सार: धर्मनिरपेक्षता भारत का कोढ़ है तथा यह देश के उत्थान में एक कंटक है। इसे सनातन राष्ट्र घोषित करना आवश्यक है तथा इसमें विलम्व अत्यंत घातक हो सकता है। सत्य तो यह है कि यह एक नीति राष्ट्र के अनेकों समस्याओं का निराकरण स्वतः ही कर देगी।
देश का अस्तित्व
किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व केवल तीन मुख्य आयामों पर निर्भर करता है। प्रथम राष्ट्र की सीमा एंव उसकी रक्षा, द्वितीय आर्थिक स्थिति तथा तृतीय राष्ट्र की संस्कृति, उसकी रक्षा एवं उत्थान।
स्वतंत्रता के पहले और बाद में हम तीनों आयमों पर समझौता करते रहे हैं। देश के अनेकों टुकड़े हुए और सीमाएं सिकुड़ती रहीं। देश की सम्पदा को लूटा गया और संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास किए गये। परिणामस्वरूप, हम आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से क्षीण होते गये तथा अपनी संस्कृति के मूल सिद्धांतों से विमुख होते गये। छोटे-मोटे स्वार्थों के लिए समझौता करते रहने से हमारे चरित्र का भी ह्रास होता गया। दुखः की बात यह है कि यह ह्रास अब पूरे समाज को अपना ग्रास बना चुका है। अतः राष्ट्र के जिर्नोधार के लिए हमे तीनों आयामों को सुदृढ़ करने की अवश्यकता है।
भारतीय धर्म
सनातन का अर्थ है शाश्वत, चिरस्थायी अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन मूलत: भारतीय धर्म है, जो पूरे वृहत भारत में व्याप्त था। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मांतरण के बाद भी भारत के बहुसंख्यक सनातनी ही हैं। सारे धर्म एवं आस्था जिनका उदगम भारत भूमि है, हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन तथा अन्य, सनातन धर्म हैं। अपने लाभ के लिए अंग्रेजों ने इनकी व्याख्या कुछ इसप्रकार की ताकि आपस में वैमनस्य एवं अविश्वास रहे। आजादी के बाद भी देश के अधिकतर राजनीतिक दल इस विचारधारा को अपने स्वार्थ के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। वे हमारे ग्रंथो एवं विचारों की मनगढ़ंत परिभाषा देते रहते हैं। विदेशी धन पर पलने वाले मीडिया एवं बुद्धिजीवियों का उन्हें सहयोग मिलता है।
वस्तुतः भारतीय धर्मों एवं आस्था में कोई विरोधाभास नहीं है। यहां की संस्कृति एवं सभ्यता प्राचीनतम है। मुस्लिम आक्रमणकारियों से पहले समाज में सौहार्द एवं प्रेम था। आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ थी कि अंगरेजों के आने तक कहीं भिखारी नहीं दिखाई देते थे। पश्चिम के अनेकों दुष्प्रचार के बाद भी यह सिद्ध हो गया है कि इस धरा का साहित्य प्राचीनतम है। नई खोज एवं अनुसंधान के प्रकाश में विदेशी विद्वानों के खोखले तर्क का जाल छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। इस धरती का ज्ञान-विज्ञान इतना सुदृढ़ है कि अनेकों आधुनिक अनुसंधान की चर्चा पुरातन साहित्य में सहज ही मिल जाती है।
यदि आप थोड़ा विचार करें तो पायेंगे कि देश का ज्ञान-विज्ञान, परंपरा देश के धर्म एवं संस्कारों से घुला-मिला है तथा वे एक दूसरे के पूरक है। सनातन धर्म की स्थापना हमारे संस्कृति के लिए संजीवनी है तथा देश के साहित्य में छुपे रहस्यों को अस्तित्व में लाने का सुगम साधन है। इन अमुल्य ज्ञान-विज्ञान की सहज सुलभता एक ओर राष्ट्र निर्माण में सहायक होगी दूसरी ओर पश्चिमी समाज का बौनेपन उजागर करेगी।
आतंकवादी मानसिकता पर कुठाराघात
इस घोषणा का प्रथम कुठाराघात आतंकवादी मानसिकता पर होगा। धर्म की आड़ में उपद्रव का साहस जुटा पाना सरल नहीं होगा, क्योंकि तब उनके पास संवैधानिक एवं राजनीतिक संरक्षण नहीं होगा । राजनीतिक दलों को आतंकवादीयों का समर्थन देना, दलों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देगी। कुछ दिनों तक हंगामा होगा,परंतु देश के पास उसको कुचलने का संवैधानिक अधिकार होगा तथा उपद्रवियों को राजनैतिक संरक्षण का अभाव। यह सच है कि इसका विरोध पाकिस्तान में होगा, परंतु वो केवल गीदड़-भभकी ही देते रहेंगे। सत्य तो यह है कि उनका मनोबल भी टूट जायेगा। इसकी भी सम्भावना है कि उन्हें अपने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने के पहले विचार करना होगा। आतंकवादी और जिहादी एक दूसरे के पूरक हैं। जिहादीयों को विदेशी समर्थन प्रप्त तो है ही, देश में भी उनके अनेकों संरक्षक हैं। वर्तमान स्थिति में, एक राष्ट्रवादी सरकार भी इन विघटनकारी शक्तियों के विरुद्ध ठोस कदम उठाने में असमर्थ हो जाती है क्योंकि देश धर्मनिरपेक्ष है।
माओवाद और ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के बीच एक अटूट संबंध है। जहाँ धर्मांतरण पर विराम लगा, विदेशी धन आना बन्द हो जायेगा और विराम लग जायेगा माओवादियों पर। जिहाद के लिए विदेशी धन पर भी अंकुश लगाना कुछ सरल होगा तथा स्वतः घट जायेगी शाहीनबाग, दिल्ली दंगे जैसी घटनायें। विभिन्न अवसरों पर सिद्ध हो गया है कि मस्जिदों में अनैतिकता और राष्ट्र विरोधी गतिविधियां होती रहती हैं। धर्मस्थलों की गतिविधियों पर सरकार की दृष्टि रहेगी तो स्वतः राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लग जाएगा।
देश के कई भागों में धर्मांतरण के फलस्वरूप अनेकों समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। जनजाति अपने हजारों वर्षों के संस्कारों, आस्था से विमुख होते जा रहे हैं। गौरक्षक गौभक्षक बन रहे हैं, प्रकृति-पूजक प्रकृति-दोहक बन गए हैं एवं वन विनाश में संलग्न हैं। अतः यह केवल संस्कृति, संस्कार तक ही सीमित नहीं है। इस विनाश का कष्ट प्रकृति को भी झेलना पड़ता है। यह भी एक सच्चाई है कि इस विनाश लिला के मूल में देश की धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत है।
यह सर्व विदित हैं कि देश में पड़ोसी देशों से घुसपैठ होती रहती है। इसकारण कुछ राज्यों एवं कई जिलों के मूल निवासीयों, हिंदुओं का अस्तित्व संकट में है और उन्हें अनेकों कठिनाइयों एवं अत्याचारों को झेलना पड़ता है। इसके भी मूल में हमारा धर्मनिरपेक्षता का कोढ़ है। क्योंकि घुसपैठीयों का विरोध इस्लाम विरोध परिभाषित होता है और घुसपैठियों के समर्थन में अनेकों राजनैतिक दल अपनी राजनीति चमकाने लगते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि ये घुसपैठिए अराजकता, आतंकवाद एवं दुष्कर्म में संलग्न रहते हैं। सत्य तो यह है कि आतंकवादियों एवं जिहादीयों के हाथों में धर्मनिरपेक्षता का ढ़ाल है जो सदा उनकी रक्षा में तत्पर रहता है तथा यह देश के उत्थान का कंटक है।
छिछली एवं विकृत शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा प्रणाली एवं व्यवस्था किसी भी राष्ट्र का दर्पण एवं मार्गदर्शक होती हैं। इस राष्ट्र की प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा छिछली एवं विकृत हैं। देश का एक वर्ग तो आतंकवादी शिक्षा को श्रेष्ठ मनता है। देश की मुख्य शिक्षा प्रणाली एवं व्यवस्था धरा से दूर गगन में तारों को ढ़ूँढ़ते रहती है (Twinkle twinkle little stars …)। यह शिक्षा व्यवस्था बच्चों के गले में रवर बेन्ड़ से झूलता टाई डाल कर क्या सिद्ध करना चाहती है? खेद का विषय यह है कि माता-पिता बच्चों को सरस्वती वन्दना, गायत्री मंत्र तो दूर, “ऊँ” का अभ्यास के लिए भी प्रेरित नहीं करते। हम TV पर भद्दे डांस साथ बैठ कर देखते हैं परंतु धर्म चर्चा, देश की गौरव गाथा को पिछड़पन मानते हैं। यहां भी हम विकृत मानसिकता के दास बन जाते हैं।
