Tuesday, November 12, 2024
HomeHindiबंगाल की हिंसा और हिंदुत्व समर्थक वर्ग का गुस्सा

बंगाल की हिंसा और हिंदुत्व समर्थक वर्ग का गुस्सा

Also Read

राजा राममोहन राय, गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर, अरविन्द घोष, बंकिम चन्द्र चटर्जी, जगदीश चन्द्र बोस, सुभाष चन्द्र बोस जैसे अनगिनत महान राष्ट्रभक्तों का बंगाल जल रहा है। यह जल रहा है उन देशभक्त हिन्दुओं की चिताओं पर जिन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण व लाशों की राजनीति करने वालों के विरुद्ध हिंदुत्व का भगवा थामा था। यह जल रहा है उस विश्वास की वेदी पर जो हिन्दुओं को उनके हितों के संरक्षण का वादा दे रहे थे। कांग्रेस और वाम दलों के लम्बे शासनकाल के कारण बंगाल की अस्मिता हिन्दू-मुस्लिम एकता को महत्त्व देती रही जो एक छलावा है। इसका सबसे अधिक आघात हिन्दू बहुल आबादी को उठाना पड़ा है। इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता से पूर्व व उसके बाद हुए राजनीतिक दंगों में सर्वाधिक नुकसान बंगाल के हिन्दुओं को उठाना पड़ा है।

वाम शासनकाल में तो स्थिति इतनी विकट थी कि हिन्दू उद्योगपति तक तत्कालीन कलकत्ता छोड़कर मुंबई बस गए और उसे देश की आर्थिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। ३५ वर्षों के वाम शासनकाल के बाद ममता बनर्जी के आने से बंगाल के वंचित हिन्दुओं को एक आस बंधी थी कि जिस खूनी संघर्ष व अराजकता का उन्होंने सामना किया है उसमें अब कमी आयेगी किन्तु यही उनकी सबसे बड़ी भूल सिद्ध हुई। कभी राम नवमी के जुलूस पर प्रतिबन्ध तो कभी दुर्गा पूजा विसर्जन में सरकारी बाधा पहुँचाना, ममता सरकार ने हिन्दू विरोध का हर वह कार्य किया जो उन्हें मुस्लिम मतदाताओं का एकमात्र लाभान्वित बनाये।

मुस्लिम समुदाय भी ममता के इस साथ से आल्हादित होकर हिन्दुओं के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगा। चूँकि यह सर्वविदित है कि जहां भी मुस्लिम बहुसंख्यक/अल्पसंख्यक हैं वहां एकमुश्त भाजपा के विरोध में अपने मतों का प्रयोग करते हैं, इसी स्थिति ने ममता को मुस्लिम समुदाय के समक्ष आत्मसमर्पण करने का मन्त्र दिया। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव की मतगणना में भी मेरे इस तथ्य की पुष्टि होती है। मुस्लिम बहुल जिलों मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर में विधानसभा की ४९ सीटें आती हैं जिनमें से ३६ मुस्लिम बहुल सीटों पर ममता की तृणमूल कांग्रेस जीती है। बाकी बची सीटों पर भी यदि मुस्लिम मत संख्या अधिक होती तो यहाँ भी ममता के खाते में सीटें बढ़तीं।

दरअसल, ममता के पास अपने १० वर्षों के शासनकाल में जनता को दिखाने के लिए कुछ नहीं था अतः उन्होंने खुलकर मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए हिन्दुओं को भरमाने का काम किया। उन्होंने नकली बंगाली अस्मिता का हवाला देकर हिन्दुओं को भ्रमित किया जिसमें हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई हैं। जो बहुसंख्यक हिन्दू भाजपा को विकल्प मान चुके थे उन्होंने तो ममता के इस राजनीतिक रंग को उड़ा दिया किन्तु कामकाजी हिन्दू; जो मारवाड़ी व बिहारी है, ने ममता का साथ दिया। यही कारण रहा कि भाजपा कोलकाता समेत शहरी क्षेत्रों की एक भी सीट नहीं जीत पाई।

किन्तु सवाल यहाँ बड़ा है? जिस हिंदू ने ममता की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को जानते-समझते हुए भी वोट दिया है क्या उस हिन्दू के भाई की बंगाल में रक्षा हो रही है? बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों से छनकर आ रहीं तस्वीरों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता! हिन्दू, चाहे उसने भाजपा के पक्ष में वोट दिया हो अथवा तृणमूल कांग्रेस के, मार दोनों खा रहे हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हो रही हिंसा ने हिन्दुओं को डर से भर दिया है। अब तक लगभग १० हिन्दुओं की मृत्यु की खबर मीडिया दिखा चुका है। भाजपा कार्यकर्ताओं के तो परिवारीजनों को भी पीटा जा रहा है। भाजपा के विभिन्न स्थानीय नेता अपने प्राणों को बचाने हेतु केंद्रीय नेतृत्व से गुहार लगा रहे हैं। हृदयविदारक दृश्यों को देखने और चौतरफा दबाव के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व हरकत में आया है और बंगाल की स्थिति को लेकर सख्ती दिखा रहा है।

किन्तु सोशल मीडिया पर भाजपा की ओर से घोषित देशव्यापी लोकतांत्रिक धरने पर विवाद शुरू हो गया है। एक बड़ा वर्ग इसे भाजपा नेतृत्व की कमजोरी मान रहा है। उसे लगता है कि बंगाल में हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार के बाद ममता सरकार को शपथ लेने से रोकते हुए वहां राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए। यह प्रश्न भी उठ रहा है कि मरते हुए कार्यकर्ताओं को बचाने के लिए कोई बड़ा नेता उनके बीच नहीं जा रहा। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिवसीय दौरे पर बंगाल जा रहे हैं किन्तु भाजपा के इस कट्टर समर्थक वर्ग को यह नाकाफी लगता है। देखा जाए तो भाजपा समर्थकों के भाव गलत भी नहीं हैं। केंद्र में ३०३ सीटें देकर जिस बड़े हिंदूवादी वर्ग ने अपना प्रधानसेवक चुना था वह उससे ठोस निर्णय की अपेक्षा रखता है। वही ठोस निर्णय जो गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर मुद्दे पर लिया था। वही ठोस निर्णय जो सीएए के मुद्दे पर था। यह बड़ा हिंदूवादी वर्ग सावरकर और तिलक जैसे हिंदूवादी नेताओं को मोदी-शाह की जोड़ी में ढूंढ रहा है जिन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ऐसी लहर पैदा की जिसने भारत में हिंदुत्व को स्थापित कर दिया वह भी ऐसे समय जबकि अंग्रेज खुलेआम मुस्लिमों का साथ दे रहे थे। यह वही वर्ग है जो हिंदुत्व के मुद्दे पर मोदी-शाह को भी नकारते हुए अपना रोष प्रकट करता है।

देखा जाए तो यह वर्ग हिंदुत्व के मुद्दे पर इतना मुखर हो चुका है कि उसे अब ठोस परिणाम चाहिए। तभी वह मोदी के बाद योगी ने नाम पर मुहर लगा देता है। इस वर्ग की भावनाओं की अनदेखी भाजपा नहीं कर सकती और मोदी-शाह भी यह भली-भान्ति जानते हैं कि यही वो वर्ग है जो उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है। किन्तु क्या इस वर्ग की भावनाओं को केंद्रीय नेतृत्व सुनेगा? कोरोना महामारी में प्रोपगेंडा के चलते केंद्र की निंदा जिस प्रकार हो रही है और केंद्रीय सत्ता भी सहमी हुई है उसे देखते हुए अपने सबसे मुखर समर्थक वर्ग को नाखुश करना कहीं भाजपा के नीति-नियंताओं को भारी न पड़ जाए। बंगाल में हिन्दुओं के साथ हो रही हिंसा के चलते यदि भाजपा जैसी राष्ट्रवादी पार्टी भी गांधीवादी तरीके से धरना-प्रदर्शन करेगी तो उसमें व अन्य हिन्दूद्रोही दलों में क्या अंतर रहेगा? समय है कि राजतंत्र को निभाया जाए और इस देश की बहुसंख्यक जनसंख्या को यह विश्वास दिलाया जाए कि भाजपा संगठन व सरकार उनके साथ है। तभी हिन्दूद्रोह में आकंठ डूबे राजनीतिक दलों की राजनीति समाप्त होगी।

  • – सिद्धार्थ शंकर गौतम

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular