हरती है, वाणी में सत्य सींचती है, सम्मान की वृद्धि करती है, पापों को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न करती है और दशों दिशाओं में कीर्ति को फैलाती है। कहो, सत्संगति मनुष्य में क्या नहीं करती?
मित्रों मैं आपक ध्यान अमेरिका में हुवर Institution द्वारा आयोजित वर्चुअल चर्चा में जनरल मैकमास्टर के साथ भाग लेने वाले अपने विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर द्वारा दिए गए वक्तव्यों कि ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ।
चर्चा के दौरान उनसे प्रश्न किया गया कि COVID-19 (जिसे हम प्यार से “चाइना-वायरस” भी कहते हैं) से फैली महामारी के दौरान भारत ने उससे कैसे निपटा/ मुकाबला किया। अब इस व्यक्ति का उत्तर पढ़िए, जो निम्न प्रकार है:-
उन्होंने कहा, “हम 800 मिलियन लोगों को मुफ्त भोजन दे रहे हैं। हमने 400 मिलियन के बैंक खातों में पैसा डाला है। अपने कथन को रेखांकित करने के लिए उन्होंने स्पष्ट किया कि, भारत अमेरिका की आबादी से ढाई गुना अधिक खाद्य स्टॉक प्रदान कर रहा था और अमेरिका कि जनसंख्या से अधिक धन प्रदान कर रहा था।
इस तथ्य के प्रकटीकरण के पश्चात् उन्होंने प्रश्न किया कि इन कोशिशों के समय और घटती अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से कितने राष्ट्र इस तरह के खर्च को बनाए रखने में सक्षम थे?
भारत सरकार के एक विफल सरकार के रूप में वैश्विक प्रक्षेपण पर जयशंकर ने कहा, “मैं निश्चित रूप से इसे हमारी वर्तमान सरकार को एक निश्चित तरीके से चित्रित करने वाले राजनीतिक प्रयास के एक हिस्से के रूप में देखूंगा और जाहिर है कि मेरा इससे बहुत गहरा अंतर है।” हाल के दिनों में, भारत की वैश्विक छवि, “अंतिम संस्कार की चिता की रही है”, जिसमें एक राष्ट्र को महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में विफल होने का चित्रण किया गया है। दुनिया ने देखी है महामारी की कई लहरें..
उन्होंने विश्व को सच का सामना कराते हुए तथ्यान्कित करते हुए यह बताया कि अमेरिका, यूरोपीय राष्ट्रों, ब्राजील आदि सहित भारत की तुलना में कम आबादी वाले देशों में हताहतों की संख्या, प्रतिशत में कंही अधिक रही है।
उन्होंने पुनः विश्व कि आँखों में पड़ी धूल को साफ करते हुए स्पष्ट किया और बताया कि “अमेरिका में वास्तविकता यह थी कि, कोविड हताहतों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया था, यांत्रिक साधनों का इस्तेमाल किया गया था, और ये सब् परिजनों को उनके अंतिम सम्मान का भुगतान करने या उपस्थित होने की अनुमति दिए बिना किया गया था। कोविड के खिलाफ जंग हारने वालों में ह्यूमन टच नदारद था।
सामूहिक दफन की प्रतीक्षा में न्यू यॉर्क में लंबे समय से रेफ्रिजेरेटेड वैन में पड़े हुए कोविड के मृतकों के होने की भी खबरें थीं पर अमेरिका और पश्चिमी मीडिया ने तस्वीरों के द्वारा लोगों को खुले मैदान में फूल बिखेरते दिखाया, मृतकों की याद में।
इटली में, स्थिति इतनी निराशाजनक थी कि, सेना को बुलाया गया, हताहतों को लेने के लिए और शहरों से दूर ले जाकर जल्दी से उनका अंतिम संस्कार किया गया। अधिकांश पश्चिमी राष्ट्र, जो वर्तमान में भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं, ने इसी तरह के उपायों को अपनाया। दूसरी ओर, भारतीयों ने तमाम कमियों और एक फैलने वाले वायरस के बावजूद, गरिमा के साथ और धार्मिक लोकाचार के अनुसार अपने मृतकों का अंतिम संस्कार किया।
उन्होंने मिडिया के दुश्चरित्र को उजागर करते हुए आईना दिखाया और बताया कि “यह धार्मिक श्रद्धा का प्रदर्शन था, जिसमें मीडिया ने एक असफल राष्ट्र का चित्रण किया। कोविड के खिलाफ जीत केवल हताहतों (मृत या संक्रमित..) की संख्या से निर्धारित नहीं होती है, बल्कि अधिकांश आबादी की रक्षा करके, साथ ही लागू लॉकडाउन की अवधि के दौरान उनकी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति से निर्धारित होती है।”
हताहतों की संख्या एक राष्ट्र के भीतर जनसंख्या और घनत्व पर निर्भर है; हालांकि वे मायने रखते,पर वे अंतिम निर्धारक नहीं हो सकते। सफलता तार्किक रूप से कोविड चक्र को उलटने पर निर्भर होनी चाहिए, जिसमें न्यूनतम असुविधा और न्यूनतम जनता की पीड़ा हो। तथ्य यह है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला राष्ट्र होने के कारण, उच्च हताहतों की संख्या को नजरअंदाज कर दिया गया था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान सरकार ने चुनाव, धार्मिक आयोजनों और विरोधों के साथ आगे बढ़ते हुए, प्रसार में जोड़ा लेकिन, भारत को ग्लोबली सिंगल आउट क्यों किया गया..? आंतरिक राजनीतिक एक-अप-मैनशिप और सरकार विरोधी समूहों सहित एक अवसर हथियाने सहित कई कारण हो सकते हैं।
भारत कि राष्ट्रीय शक्ति हाल के वर्षों में बढ़ी है, यह वैश्विक टिप्पणीकारों के लिए प्रतिरक्षा है, जिन्होंने महसूस किया कि वे तीसरी दुनिया के देशों को अपनी सनक और पसंद के अनुसार व्यवहार करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। तथाकथित ग्लोबल वॉचडॉग या सीनेटर या पश्चिमी दुनिया के संसद सदस्यों की आलोचना के बावजूद, भारत के फैसले बदलने से इनकार, (चाहे कश्मीर पर हो या नागरिकता संशोधन अधिनियम,) करने से निजी तौर पर वित्त पोषित प्रभावशाली संगठनों को चोट लगी, जिनमें से कई मीडिया हाउस को नियंत्रित करते हैं। राष्ट्रीय छवि धूमिल करने में ये सबसे आगे थे।
पश्चिमी दुनिया की ईर्ष्या का एक अन्य प्रशंसनीय कारण एक एशियाई राष्ट्र की परिधि में, एक वैश्विक आर्थिक दिग्गज बनना, उनकी अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं को पछाड़ना और पहली लहर का सफलतापूर्वक मुकाबला करना भी है। भारत, जिसे हाल ही में तीसरी दुनिया का देश माना जाता था, एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है, जहाँ पश्चिमी नेता व्यापार सौदों पर हस्ताक्षर करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। बढ़ते भारतीय बाजार का एक हिस्सा हथियाना, किसी भी पश्चिमी देश के लिए आर्थिक विकास के लिए एक पूर्व-आवश्यकता है। भाग्य में इस उलटफेर ने पश्चिम में कई प्रभावशाली संगठनों को चोट पहुंचाई है। पश्चिमी राष्ट्रों ने स्वार्थी रूप से तीसरी दुनिया के देशों की उपेक्षा की और सभी टीकों और चिकित्सा उपकरणों को बचा लिया, जो वे अपनी आबादी के लिए जुटा सकते थे, आवश्यकता से कहीं अधिक भंडारण कर सकते थे।
यह भारत था, जिसने कमजोर राष्ट्रों तक पहुंच कर समर्थन किया। भारतीय वैक्सीन डिप्लोमेसी ने भारत के लिए वैश्विक प्रशंसा अर्जित की, जबकि पश्चिम को स्वार्थी करार दिया गया। मित्रों इतनी सुंदरता से स्पष्ट रूप से और अत्यंत हि सामान्य शब्दों को सहायता से भारत के अतुलनीय पराक्रम को व्यक्त करने कि कला तो बस हमारे विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर जी में हि हो सकती है। ऐसे हि व्यक्तियों के बारे में हमारे शास्त्र कहते हैं:-
विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।।
अर्थ:-विपत्ति में धीरज, अपनी वृद्धि में क्षमा, सभा में वाणी की चतुराई, युद्ध में पराक्रम, यश में इच्छा, शास्त्र में व्यसन- ये छः गुण महात्मा लोगों में स्वभाव से ही सिद्ध होते हैं। ऐसे गुण स्वभाव से ही, जिन में हो, उन को महात्मा जानो। इससे जो महात्मा बनना चाहे वह ऐसे गुणों के सेवन के लिए अत्यंत उद्योग करे।
भारत कि वैश्विक उदारता कि कायल तो पूरा विश्व है। आप सभी को याद होगा कि किस प्रकार से अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत में बन रही वैक्सीन के लिए Raw material देने पर रोक लगा दी थी। आप को यह भी याद होगा कि जर्मनी और इंग्लैंड जैसे देश किस प्रकार भारत को घेरने कि तैयारी कर रहे थे, परन्तु ये विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी की जुगलबंदी थी कि लाख कठिनाइयों के पश्चात भी भारत ने ना केवल अपने देश के नागरिकों को वेक्सीन उपलब्ध करवाई अपितु वैश्विक स्तर पर कई छोटे व गरीब देशों को भी वैक्सीन के लाखों डोज निशुल्क प्रदान किये।
जिस प्रकार हमारे प्रधानमंत्री रात दिन भारत कि प्रजा कि भलाई के लिए पूर्णरूपेण ईमानदारी और सच्चाई से कठोर परिश्रम करते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार जॉंच परख कर नियुक्त किये गए मंत्रिगण भी अपना दायित्व निभाते हैं और श्री एस जयशंकर जी उन्हीं में से एक हैं। ऐसे महापुरुषों के लिए मैं तो केवल इतना हि कहना चाहूँगा शास्त्रों कि सहायता से :-
क्वचिदभूमौ शय्या क्वचिदपि च पर्यङ्कशयनम। क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदनरुचि:।।
क्वचित्कन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बरधरो। मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु:खं न च सुखम्।।
अर्थ:-कभी जमीन पर सो रहते हैं और कभी उत्तम पलंग पर सोते हैं, कभी साग-पात खाकर रहते हैं, कभी दाल-भात कहते हैं, कभी फटी पुराणी गुदड़ी पहनते हैं और कभी दिव्य वस्त्र धारण करते हैं – कार्यसिद्धि पर कमर कस लेने वाले पुरुष सुख और दुःख दोनों को ही कुछ नहीं समझते।
धन्य हैं माँ भारती के ये सपूत।
नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)