देश में जब “वन्दे मातरम्” को अनिवार्य बनाने का प्रयास किया गया तब जैसे भूचाल सा आ गया। स्थिति तो इतनी विकट है कि आप अपने बच्चों को स्कूलों में चूड़ियां डाल कर, टीका/ बिंदिया लगा कर नहीं भेज सकते। सम्भवतः, चूड़ियों की खनक, बिंदिया की चमक से किसी की आस्था को ग्रहण लग जाता है। स्कूलों में सनातन धर्म का तिरस्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। दूसरी ओर, विकृत एवं मनगढ़ंत इतिहास को सुधारने का प्रयास भी बुद्धिजीवियों की आंखो से अंगारे बरसाने के लिए पर्याप्त है। इन भयावह स्थिति पर अंकुश तभी संभव है जब यह एक सुदृढ़ सनातन राष्ट्र बने।
राष्ट्र के विरुद्ध षड़यन्त्र
देश की राजनीति, अधिकारी तंत्र, बुद्धिजीवी समाज, फिल्म उद्योग इत्यादि में ऐसे अनेकों है जो अपने निहित स्वार्थ के लिए अपनी आत्मा, राष्ट्र की सुरक्षा, संप्रभुता एवं समृद्धि के विरुद्ध षड़यन्त्र में संलग्न हैं। उनके अनेकों कृत्यों को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जा सकता है। वे सनातन धर्म की भर्त्सना-उपहास करने तथा विदेशी धर्मों का महिमामंडन करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। यह सब बड़ी सरलता से धर्मनिरपेक्षता की छतरी तले ही होता है। वैसे अभी भी इन विध्वंसकारी शक्तियों पर अंकुश लग सकता है। इस श्रेणी के देशी एवं विदेशी शक्तियां मनुस्मृति, वेद-उपनिषदों का ज्ञान न होते हुए भी अनरगल तर्क देते हैं। स्थिति इतनी भयावह है कि श्रीराम, जो जन-जन के आत्मा में वास करते हैं, के अस्तित्व पर प्रश्न करते हैं। वैसे विदेशी धर्मों की अनरगल एवं तथ्यहीन बातों पर उनके ज्ञान के झरोखे सदा बन्द रहते हैं। देश का धार्मिक अस्तित्व बदलते ही इन विघटनकारी शक्तियों का जीवन दूभर हो जायेगा। विदेशी धन की आपूर्ति बाधित होते ही ये घुटनों पर आजाएंगे। और देश की अनेकों समस्याएं स्वतः दम तोड़ देगीं।
इस धरा का ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, सभ्यता एवं धर्म श्रेष्ठतम है। सनातन एक ऐसी धार्मिक व्यवस्था है जो प्रचीनतम है एवं नित नूतन होती है। यह समस्त विश्व, समस्त मनुष्यों, अन्य जीवों, वन-उपवन, थल, जल, वायु तथा ब्रह्माण्ड के कल्याण की कामना करता है। सनातन धर्म के बिना इस राष्ट्र का अस्तित्व नहीं है। सच तो यह है कि सनातन धर्म एवं संस्कृति देश को एक सूत्र में बान्धे हुए है। इसका पतन ही इस देश के विभाजन का प्रमुख कारण था। देश की प्राण शक्ति सनातन संस्कृति में ही श्वास लेती है। भारत की पहचान सनातन धर्म और संस्कृति से है, इस्लाम या क्रिश्चियानिटी से नहीं। हर देश का यह कर्तव्य होता है कि अपनी भाषा, संस्कृति को सुदृढ़ कर अपनी पहचान को विश्व पटल पर अंकित करे। यह तभी संभव है जब भारत एक सनातन राष्ट्र घोषित किया जाए। अनेकों विद्वानों का मत है कि धर्म का नाश राष्ट्र के पतन की पहली सीढ़ी है। शिव के विज्ञान, रामायण के प्रेम तथा त्याग, और भगवत गीता की शिक्षा की रक्षा करने का यही एकमात्र साधन है।
इस धरा का उत्कर्ष केवल सनातन के मार्ग पर अग्रसर हो कर ही सम्भव है। अतः मेरा शासन के शीर्ष नेतृत्व से निवेदन है कि अविलंब इसे कार्यान्वित करें। अगर बिना समुचित वैधानिक प्रक्रिया के 1976 में देश को Secular, धर्मनिरपेक्ष बनाया जा सकता है, तो एक समुचित प्रक्रिया से इसे सनातन राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया जाना चाहिए? तथा यह जन-जन की कामना है।