Thursday, March 28, 2024
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आखिर उस “चायवाले” के व्यक्तित्व में ऐसा क्या विशेष है?

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

वर्ष 2014 से विपक्ष में बैठे बेरोजगारी का मातम मनाने वाले छदमधर्म-निरपेछतावादीयों और छदमउदारवादीयों के मस्तिष्क में अक्सर ही ये जिज्ञासा कौतूहल के साथ उत्पन्न होती है कि “आखिर उस “चायवाले” के व्यक्तित्व में ऐसा क्या विशेष है, जिसने भारत की जनता जनार्दन का विश्वाश- व भरोसा अपने साथ इस कदर बाँध लिया है कि उन्होंने किसी अन्य के बारे मे सोचना ही छोड़ दिया है!

मित्रों,

इस जिज्ञासा  को शांत करने के लिये, हमें पिछले 1000 वर्षो के गर्भ मे छिपे परतांत्रिक काल के कपाल पे दस्तक देना होगा!

सनातनधर्मी राजावों के आपसी मनमुटाव, वैमनस्य व आपसी खींचतान का परिणाम मुगलिया सल्तनत के द्वारा झोंकी गयी लगभग ८०० वर्षो  की गुलामी की जंजीरो से सनातनधर्मी समाज अभी उबरा ही नहीं था कि वर्ष 1680 में ईस्ट ईण्डीया कंपनी के रूप में व्यवसाय करने के उद्देश्य से आये “ब्रिटिश लूटेरो” ने भारत मे पल रही राजनितिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर, ईसाइयों का साम्राज्य अर्थात “ब्रिटिश राज” की स्थापना कर दी! सनातनधर्मी व्यथित थे!

मुगलो और ईसाइयों ने मिलकर सनातनधर्मीयों की सभ्यता, संस्कृति, भाषा व धार्मिक मापदण्डो का जबरदस्त प्रकार से मानमर्दन किया और उन्हें “हिन भावना से ग्रसित समाज” में ढाल दिया!

उन्होने ना केवल सनातनधर्मीयों के सांस्कृतिक विरासत और धरोहरो को नष्ट किया अपितु उनके ग्रंथो को अपने नामों से प्रकाशित करा कर संसार मे प्रसंशा बटोरी! यहाँ तक की सनातनधर्मी सम्राटों के द्वारा निर्मित किये गये विभिन्न भवनों ईत्यादी को अपनी संस्कृति व सभ्यता के  साथ जोड़कर उन्हें अपना नाम दिया और सनातनधर्मीयों के वास्तविक द्रोही वामपंथी ईतिहासकारों ने उनके मिथ्या अपवंचना, झूठ व प्रपंच को ईतिहास को पन्नों में ढालकर एतिहासीक आवरण डाल दिया!

खलिफत आंदोलन

खलिफत आंदोलन को कुछ विचित्र मस्तिष्क वाले ईतिहासकारों ने जानबूझकर “खिलाफत आंदोलन” के रूप मे प्रचारित किया ईसे “Indian-Muslim-Movement(1919-1924) के नाम से भी जानते हैं, जिसे तुर्की में राज कर रहे “ओटोमन वंश” के खलीफा की खलीफत को बचाने के लिये शुरू किया गया था, अत: इससे सनातनधर्मी समाज व भारत की स्वतंत्रता आंदोलन से कोई सारोकार था, ईसकी संभावना दिखायी नहीं देती! मोहनदास करमचंद गाँधी  व अन्य कांग्रेसीयों ने इस मुस्लिम आंदोलन को भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने का असफल प्रयास किया परंतु वे नाकाम रहे!

आंदोलन का परिणाम :- ये पूर्णतया विफल रहा और अंतिम झटका लगा, जब मुस्तफा कमल अतातुर्क @ पाशा- ने स्वतंत्र तुर्की में एकप्रगतिशील व धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की स्थापना के लिये जनता के साथ मिलकर खलीफा के शासन को उखाड़ फेका!  

केरल का मलाबार विद्रोह वर्ष 1921 में शुरू हुआ!प्रारंभिक अवस्था में तो ये मुस्लिम मोपलावों के द्वारा ईसाई अंग्रेजो के दमनकारी नितियों के विरूद्ध किया जाने वाला विद्रोह था, और इसे कांग्रेसी नेतावों (महात्मा गांधी ईत्यादी) का भरपूर सहयोग था, परंतु शिघ्र ही खलिफत आंदोलन की विफलता उनके शीश पर चढ़ बैठी और फिर परिणाम निकला हजारो सनातनधर्मीयों  के कत्ल, उनकी औरतो व बच्चीयो के साथ कि गयी हैवानियत व जबरन धर्म परिवर्तन के रूप में!

