भारतीय समाज का सामाजिक दृष्टिकोण हमेशा से राजनितिक और सांस्कृतिक नेतृत्व तय करता आया है। आज से कुछ सौ वर्ष पूर्व समाज का नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पण कुछ ;अलग ही स्तर पर था, जो आज मिलना बहुत मुश्किल है। कारण सिर्फ हमारे राजनितिक नेतृत्व के पतन है जिसने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को भी आगे नहीं बढ़ने दिया। इस नैतिक पतन के अनुक्रम में समाज नीचे ही गिरता चला गया। इसका समाज पर पड़ने वाला असर सुखद नहीं रहा। एकल परिवारों की विचारधारा ने जन्म लिया, एक पीढ़ी पहले तक जो वृद्ध लोग अपने परिवार की छाँव थे, अब आधुनिकता के प्रथम सोपान में फिट नहीं हो रहे थे। बच्चों को प्राइवेसी का नया शौक लग चूका था और अब बुजुर्गों के लिए एक नयी व्यवस्था ने जन्म लिया। वृद्धाश्रम हमारे समाज के मुंह पर पड़ा वो तमाचा था, जिसने बताया कि अच्छी शिक्षा और रोजगार पाने वाला व्यक्ति यदि अपने माता पिता की सेवा कर अपने साथ नहीं रख सकता तो वो नाकारा ही है।
हेल्पेज इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में इस समय 1,176 सीनियर सिटीजन फैसिलिटीज अर्थात वृद्धाश्रम चल रहे हैं और देश के ‘तथाकथित’ सर्वाधिक पढ़े-लिखे राज्य केरल में सबसे अधिक वृद्धाश्रम (182) हैं। एक छोटे लेकिन सर्वाधिक साक्षर राज्य का इस प्रकार सबसे ऊपर आना चिंतित करता है लेकिन यही वो राज्य है जहाँ भारतीयत्व को सर्वाधिक नकारा भी जाता है। इससे भी अधिक चिंतनीय विषय ये है कि भारत में वृद्ध जनसंख्या अभी आठ प्रतिशत है जो 2050 में 20 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी जिस कारण वृद्धाश्रम एक अनिवार्य बुराई बन जायेंगे।
यहाँ अनिवार्य ये है कि इस सामाजिक बुराई के विषय में सिर्फ चिंतित होना ही समाधान नहीं है। समाधान खोजने की आवश्यकता है और वृन्दावन के वात्सल्यग्राम में इस आधुनिक समस्या का पुरातन समाधान ढूंढा जा चुका है। इस प्राकृतिक सौंदर्य से आह्लादित पावन धाम वृन्दावन की गोद में खिलखिलाते ग्राम में एक “संस्कार वाटिका” चलाई जाती है, जहाँ बच्चों को नैतिक रूप से शिक्षित कर उनमें अध्यात्म और समाज कल्याण के बीज रोपित किये जाते हैं। देश प्रेम और वसुधैव कुटुम्बकम की धरना से बच्चों को इस योग्य बनाया जाता है कि वो आगे आकर समाज को ऐसे मानदंड स्थापित करके दें जो अन्य सभी के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें। इस वात्सल्यग्राम में जहाँ एकओर महिला सशक्तिकरण के साथ वंचितों के स्वास्थ और शिक्षा पर प्रकल्प चलाये जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उनमें समाज कल्याण को प्रेरित किया जाता है। महिलाओं और बुजुर्गों के सम्मान के साथ साथ अपनी संस्कृति और संस्कारों से परिचित करने के लिए म्यूजियम भी बनाया गया बच्चे अपने शहीदों को देख समझ उन्हें वो सम्मान दें जिसके वो महापुरुष अधिकारी हैं।
समाज की इस एक अनदेखी पहेली की ओर सरकारों ने ध्यान देते हुए एक राष्ट्रीय वृद्धजन नीति का गठन किया है जिसमें वृद्धजनों को तमाम तरह की सुविधाओं के साथ साथ उनकी उचित देखभाल और सामाजिक सम्मान का ध्यान रखे जाने योग्य प्रावधान किये गए हैं किन्तु ये सभी जानते हैं कि सरकारी नीतियों से किसका कितना ही ध्येय पूर्ण होता है।
एक समाज के तौर पर हम सभी का ये संकल्प होना चाहिए कि इस देश की एक महँ विभूति साध्वी दीदी माँ ऋतम्भरा जी द्वारा स्थापित इस अद्वितीय अलौकिक और असाधारण प्रयास को न केवल सहयोग करें अपितु वृद्धाश्रम जैसी सामाजिक समस्या को समाप्त करने हेतु न सिर्फ वात्सल्यग्राम स्थित “संस्कार वाटिका” जैसे प्रकल्प और पुष्पित पल्लवित हों अपितु हमारे समाज को अपनी योग्यता की महक से महकाते रहें और हमारे बुजुर्गों को वो सम्मान और स्थान दें जिसके वो वास्तविक रूप से अधिकारी हैं।