Friday, April 26, 2024
HomeHindiमोहपला हिंदुओ का नरसंहार

मोहपला हिंदुओ का नरसंहार

Also Read

Chirag Dhankhar
Chirag Dhankhar
Student of Foreign Language at Jawaharlal Nehru University. History Reading Writing

हिंदुओं का यूं ही होगा भक्षण
जालिमो को अगर तुम दोगे संरक्षण
अब आवाज़ उठाओ या आवाज़ दबाओ
प्रतीक्षा का अब शेष नही एक भी क्षण

मोहपला हिंदुओ का नरसंहार एक उस बुरे सपने की तरह था जिसे उन्होंने कभी सोचा भी नही था। आज मैं आपको इसके पीछे कि सच्चाई बताने जा रहा हूं। उनके साथ जो हुआ उन्हे तो कुछ इतिहासकारों ने अपनी किताबों के पन्नो में भी जगह नहीं दी। काफी इतिहासकारों ने इसे बस एक प्रकार का अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन बता कर दबा दिया। लेकिन इस घटना का संबंध बीते हुए कल से ही नही बल्कि आने वाले भविष्य से भी हैं।

ये कहानी उस वक्त की है जब कांग्रेस द्वारा इस्लामी खलीफा के समर्थन में चलाया गया खिलाफत आंदोलन अपने चर्म पर था। इस्लाम के हुक्मरान उस वक्त दुनिया भर में इस्लामी खलीफा स्थापित करने के लिए तत्पर थे। इसके लिए खिलाफत सभाओं में “काफिरों” को खतम करने के लिए नारे लगाए जा रहे थे। वही दूसरी और हिंदुओ को “हिंदू–मुस्लिम” भाई भाई का पाठ पढ़ाया जा रहा था। मुसलमानों का महजबीं उन्माद पुरे चरम पर था। और यहां भारत पर हमला करके यहां खिलाफत सतापिथ करने की बात कर रहे थे।

सन उन्नीसों बीस में गांधी ने केरल का दौरा कर हिंदुओ से खिलाफत आंदोलन के लिए धन इकट्ठा कराया पर उन बेचारे हिंदू को कहाँ पता था ये धन उन्हें खत्म करने में ही इस्तमाल होगा। उन्नीसो इक्किस की शुरुआत में एक खबर फैली की “तुर्की में खिलाफत स्तपिथ हो गया है। और इसी सोच में वहां के मुसलमानों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ दी। करीब एक सो पचास मोहल्पा लोगो को वहाँ से एक बोगी में जेल ले जाया गया जाते वक्त पैंसठ लोगो की ट्रेन की बोगी में मौत हो गई। ये खबर फैलते ही मुसलमानों ने दंगा फसाद शुरू कर दिया। इसका शिकार बने मालाबार और मोहलपा मै रहने वाले हिंदुओ की है। अली बंधुओ के भाषण जो वो खिलाफत सभाओं में दे रहे थे। वो अब मस्जिदों से बोले जाने लगे और आग में घी का काम किया।

जुलाई में हुई खिलाफत कमेटी की बैठक ने जहां पर अंग्रेजो को मिटाने की बात कह दी गई थी। पर इसका अंजाम भुगता वहा के हिंदुओ ने। उस समय “अली मुस्लिर” को मालाबार की जमात मस्जिद में वहां का राजा बना दिया गया। उसने उस समय खिलाफत आर्मी बनाई जिसमे उन मुसलमानों को भर्ती किया गया जो प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा ले चुके थे। इस इस्लामी सेना में साठ हजार मुस्लिम सिपाही थे। इमारतों पर तुर्की खलिफा के झंडे लगा दिए गए। एक विशेष प्रकार के छुरे जिन्हे “खिलाफती छुरे” कहा गया सभी मुसलमानों को बाट दिए गए। अब जब इस क्षेत्र से अंग्रेज जा चुके थे, तो बारी आई वहां रहने वाले हिंदुओ की जिन्हें “इस्लाम या मौत” में से एक चुन ने को कहां गया। मुसलमानों द्वार हिंदुओ पर भयानक अत्याचार शुरु हो गए। हजारों हिंदुओ का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। जिन हिंदुओ ने मुसलमान बन ना स्वीकार नही किया उन्हें मार दिया गाय। हिंदू के शत विक्षत शवों से मालाबार की सड़के भरी पड़ी थी। गर्भवती महिलाओं के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए और सड़कों और जंगलों में फेक दिया गया। इनके गर्भ से निकले अजन्मे बच्चों को आग में जला दिया गया या दफन कर दिया गया। निर्दोष एवं असहाय हिन्दू बच्चो को उनके माता पिता के सामने करुरूता की सारी हदें पार करते हुए मार दिया गया। महिलाओं को दासी बनाकर बेच दिया गया वहशी पन की सारी हदें पार की गई। मंदिर परिसरों में गायों को काटा गया और मूर्तिया तोड़ी गई।

“सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी” की एक रिपोर्ट के अनुसार ढाई हजार हिंदुओ को काटा गया। बीस हजार हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। हिंदू महिलाओं के साथ दुष्कर्म की कोई सीमा नही थी। सौ से ज्यादा हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया तीन लाख करोड़ रुपए की हिंदुओ की संपति को लुटा गया। जब इस घटना के बारे में संपूर्ण देश को पता चला तो कांग्रेस इस से मुकरती रही। लेकिन जब छुपाना मुश्किल हो गया तो बस एक निंदा परस्ताव पारित कर दिया गया। जिसका मुस्लिम नेताओं ने जबरदस्त विद्रोह किया। कांग्रेस और गांधी इन खिलाफाती नेताओं के सामने नतमस्तक थे। कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने इनके द्वारा चलाये जा रहे शुद्धि आन्दोलन का विरोध शुरू कर दिया। कहा गया की यह आन्दोलन हिन्दू मुस्लिम एकता को कमजोर कर रहा है। गाँधी जी के निर्देश पर कांग्रेस ने स्वामी जी को आदेश दिया की वो इस अभियान में भाग ना लें। स्वामी श्रधानंद जी ने उत्तर दिया, ‘मुस्लिम मौलवी’ हिन्दुओं के धरमांतरण का अभियान चला रहे हैं। क्या कांग्रेस उसे भी बंद कराने का प्रयास करेगी?

कांग्रेस मुस्लिमों को तुस्त करने के लिए शुद्धि अभियान का विरोध करती रही लेकिन गांधीजी और कांग्रेस ने ‘तबलीगी अभियान’ के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं कहा। स्वामी श्रधानंद जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया। स्वामी श्रधानंद जी शुद्धि अभियान में पुरे जोर शोर से सक्रिय हो गए। साठ मलकान मुसलमानों को वैदिक (हिन्दू) धर्म में दीक्षित किया गया। उन्मादी मुसलमान शुद्धि अभियान को सहन नहीं कर पाए। पहले तो उन्हें धमकियां दी गयीं, अंत में बाईस दिसम्बर उन्नीस सौ छब्बीस को दिल्ली में अब्दुल रशीद नामक एक मजहबी उन्मादी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली जब कुछ नेताओं ने जब सही स्तिथि बतानी चाही जैसे अन्नी बेसेंट लिखती है “महिलाओं पर किए गए बलात्कारों के विषय में सुना तो मेरे मन में जो घृणा और क्रोध उठे थे, उन्हें शब्दों में बता पाना कठिन है।

इन विद्रोहियों ने एक सम्मानित नैयर महिला को उसके पति और उसके भाइयों के सामने निर्वस्त्र किया उनके हाथ बांधकर उन्हें वहाँ खड़े होने पर विवश किया गया। जब वो घृणा से अपनी आँखें बंद करते तो उन्हें तलवार के ज़ोर पर आँखें खोलने पर विवश किया गया और उनकी आँखों के सामने उन दरिंदों ने उस महिला से बलात्कार किया। मुझे ऐसी घृणित घटना लिखते हुए भी ग्लानि हो रही है” या बाबा साहब लिखते है “उन्होंने (मुसलमानों ने) बिना किसी कारण के, जानबूझकर हिंदुओं परआक्रमण किए थे। एर्नाड में बड़े स्तर पर, हिंदुओं के घरों को लूटा गया और उन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया। जो हिंदू किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं कर रहे थे, उन्हें भी पूरी क्रूरता से, केवल इसलिए मार दिया क्योंकि वो काफिर थे”। स्वतंत्रता वीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों बीस जनवरी उन्नीस सौ सत्ताईस के ‘श्रधानंद’ के अंक में अपने लेख में गाँधी जी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा- गाँधी जी ने अपने को सुधा हर्दय, ‘महात्मा’ तथा निस्पछ सिद्ध करने के लिए एक मजहवी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है। मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे पहले ही ऐसी सुहानुभूति दिखा चुके हैं।

गांधी अपने “यंग इंडिया” के लेख में लिखते है “मोपला दंगों के लिए हिन्दु ही आरोपी हैं। हिन्दुओं ने मुसलमानों का ध्यान नहीं रखा। उन्हें अपना मित्र नहीं माना। अब मुसलमानों पर क्रोधकरने का कोई लाभ नहीं है।” क्यों की मालाबार के मुसलमानों को “मोहपाला मुसलमान” भी कहा जाता हैं इसलिए इसे “मोहपाला हिंदुओं” का नरसंहार भी कहा जाता है। वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारो ने इस नारशहर को एक “गरीब किसानो द्वार ब्रिटिश सरकार और अमीर जमींदारों के विरुद्ध बदल दिया है। यही नहीं इन वामपंथी इतिहासकारों ने इस नरसंहार को स्वराज सतापीथ करने वाला स्वतंत्रता आंदोलन सिद्ध कर दिया है। पर इतिहास तो उन हजारों हिंदू पुरुष और महिलो के खून से लिखा है जो सरकार और राजनेताओ की तुष्टीकरण की राजनीति की भेंट चढ़ गए। स्थिति आज भी कुछ ज्यादा बदली नही है वहा रहने वाले हिंदुओ के लिए।

केरला के दक्षिणी भाग में कम्युंटिस्टो का राज है तो उत्तर की तरफ ईसाई मिशनरियों और मुसलमानों का और इनके बीच में पिसते है हिंदू। आजादी के बाद से ही केरला मै कम्युनिस्टो का राज रहा है। ये गठबंधन कुछ ऐसे है की वहां की सरकार मुसलमानों कि सहयता करती है और मुसलमान उनकी। अगर आप केरला के बारे में पढ़ेंगे तो पता चलेगा की वहा पर ईसाई मिशनरियों द्वारा जबरन धरमंतर जोरो पर है। यहीं नही कुछ इतिहासकार ये तक मानते है की संस्कृत को अंग्रेजो ने भारत में शुरू की थी। आज जब मोलपहा की बात हो रही है तो हम “मरद नर्शनहार को कैसे भूल सकते है जब आठ हिंदू मच्छवारो को मुसलमानों ने मौत के घाट उतार दिया था।

और इतना ही नही केरला की सरकार ने तो मोलपहा दंगो मैं शामिल मुस्लिम परिवारों को पेंशन देना तक सुरु कर दिया था। मल्लापरम यह नाम ही मन में दर्द, आघात और भय जाग्रत करता है, उन लोगों के मन में भी जो वहाँ कभी नहीं गए हैं। इसकी प्रायः कश्मीर से भी तुलना की जाती है। वही कश्मीर जहाँ के हिंदुओं ने धार्मिक आतंकवाद के कारण कल्पना से बहुत अधिक बर्बरता झेली है। जैसा की सभी समाजिक वैज्ञानिक कहते है की सरकार का काम होता है लोगो की रक्षा करना उनके धर्म की रक्षा करना पर केरला में इसका एक दम उलट है।

Written By: चिराग धनखड़

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

Chirag Dhankhar
Chirag Dhankhar
Student of Foreign Language at Jawaharlal Nehru University. History Reading Writing
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular