दोस्तों १५ अगस्त, जँहा हम सब स्वर्ण जयंती वर्ष को हर्षोल्लास के साथ एक उत्सव के रूप में मना रहे थे वंही अफगानिस्तान कि राजधानी काबुल में आतंकियों ने कब्जा कर लिया था और वँहा पे रहने वाले सभी विदेशियों कि तरह भारतीय समुदाय के लोग भी आतंकित और आशांकित थे और उन आतंकियों के चंगुल में फसने से पहले अपनी मातृभूमि पर सकुशल पहुँचना चाहते थे।
ऐसे में विपक्षी पार्टियों के मनहूसों ने एक बार फिर हमारे प्रधानमंत्री को कोसना शुरू कर दिया था। परन्तु उन गधो कि बातों पर ध्यान न देते हुए दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने आपरेशन देवीशक्ति कि शुरुआत की और हर भारतीय नागरिक के साथ साथ बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल व अफगानी नागरिकों को भी भारत लाने का बीड़ा उठाया।
ये कार्य इतना आसान ना था, आइये देखते हैं क्यों?
भारतीय वायुसेना के विमान अफगानिस्तान में फंसे भारतीयो को काबुल से लेकर आ रहे है। देखने और सुनने मे यह काफी आसान लगता है लेकिन इसके पीछे भारत सरकार की कितनी मेहनत और कितनी कूटनीतिक सफलता है वह भी हमे जानना चाहिये।
सबसे पहली बात यह कि अफगानिस्तान जाने के लिये हमारे पास कोई सीधा हवाई मार्ग नही है इसके लिये सबसे आसान मार्ग जो है वह पाकिस्तान से होकर जाता है लेकिन हम सब को पता है की पाकिस्तान मलेच्छों क देश है जो सदैव भारत से दूश्मनी पाले रहता है अत: हमेशा की तरह पाकिस्तान इसमे बड़ा अड़ंगा था इसलिये भारतीय विमानों को लंबा मार्ग लेकर ईरान से होकर जाना पड़ता है।
इसके लिये भारत सरकार ने सबसे पहले ईरान से भारतीय वायुसेना के विमानों के लिये एयर स्पेस के उपयोग करने की मंजूरी हासिल की यह मंजूरी हासिल करना इतना आसान काम नही था क्योकि कोई भी देश दूसरे देश की वायुसेना को अपने एयर स्पेस के उपयोग की अनुमति नही देता है लेकिन अपने प्रधानमंत्री का यह करिश्मा था कि ईरान से भारत सरकार यह अनुमति हासिल करने में सफल रही।
इस अनुमति को हासिल करने के बाद भी वहाँ एक दूसरी समस्या मुँह बाये खड़ी थी कि भारतीय प्लेन सीधे काबुल के एअरपोर्ट पर नही उतर सकते थे क्योकि तालिबान के साथ भारत के सम्बंध कभी अच्छे नही रहे है। कौन भूल सकता है एअर इण्डिया के विमान का अपहरण कर पाकिस्तानी सूअर अफगानिस्तान हि लेकर गए थे और उस समय वँहा इन्हीं आतंकी तालिबानो का शासन था, इसलिये भारत सरकार तालिबान पर इतना भरोसा नही कर सकती थी कि वायुसेना के प्लेन को वहाँ ज्यादा देर तक खड़ा रख सके।
दूसरी तरफ काबुल एयर पोर्ट में मची अफरा तफरी और भारी भीड़ के मद्देनजर भी यह संभंव नही था कि भारतीय प्लेन वहाँ खड़े रहे।
इसके हल के लिये भारत सरकार ने एक और रास्ता निकाला उसने कजाकिस्तान के एयरपोर्ट का सहारा लिया एक बार फिर इस मामले में भारतीय कूटनीति सफल रही और भारतीय वायुसेना के प्लेन को कजाकिस्तान एयरपोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति मिल गयी।
अब भारत सरकार के पास तिसरी समस्या ये थी कि भारतीयो को काबुल एयरपोर्ट तक कैसे पहुँचाया जाये क्योंकि तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान आतंकियों ने जगह जगह अपनी चेक पोस्ट खड़ी कर दी है ओर वह काबुल एयरपोर्ट आने वाले हर व्यक्ति कि न केवल पूरी तलाशी लेते है बल्कि उसमे अंडगा भी लगाते है दूसरी तरफ काबुल एयरपोर्ट पर मची अफरा तफ़री के कारण भारतीयो का काबुल एयरपोर्ट पर एक साथ इकट्ठा होना भी सम्भव नही था।
आखिरकार भारतीय अधिकारियों ने इसका हल भी ढूढ़ निकाला उन्होंने काबुल एयरपोर्ट के पास ही एक बड़े से गैराज का इंतजाम किया जहां वह लगभग 150-200 भारतीयों को एक साथ इकट्ठा कर सकते थे।
अब रोजाना सबसे पहले भारतीयो को गैराज में इकठ्ठा किया जाता है भारतीयों को इकठ्ठे करने का यह काम रात दिन चलता है। इसके लिये भारतीय अधिकारी खुद अपनी गाड़ी लेकर उस स्थान में पहुँचते है जहाँ पर भारतीय ठहरे होते है उन्हें लेकर वह जगह जगह बनी तालिबानी चेक पोस्टो पर माथा पच्ची करते हुए उन्हें काबुल एयरपोर्ट से सटे गैराज में पहुँचाते है।
जब गैराज में पर्याप्त भारतीय इकट्ठे हो जाते है तो इसकी सूचना भारतीय अधिकारी कजाकिस्तान में खड़े भारतीय वायुसेना के अधिकारियों और काबुल एयरपोर्ट में तैनात अमेंरिकी अधिकारियों तक पहुचाते है। उल्लेखनीय है कि काबुल एयरपोर्ट का ATS कंट्रोल और सिक्योरिटी कंट्रोल अमेरिकी सेना की हाथ मे है इसके बाद अमेरिकी सेना द्वारा भारत के प्लेन को उतरने के लिये क्लियरेन्स दी जाती है। तब कजाकिस्तान एयरपोर्ट पर खड़ा भारतीय वायुसेना का प्लेन वहाँ से उड़कर काबुल पहुचता है। प्लेन की लैंडिंग होते होते गैराज से सभी भारतीय अमेरिकी सेना की गाड़ी में एयरपोर्ट के अंदर पहुँच जाते है। उन्हें तुरन्त फुरन्त वहाँ खड़े भारतीय वायुसेना के प्लेन में चढ़ा दिया जाता है और 15 मिनिट के अंदर अंदर ही भारतीय वायुसेना का यह प्लेन भारतीयो को लेकर अपने देश की और उड़ चलता है।
और इस प्रकार भारतीय समुदाय के लोग उन मलेच्छ आतंकियों के चंगुल से बचकर अपनी धरती पर कदम रखते ही चैन और आनंद कि साँस लेते हैं।
राक्षस तो राक्षस हि होते हैं। काबुल एअरपोर्ट के अबे गेट के पास एक राक्षस ने बम विस्फोट करके २०० से ज्यादा निर्दोषों कि हत्या कर दी वही दूसरे राक्षस ने अन्धाधुन्ध गोलीयाँ बरसाकर कई निर्दोषों को मार डाला। ये दैत्य जिंदा लोगों का खून पीने वाले नरभक्षी जब तक जिंदा रहेंगे तब तक मानवता यूँ हि सिसकती और दम तोड़ती रहेगी, अब पूरे विश्व के मानवो को एकत्र होकर इन दानवो पर आक्रमण कर इन्हें जड़ से समाप्त कर देना चाहिए।
अब ये तथ्य भी किस से छुपा नहीं है की हजारो निर्दोष भारतीयों के हत्यारे मौलाना मसूद अजहर ने तालिबान के सबसे बड़े आतंकी मुल्ला बिरादर से मुलाकात की है काबुल में फैले तलबानी अँधेरे में और इस मुलाकात का एक मात्र मकसद है, तालिबान की सहायता से भारत के कश्मीर में एक बार पुनः आतंकवाद का भयानक तांडव करना। यही नहीं पाकिस्तान में बसे भारत के सभी दुश्मन अब अफगानिस्तान में एक सोची समझी चाल के तहत अपना ठिकाना बना रहे हैं।
IS _खुरासान, हक्कानी नेटवर्क, अल कायदा और तालिबान अब पुरे विश्व विशेषकर भारत और एशिया के अन्य देशो के लिए खतरे की खाई हैं जिसे अमेरिका ने बनाई है। अमेरिका के सबसे कमजोर राष्ट्रपति की गलत नीतियों की सजा पुरे विश्व समुदाय को भुगतना होगा। याद रखिये अमेरिकीयों ने भूल कि और Biden जैसा कमज़ोर राष्ट्रपति चुन लिया एक मजबूत देशभक्त राष्ट्रपति ट्रम्प के स्थान पर जिसका मूल्य उसने चुकाया १३ सैनिको कि बलि देकर और लाखों करोड़ के हथियार आतंकियों के हाथो लुटाकर।
हमें अपने नेता को यथावत रखना है, वो दुनिया का सबसे सशक्त नेता है और हर भारतीय को अपने नेता पर गर्व है। मोदी है तो मुमकिन है
जय हिंद, वंदेमातरम।
नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)