यहाँ सनातनधर्मीयों ने स्वंय को निराशाजनक, असहाय, दिशाहीन व किसी प्रभावी नेतृत्व के बगैर  वाली अवस्था मे पाया!

पाकिस्तान आंदोलन /मुहम्मद अली जिन्ना  का “Direct Action Day”.

Burki, Shahid Javed (199) की पाकिस्तान मे सन 1986 मे प्रकाशित हुई ” Fifty Years of Nationhood (3 edition)” किताब के अनुसार पाकिस्तान आंदोलन की शुरूवात “अलीगढ़ आंदोलन” के रूप में हुयी और  “आल ईण्डिया मुस्लिम लीग” का गठन से 1906 ई. में सर सैय्यद अहमद खान व कांग्रेस के सहयोग से किया गया जो  “पाकिस्तान आंदोलन” की शुरूआत का संकेत था!

“Direct Action Day” :- तत्कालिन बंगाल के गवर्नर सर फ्रेडरिक बरोज ( 1946) नें अपनी रिपोर्ट “Report to Viceroy Lord Wavell” The British Library IOR (L/P&J/8/655 f.f. 95, 96-107) में उद्धृत किया है कि  16अगस्त 1946 का दिन “कलकत्ता किलिंग” के नाम से जाना जाता है, उस दिन व्यापक पैमाने पर मुस्लिमो के द्वारा हिंदुवो के विरूद्ध दंगे की शुरूआत का गयी थी बंगाल प्रांत के कलकत्ता शहर में! ईसको “द वीक ऑफ लांग नाईव्स” के नाम से भी जाना जाता है! एक बार पुन: बड़े ही सुनियोजित तरिके से कलकत्ता की धरती को हिंदुवो के खून से लाल कर दिया! सभी कांग्रेसी नेता महात्मा गाँधी के साथ मिलकर तमाशा देख रहे थे! मुहम्मद अली जिन्ना और बंगाल के तत्कालिन मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सोहराबवर्दी के नेतृत्व मे हिंदुवो की लाशे बिछायी जा रही थी व हैवानियत का नंगा नाच हो रहा था फिर एक सनातनधर्मी श्री गोपालचंद्र मुखोपाध्याय @गोपाल पाठा ने ईस हैवानियत के विरूद्ध शस्त्र उठाया और शैतानो को उन्ही की भाषा मे जवाब देना शुरू कर दिया और तब जाके महात्मा गाँधी ने अपने भूख हड़ताल का प्रयोग कर दंगो को शांत कराया।   

भारत का विभाजन व दंगे

कांग्रेस व मुस्लिम लीग की मिलीभगत से भारत का विभाजन  धर्म के आधार  पर हुवा और 14 अगस्त 1947 ई को पाकिस्तान अस्तित्व में आया!

पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र बन गया पर सनातनधर्मियों को उनका हिन्दू राष्ट्र नहीं मिला। पाकिस्तान में सनातनधर्मीयों विशेषकर दलितो पर अत्याचार की हर सिमा को तोड़ डाला गया। पाकिस्तान से आने वाली रेलगाड़ीयां  सनातनधर्मीयों के लाशो से पटी रहती थी। जब तक पाकिस्तान मे हिंदुवो का कत्लेआम होता रहा, ना तो किसी कांग्रेसी के कोई दर्द हुवा ना तथाकथित महात्मा को पर जैसे ही हिंदुस्तानीयो ने शस्त्र उठा कर जवाब देना शुरू किया तब एक बार पुन: वह महात्मा अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की निती को अपनाते हुये भूख हड़ताल पर बैठ गया और यही नही ये जानते हुये भी कि ये पाकिस्तानी हिंदुस्तान से मिले पैसो से असलहे खरिद कर हिंदुस्तान के विरूद्ध ही ईस्तेमाल करेंगे, उसने रू. 50-55 करोड़ पाकिस्तान को दिलाये!

यहाँ पर सनातनधर्मी पुन:एक बार स्वंय को ठगा महसूस करने लगा! उसे विभाजन के बाद भी अपने ही देश मे फिर से ठगने का कोशिश की जा रही थी!

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वर्ष १९४७ से लेकर २०१३ तक ( स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री, स्व. श्री पि. वि. नरसिम्हा  राव व स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के सरकारों को छोड़कर ) अन्य जितनी भी सरकारे बनि सबने गाँधी के द्वारा दी गयी मुस्लिम तुष्टिकरण की निति को अपनाया और सनातनधर्मियों को हमेशा जाट पात में विभाजित करके उनका दोहन किया! स्वतंत्रता के पश्चात हुवे सनातनधर्मियों के कत्लेआम की घटनाये कभी रुकी नहीं  लगभग ४० से ज्यादा छोटे  बड़े  दंगो की हैवानियत भरी घटनाये हो चुकी थी!

५५ वर्ष राज करने वाली कांग्रेस की सरकारों ने केवल यही बताया कि

१             :- विभाजन के बाद, हॉवर्ड के अर्थशास्त्री व इंडिआ के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का स्पष्ट मानना  था की “मुसलमानों का इस राष्ट्र की संपत्ति पर पहला अधिकार है”!

२             : – हिंदुओं ने भारत के इतिहास के निर्माण में कोई योगदान नहीं दिया है।

३            :- सनातन धर्म रूढ़िवादी, पिछड़ा हुवा और अन्य धर्मो से बेकार है। 

४             :- सनातनधर्मियों को वास्तुकला की समझ नहीं।

५            :- हिंदुओं की तुलना में बाहर से आये लोगो का अधिक प्रभावी संस्कृति व् भाषा वाला समाज है।

६            :-हिन्दू की सांस्कृतिक विरासत कई विकृति और असामाजिक नियमों और रीति-रिवाजों से भरी हुई है!

७            :- हिंदू समुदाय असभ्य समुदाय है।

८            :- हिंदुओं का विज्ञान और टेक्नोलोजी से कोई लेना-देना नहीं है।

९            :- हिंदू न तो योग्य हैं और न ही भारत पर शासन करने में सक्षम हैं।

हिंदुओं के विश्वास को नष्ट करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया और उन्हें एहसास दिलाया कि वे तीसरी श्रेणी के असभ्य समुदाय से संबंधित हैं!

वर्ष 1999 से वर्ष 2013 तक हमारा देश भ्रष्टाचार में नंबर 1 देश बन गया। कांग्रेस पार्टी के कई सर्वोच्च नेताओं के साथ-साथ अन्य दलों ने खुद को भ्रष्टता में शामिल कर लिया। UPA1 और UPA2 भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गए । ज्यादातर सरकारी कार्यालयों पर जघन्य असामाजिक तत्वों का कब्जा था, जो पूरे भारत में शासन कर रहे थे। शुद्ध सूर्य के प्रकाश को देखने की आशा पहले ही कूड़ेदान में फेंक दी गई थी। पूरा देश भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नेताओं के अनुचित प्रभाव में था। इंडियन सोसाइटी के प्रत्येक क्षेत्र में छद्म धर्मनिरपेक्ष और छद्म उदारवादियों को मुफ्त प्रवेश मिल चुका था और इसलिए उन्होंने भारत के भविष्य को अपने तरीके से लिखना शुरू कर दिया। संक्षेप में, यह सकता है कि हिंदू अपने ही देश में सरकारों द्वारा अत्यधिक ठगे गए। हिंदू सिर्फ कीड़े मकोड़ो की स्थिति में थे और किसी प्रकार जीवन यापन कर रहे थे।

ऐसे में सनातनधर्मियों को एक ऐसे व्यक्तित्व की तलाश थी:-

जो उन्हें इस नैराश्य से विश्वाश की ओर ले जा सके; उनको उनकी विशेषता का अहसास दिला सके अंधकार से प्रकाश की और ले जा सके; असत्य व् अधर्म के मकड़जाल से निकलकर सत्य और धर्म की राह दिखा सके; उनके मन की व्यथा , ह्रदय के संताप और वातावरण में व्याप्त व्याकुलता को अपने उच्चकोटि के सदव्यवहार से शांत कर सके; शैतान के भ्रष्टाचारी साम्राज्य का विध्वंश कर सके  तथा माँ भारती को पुन: इन अत्याचारियों व्यभिचारियों और देशद्रोहियो से स्वतंत्र करा सके।

और फिर गुजरात की धरती से एक सूर्य (उस “चायवाले“) का उदय हुआ और देखते ही देखते अपने “गुजरात मॉडल” वाले राजधर्म से सम्पूर्ण सनातनधर्मियों के मस्तक पर दस्तक देने लगा और सनातनधर्मियों ने भी इस अवसर को अपने दोनों हाथो से लिया और वर्ष २०१४ से लेकर आज तक वो उस व्यक्तित्व के साथ पूरे स्वाभिमान के साथ जुड़े है और सदैव जुड़े रहेंगे, क्योकि ये जोड़ निस्वार्थ देशप्रेम, धर्मप्रेम व सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अभिमान से प्रेरित है”। आज इस देश को ही नहीं परन्तु सम्पूर्ण विश्व को ये एहसास हो गया है की भारत में सनातनधर्मी भी रहते हैं, और अब वे संगठित व् एकजुट है।

नागेंद्र प्रताप सिंह

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