Tuesday, March 19, 2024
HomeHindi17 वीं लोकसभा के दो साल में इतना काम, मनमोहन सरकार सोच भी नहीं...

17 वीं लोकसभा के दो साल में इतना काम, मनमोहन सरकार सोच भी नहीं पाई

Also Read

आम भारतीय हमेशा से नेताओं खासकर सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर सवाल उठाते रहे है, फिर वो संसद की कैंटीन में मिलनेवाला सस्ता खाना था, जो अब नही रहा या सांसदों को दिल्ली में मिलनेवाली सीमित मुफ्त बिजली, पानी, टेलिफोन की सुविधा। राष्ट्रीय मीडिया का एक धड़ा हमेशा से आम लोगों के इन सवालों को प्रमुखता देता रहा, बिना सच्चाई बताएं। उसका कारण भी है, कि राष्ट्रीय मीडिया के हमारे अधिकांश साथी और कार्यालयों में एसी केबिन बैठे उनके वरिष्ठ भारत की महान संसदीय कार्यप्रणाली के जटिल मुद्दों पर लिखने से बचते रहे, क्योंकि उसके लिए उन्हें मेहनत करनी होती।

17वीं लोकसभा के दो वर्ष पूरे होने पर जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने अपने प्रगति रिपोर्ट जारी की, तो आंकड़े सामने आए, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान भारत की संसद को दुनिया के संसदीय विश्व में एक अलग स्थान दिलाते हैं। 25 मई, 2019 को 17वीं लोकसभा का गठन हुआ और 17 जून, 2019 को पहली बैठक। मार्च, 2020 से भारत को कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन का सामना करना पड़ा, लेकिन बावजूद इसके 17वीं लोकसभा के पहले पांच सत्र में लोकसभा ने 122.2 फीसदी का औसत प्रदर्शन किया, जो 14वीं लोकसभा से अब तक का बेहतरीन प्रदर्शन रहा।

उदाहरण के तौर पर यदि हम 14वीं से 17वीं लोकसभा के पहले सत्र के आंकड़ों पर ही नजर डाले, तो तस्वीर साफ हो जाती है। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रीत्व काल में, यूपीए की सरकार के दौरान 14वीं लोकसभा के पहले सत्र में उत्पादकता 52 फीसदी रही थी, वहीं 15वीं लोकसभा के दौरान उत्पादकता 68 फीसदी रही, लेकिन एमडीए के शासन में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए 17वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में उत्पादकता ने 125 फीसदी का स्तर छुआ, जो अपने आप में एक रिकार्ड रहा। इसी प्रकार यदि 14वीं लोकसभा से 17वीं लोकसभा के चौथे सत्र की बात करें, तो आंकड़े और चौकानेवाले सामने आते है। यूपीए शासनकाल में 14वीं और 15वीं लोकसभा के दौरान इस सत्र में उत्पादकता 93 फीसदी और 71 फीसदी रही, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल के दौरान 16वीं और 17वीं लोकसभा में इन सत्रों में उत्पादकता 116 फीसदी और 167 फीसदी रही। यदि हम वर्तमान लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के नेतृत्व में संसद के पहले पांच सत्रों का अध्ययन करें, तो उत्पादकता पांच में चार सत्र में उत्पादकता 125 फीसदी, 115 फीसदी, 167 फीसदी और 114 फीसदी रही। बोलचाल की भाषा में कहें तो 17वीं लोकसभा के इन सत्र में सांसदों ने, देश की संसद ने खूब काम किया।

कोरोना काल में जब सारा विश्व काम में बाधा की समस्या से जूझ रहा था, भारत में संसद की सदन लोकसभा ने ये गौरवशाली, जनहित का काम कैसे किया। ये पिछले दौ साल के आंकड़े खुद ही बयान करते हैं। 17वीं लोकसभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का जोर संसद को निर्बाध्य रूप से चलाने पर रहा और इसे लोकभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के नेतृत्व में बखूबी अंजाम दिया गया। 17वी में सरकार का जोर विपक्ष सहित तमाम राजनैतिक दलों के बीच संसद की कार्यवाही निर्बाध्य रूप से चलाने के लिए आम-सहमति कायम करने पर रहा, जिसका परिणाम है कि 17वीं लोकसभा के दौरान बैठकों की संख्या 114 रही, जो 14वीं, 15वीं और 16वीं लोकसभा की तुलना में सबसे ज्यादा है।

दो सालों में 17वीं लोक सभा में व्यापक चर्चा के बाद 107 विधेयक पारित हुए जिसमे लगभग 263 घंटे का समय लगा। यह अवधि सभा के आवंटित समय से अधिक थी। इन विधेयकों पर चर्चा में कुल 1744 सदस्यों ने भाग लिया।। ये आम सहमति ही थी कि 17 वीं लोकसभा के इन 5 सत्र में हंगामे के चलते केवल 73 घंटे 44 मिनट का कार्य बाधित हुआ, वहींं यूपीए शासनकाल के दौरान 14वीं लोकसभा के पहले पांच सत्र में 112 घंटे 29 मिनट और 15वीं लोकसभा के पहले पांच सत्र में 170 घंटे 25 मिनट तक संसद की कार्यवाही बाधित रही। पहले सत्र के दौरान तो सदन की कार्यवाही 480 घंटों तक चली, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक पहल रही। सत्र के दौरान हुई 37 बैठकों में सदन की कार्यवाही में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं हुई।

17वीं लोक सभा के अब तक आयोजित पांच सत्रों में प्रति बैठक मौखिक प्रश्नों के दिए गए उत्तरों का औसत 5.37 है जो पिछली चार लोक सभा में सर्वाधिक है। पेपरलेस कार्यप्रणाली और डिजिटल  तकनीक को स्वीकारते हुए अधिकाधिक संसदीय पत्रों को डिजिटल प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराने की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास हुए। 17वीं लोक सभा के पांचवे सत्र के दौरान 90 प्रतिशत से अधिक प्रश्नों के ई-नोटिस प्राप्त हुए। शून्य काल में सांसदों को पर्याप्त समय व् अवसर दिया गया जिससे सांसद अपने संसदीय क्षेत्रों की समस्याओं को सदन के सामने रख सके और कार्यपालिका उन मामलों के शीघ्र सामाधान के लिए अपेक्षित कदम उठा  सके। इसी तरह नियम 377 के अधीन मामलों के संबंध में मंत्रालयों से प्राप्त उत्तरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अब लगभग 90 फीसदी मामलों के उत्तर प्राप्त हो रहे हैं।

संसद का काम भारत की जनता के हित में कानून का निर्माण होता है, और 17वीं लोकसभा के पहले पांच सत्रों के दौरान ये काम बखूबी किया गया। 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में तो कानून निर्माण को लेकर एक ऐतिहासिक रिकार्ड कायम किया गया। पहले सत्र में 33 सरकारी बिल सदन में प्रस्तुत किए गए, वहीं 35 सरकारी विधेयकों को सदन ने पारित किया। इन विधेयकों पर सदन में रिकार्ड 124 घंटे 40 मिनट तक बहस हुई। यदि हम एनडीए काल की 17वीं लोकसभा की तुलना यूपीए शासनकाल की 14वीं और 15वीं लोकसभा के पहले पांच सत्र में कानून निर्माण को लेकर करें, तो चौकाने वाले आंकड़े सामने आते है। 14वीं लोकसभा के 5 सत्र में केवल 67 सरकारी बिल प्रस्तुत किए गए, वहीं 60 विधेयक पारित हो सके। 15वीं लोकसभा के पहले 5 सत्र में ये आंकड़ा 82 और 68 विधेयकों का रहा। वहीं 17वीं लोकसभा में मात्र 5 सत्र में 102 विधेयक प्रस्तुत किए गए। इस दौरान 107 विधेयकों को सदन में पारित किया गया। ऐसा इसीलिए हो सका क्योंकि इन सत्रों के दौरान विधेयकों पर 1744 सांसदों को बोलने का मौका दिया गया। सदन में 262 घंटे 55 मिनट तक विधेयकों पर बहस हो सकी। वहीं 14वीं लोकसभा में इस काल में 496 सांसदों को विधेयकों पर अपनी बात रखने का मौका मिला, वहीं 15वीं लोकसभा में 709 सांसद विधेयक पर बोल पाए।

17वीं लोकसभा के पहले दो साल के ये आंकड़े उन लोगों की गलतबयानी को उजागर करते है, जो मौजूदा सरकार पर अधिनायकवाद याने डिक्टेरशिप का आरोप लगाते है। लोकसभा के इन दो वर्ष में देशभर की 545 संसदीय क्षेत्रों से मतदाताओं द्वारा चुनकर आए जनप्रतिनिधियों को पिछली लोकसभाओं के मुकाबले ज्यादा मौके मिले। संसद में पिछली लोकसभाओं की तुलना में ज्याादा विधेयक पारित किए गए, ज्यादा कानून बने। रिकार्ड संख्या में सांसदों ने संसदीय बहसों में हिस्सा लिया और सदन की कार्यवाही कम से कम समय के लिए बाधित हुई। ये आंकड़े दरअसल भारतीय लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली को मजबूती की ओर ले जाने के प्रयासों की तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं।

(लेखक प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स से पॉलिटिकल कम्युनिकेशन में रिसर्च स्कॉलर रहे है। पिछले दो दशकों से भारतीय संसद एवं संसदीय प्रणाली को एक पत्रकार के रूप में कवर कर रहे है।)

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular