निजी नौकरियों में आरक्षण से निवेश में कमी आएगी
आज देश कोरोना महामारी के कारण बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है, और ऐसे नाजुक समय में झारखंड सरकार द्वारा स्थानीय संरक्षण का हवाला देकर निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण लागू किया जा रहा है। बेरोजगारी का दंश झेल रहा झारखंड में हाल के दिनों में स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों को आरक्षित करने की कोशिश की है, जिससे स्थानीयवाद, क्षेत्रवाद और आरक्षण जैसे मुद्दों पर बहस शुरू हो चुकी है।
हाल में ही झारखंड सरकार के द्वारा एक नया कानून लाया गया, जो निजी क्षेत्र की उन नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए कोटा का प्रावधान करता है, जिसमें 30 हजार रुपए तक की वेतन शामिल हैं। इस कानून के तहत 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी में शामिल करने की व्यवस्था है, और तकनीकी रूप से दक्ष युवक और युवतियों, मजदूरों की नियुक्ति में प्राथमिकता देने की बात कही गयी है। इस कानून में यह भी कहा गया है कि अगर संबन्धित कंपनी को उनकी आवश्यकता अनुसार स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित लोग नहीं मिलते हैं, तो वह कंपनियाँ सरकार के साथ मिलकर तीन वर्षों में प्रशिक्षण देकर नौकरी लायक बनाने के लिए प्रशिक्षण दे, जिससे कंपनी यह बहाना न बना सके कि उन्हे कौशल मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं।
बता दें कि इस तरह के कानून के प्रयोग अन्य प्रदेशों के द्वारा पहले भी होते रहे हैं। आंध्रप्रदेश सरकार ने इसी तरह का फैसला लिया था, लेकिन यह कानून इसलिए लागू नहीं हो पाया क्योंकि उस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। वर्ष 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी मध्य प्रदेश के स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र में नौकरियों में 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी। प्रश्न यह उठता है कि क्या निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करना क्या जरूरी है? क्या इस तरह के आरक्षण के प्रावधानों से निजी क्षेत्र की कंपनियों के मन में अनावश्यक दबाब नहीं होगा? कंपनी ऐसे राज्य में निवेश से बचने की कोशिश करेगी कि, जहां उसे स्थानीय आरक्षण के कानून से उसे बंधना पड़ेगा, कंपनियाँ निवेश करने से पहले सौ बार सोचेगी।
झारखंड में बने इस कानून के तहत अगर कोई निवेशक उधोग लगाता है और उसे यह निर्देश दिया जाता है कि आपको 75 प्रतिशत लोगों का बहाली स्थानीय स्तर पर करनी होगी, तो क्या निवेशक यह नहीं सोचेगा कि हमें अत्याधिक कुशल लोग दूसरे राज्यों से मिल रहे हैं तो मैं झारखंड से लोगों को लेकर अपना कार्य को प्रभावित क्यों करूंगा? एक निवेशक के लिए पूरा भारत ही खुला है, वह चाहे जिस राज्य से कुशल कर्मचारियों एवं कामगारों को काम पर रख सकता है, और वह ऐसे राज्य में अपना निवेश करना चाहेगा, जहां इस तरह के स्थानीय आरक्षण कानून लागू नहीं है।
सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले यह सोचना अतिआवश्यक है कि इस फैसले का क्या असर राज्य और निवेशक पर पड़ने वाली है। हमारे देश में बहुत ऐसे कम कामगार हैं, जिनके पास स्थायी नौकरी है। कामगारों का बड़ी संख्या अनिवार्य रूप से निजी क्षेत्र का हिस्सा है। हम सब जानते हैं कि झारखंड की एक बड़ी मजदूर आबादी देश के उन राज्यों में जाकर रोजगार करती है, जो अधौगिक रूप से सशक्त हैं। अगर सभी प्रदेश इसी तरह की संरक्षण नीति अपनाने लगेंगे, तो क्या यह संभावना नहीं होगी कि झारखंड के लोगों को भी वहाँ से निकाला जा सकता है ,तो ऐसे में इस कानून से प्रदेश में बेरोजगारी कम होने के बजाय और बढ़ जाएगी। लोगों के मन में दूसरे प्रदेश के प्रति मन में घृणा का भाव उत्पन्न होगा और अफरा–तफरी का माहौल बन जाएगा। यह कानून रोजगार देने से अधिक लोगों के लिए कष्ट दायी सिद्ध होगी, क्योंकि इसमें निजी निवेश बुरी तरह से प्रभावित होगी।
निजी क्षेत्र में संरक्षण कई मामलों में हानिकारक है। यह कानून क्षेत्रवाद को भी बढ़ावा देता है और राज्यों के बीच संबंध को भी प्रभावित करता है। संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार यह जाति, लिंग भाषा, नस्ल के आधार पर भेदभाव करने वाला कानून है, साथ ही अनुच्छेद 19 को भी प्रभावित करता है जिसमें यह कहा गया है कि हर व्यक्ति को देश में कहीं भी व्यापार, कारोबार करने ऑर रोजगार पाने का पूर्ण हक है।
ज्योति रंजन पाठक –औथर व स्तंभकार