Tuesday, November 5, 2024
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भारत में वामपंथी उग्रवाद: बदलता स्वरूप

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Shivam Sharma
Shivam Sharmahttp://www.badkalekhak.blogspot.com
जगत पालक श्री राम की नगरी अयोध्या से छात्र, कविता ,कहानी , व्यंग, राजनीति, विधि, वैश्विक राजनीतिक सम्बंध में गहरी रुचि. अभी सीख रहा हूं...

किसी राष्ट्र के अपने राष्ट्रीय हित होते हैं. उन राष्ट्रीय हितों की अपनी अपनी श्रेणियाँ भी होती हैं. परंतु जब उंगलियों पर यह गिना जाए कि प्राथमिक राष्ट्रीय हित क्या है, तो “राष्ट्र की सुरक्षा” सभी हितों में सर्वोच्च होता है. यह बात भारतीय इतिहास में आचार्य चाणक्य भी कहते हैं और पाश्चात्य चिंतक हंस मार्गेंथाऊ भी.

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष उत्पन्न प्रमुख चुनौती आतंकवाद है. आतंकवाद के अपने स्वरूप हैं. और यह भारत की आंतरिक सुरक्षा का एक बड़ा मुद्दा है. परंतु आंतरिक सुरक्षा की एक और चुनौती है जो आज नहीं तो कल बड़े स्तर पर विध्वंस का कारण बन सकती है. इसके तेवर बदल रहे हैं. और इसलिए हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है.

उस चुनौती का नाम है: नक्सलवाद.

आइए इस लेख के माध्यम से नक्सलवाद से जुड़े तकनीकी पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं. और इस विषय पर आंतरिक सुरक्षा के जानकार और स्वयं सरकार का क्या रवैया था, क्या है और क्या होना चाहिए; इस पर विस्तार से बात करते हैं.

नक्सलवाद वह दिवास्वप्न है, जो आदर्शों के सूखे दरिया पर बड़े बड़े वादों के आदर्श पुल बाँधकर आदर्श जीवन की कल्पना करता है. जिसके नेता स्वयं को दमित, दलित और पीड़ित वर्ग का मसीहा मानते हैं. उन्हें हांथों में बंदूक थमा कर कहते हैं- “जाओ सत्ता बंदूक के नाल से निकलती है.” परन्तु स्वयं काॅफी हाउस में सिगरेट की कश भरते हुए माॅकटेल छलकाते हैं. और कभी कभी अपने पायजामे के नारे ठीक करते देखे जाते हैं.

इनके दायें कंधे पर एक झोला होता है. हाथ में “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” ये दुनिया के सवा लाख सज्जनों की मृत्यु के बाद अलौकिक शक्ति धारण किए उत्पन्न एक अवतार हैं. जिनके झोले में समस्त समस्याओं की एक जड़ीबूटी है. ये चुटकियों में सड़क पर आजादी माँगते हुए कितने क्यूट दिखने का प्रयास करते हैं. और अपनी सेक्साधीन मानसिकता को “माई लाईफ मखी च्वाइस” से ढकते रहते हैं.

इनके लिए भारतीय संस्कृति सदैव निम्न का शोषण करने वाली रही है. इन्हें रामायण में श्रीराम -केवट प्रेम नज़र नहीं आता. पर मष्तिष्क में भरे बीट के प्रभाव से इन्हें यह कुतर्क तलाशने में देरी नहीं लगती कि श्रीराम ने बालि का वध धोखे से किया. ये सूपर्णखा के लिए नारीवादी बनते हैं. सुरसा को अपना वंशज मानते हैं. और अब तो रावण से भी नाता जोड़ लिया है.

खैर अब आगे बात करते हैं कि भारत में 1960 के दशक में प्रारंभ हुआ यह आंतरिक आतंक कैसे और कितने चरणों में आगे बढ़ता गया :

प्रथम चरण: जोकि 1967 के बाद अखिल भारतीय समन्वय समिति के रूप में नक्सलवाद के उदय से सम्बन्धित है.

दूसरा चरण: जब नक्सलवाद बंगाल से बिहार, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ा. और इस बीच सैकड़ों नागरिकों और सुरक्षा बलों की हत्या की जा चुकी थी. CPI( ML) का नया रूप PWG पीपल्स वाॅर ग्रुप को प्रतिबंधित किया जा चुका था.

तीसरा चरण: ऐसा चरण था जब नक्सलवाद एक बड़ी चुनौती बना. जब CPI (ML) ने खुले तौर पर सुरक्षा बलों पर सुनियोजित हमले की योजना बनाई. उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई. तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने “नक्सलवाद ” को भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी माना. इसी बीच देश ने कई बड़े नक्सलवादी हमले झेले. 2010 में छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा में CRPF की पूरी कंपनी पर एंबुश हमला कर के 76 जवानों को मार दिया गया. इस घटना ने ना केवल देश की राजनीति में बल्कि सुरक्षा बलों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया. कि नक्सलवाद सिर्फ विचारधाराओं का संकट नहीं है, यह सुनियोजित एंटी-इंडिया-मिलिशिया है.

नक्सलवाद का वर्तमान चरण : 2013 के सुकुमा हमले के बाद सुरक्षा रणनीति में बदलाव और सुुुरक्षा बलों के आक्रामक रवैये से एंटी-नकस्ल ऑपरेशन में चरणबद्ध रूप से वृद्धि हुई. फलस्वरूप नक्सलवादी घटनाओं में कमी आई. 2017 में आए गृह मंत्रालय के आँकड़े यही बताते हैं कि राज्यवार घटनाएँ और मृतकों की संख्या में कमी आई है.

वर्तमान में नक्सली हमलों में आई कमी ने सुरक्षा बलों को एक सुखद संदेश तो दिया है. साथ ही वामपंथी नक्सलवादी खेमें में चिंता की लकीरें भी पैदा की हैं और परिणामतः नक्सलवाद अब बदल रहा है. उसने नए तरीकों की खोज की है. नई गुप्त षडयंत्रो से अब साइलेंट वाॅर का लक्ष्य बनाया है.

क्या है बदलता स्वरूप?

सामान्यतः यह माना जाता है कि नक्सली आंदोलन भारत के पिछड़े इलाकों में जनसाधारण द्वारा किया जाने वाला विरोध है. जहाँ की त्रस्त आबादी सामान्य विकास के अभाव में बंदूक उठाने को मजबूर हो गई है. इस प्रकार के तथ्य और कुतर्क उन सभी लोगों के द्वारा रखे जाते हैं जो स्वयं इस गिरोह के सदस्य हैं. मीडिया का एक वर्ग इसे प्रोपेगेंडा का साधन बनाता है. जोकि नितांत झूठ है. पर यह समझना होगा कि पिछड़े इलाकों से नक्सलियों का हुजूम शांत नहीं बैठा है. तब भी भोले भाले लोगों को बहलाकर और धमकाकर हथियार थमाने वाले वामपंथी भारत विरोधी थे और आज भी हैं. कुछ नहीं बदला है. हाँ बदला है तो विरोध का नया तरीका. इनमें एक प्रमुख तकनीक है शहर नक्सलवाद.

शहरी नक्सलवाद, अब माओवादी वामपंथी विचारधारा के संगठन और उसमें कार्यरत लोगों द्वारा दूरदराज़ के बजाय शहरों में भूमिगत काडर विकसित किए जा रहे हैं. इनके द्वारा शहरी छात्रों की भर्ती क्रांतिकारी युवा संगठन के नाम पर की जाती है. जिन्हें वामपंथी, माओवादी और नक्सलवादी विचारधाराओं की ट्रेनिंग दी जाती है. बकायदा लम्बी ब्रेन वाॅश वर्कशाॅप चलती है. ध्यान रहे कि इस काडर का स्वरूप बिल्कुल वैसा ही है जैसे अलकायदा, जैश और आईएम जैसे आतंकी संगठनों के स्लीपरसेल्स होते हैं. ये किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हो सकते हैं, किसी छात्र संगठन के अध्यक्ष या नेता हो सकते हैं, किसी गैर सरकारी संगठन के संस्थापक या सदस्य हो सकते है, फिल्म संगीत से जुड़े हो सकते हैं. नेता, लेखक, यहाँ तक कि दसवीं तक की होम ट्यूशन लेने वाला ट्यूटर भी.

ये सभी सामान्य विचारधारा से संचालित होते हैं. इन अकादमिशियन और कार्यकर्ताओं में ज्यादातर वे लोग हैं. जो पहले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया या प्रतिबंधित मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया एवं सिमी (अलीगढ़ का प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन) के सदस्य रहे हैं. इन सभी ने फलाना ढिमकाना नाम का नया मानवाधिकार संगठन खोला है, जिसका उद्देश्य कानूनी शिकंजे से बचना है. 2018 में पाँच बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी ने अर्बन नक्सलवाद को जमीनी और अग्रिम मोर्चे पर ला खड़ा किया. यद्यपि इससे तथाकथित बौद्धिक क्षेत्र के महारथियों और राजनीतिक व्यक्तियों की त्योरियां चढ़ गई. लोकतंत्र की हत्या सरीखे चर्चित और घिसे पिटे नारे लगाए गए. पुलिस ने जिन लोगों को वहाँ पकड़ा था. उनमें पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव सुधा भारद्वाज और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता, अरुण फेरारिया भी शामिल हैं, जिन्हें भीमा कोरेगाँव हिंसा में गिरफ्तार किया गया है. इन पर यूएपीए भी लगा है. (यहाँ अपराधियों का नाम और स्वरूप गिनाने का लक्ष्य सिर्फ इतना है कि हमें यह समझना होगा कि नक्सलवाद अब पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़ चुका है.)

यह सभी आज के आज अर्बन नक्सल नहीं बने. एक लम्बे समय से हो रही फंडिंग, राजनीतिक शह और सुनियोजिन से जहरीले सपोले साँप बन गए हैं. आप सोच रहे होंगे कि यह सब पुलिस द्वारा दी गई थ्योरी का हिस्सा है या फिर इस बात का प्रमाण है कि नक्सलवादियों ने ऐसी कोई रणनीति अपनाई है. इसका जीता जागता उदाहरण है; 2014 में सीपीआई (एम) का एक दस्तावेज आया जिसका शीर्षक था – “शहरी परिप्रेक्ष्य: शहरों में हमारा काम. “

इस दस्तावेज में अर्बन नक्सलवाद को बढ़ाने की पूरी रणनीति साफ साफ संकेतित है. यह रणनीति कल कारखानों मे काम करने वाले कामगारों और शहरी गरीबों को लालच देकर लामबंद करने, अग्रिम संगठनों की स्थापना करने और उसमें पढ़े लिखे समान विचारधारा वाले छात्र, मध्य वर्ग के नौकरीपेशा, बुद्धिजीवी, महिलाओं, दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को एकत्रित करना है. समान विचाधारा का एक संयुक्त रणनीतिक मोर्चा बनाना है, जिसका लक्ष्य थोड़ी सी बात पर भारत में हिंसा, आगजनी, दंगा आदि अव्यवस्था फैलाना है.

सरकार का रवैया और आगे की रणनीति

गृह मंत्रालय का मानना है कि वामपंथी उग्रवाद से निपटने हेतु अर्बन नक्सलवाद पर नियंत्रण आवश्यक है. और संभवतः आगे इनपर बड़ी कार्यवाही की जा सकती है. देश में विदेशी कट्टरपंथी संगठनों की फंडिंग रोकने और गैर सरकारी संगठनों की आड़ में गैरकानूनी गतिविधियों करने वालों पर लगाम लगाने की आवश्यकता है. कई हालिया कानून आये भी हैं. उन्हीं कानून में एक यह भी है कि सभी NGOs अब मिलने वाले कुल चंदे का लेखाजोखा दिखाएँ और खर्च के स्त्रोत बताएँ. इसके अतिरिक्त UAPA ,NIA जैसे संशोधन जांच एजेंसियों को मजबूत स्थिति प्रदान करती हैं. इन से आशंका होने पर बिना वारंटगिरफ्तारी करने और जाँच का अधिकार भी प्राप्त हुआ है.

मेरा यह भी मानना है कि आने वाले दिनों में बुद्धिजीवियों और भूमिगत काडर का भंडाफोड़ हो सकता है. संभव है कि कई अनपेक्षित स्थानों से गिरफ्तारी हो, कुछ माड्यूल सामने आएँ और कुछ संगठनों पर प्रतिबंध भी लगे.

अंत में, भावी रणनीति क्या होनी चाहिए इस पर बात करते हुए लेख पर विराम चिन्ह लगाना चाहूँगा ;

वामपंथी उग्रवाद से निपटने में सुरक्षा बलों की तकनीकी क्षमता में वृद्धि जैसे नये हथियारों, ड्रोन तकनीकी, सर्विलांस तकनीक, लेज़र डिटेक्टर आदि समय की माँग है. साथ ही संवेदनशील इलाकों में एकीकृत चौकी और चेकपोस्ट की स्थापना करना, वहाँ तैनात सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया कराना भी आवश्यक है. किसी भी अनपेक्षित नक्सली हमले पर पहली प्रतिक्रिया में राज्य पुलिस की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है. इसलिए क्षति को कम करने और राहत कार्यक्रम आदि के लिए बीट कांस्टेबल स्तर पर विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता है.

आवश्यक है कि राज्य पुलिस, सेंट्रल आर्म्ड फोर्स के जवानों के साथ साझा ड्रिल करें और तकनीकी साझा करते हुए समन्वय बढ़ाएँ. कई बार माँग उठती है कि नक्सली हमले के विरुद्ध सेना का प्रयोग किया जाए. पर मेरा यह मानना है कि सेना देश की बाह्य सुरक्षा के वाए महत्वपूर्ण इकाई है. और साथ ही राष्ट्र के गौरव का सूचक है. आंतरिक सुरक्षा के जानकार और उत्तराखंड पुलिस में शीर्ष आईपीएस अधिकारी IPS अशोक कुमार जी अपनी किताब में इससे सहमत हैं कि सेना का सीधा प्रयोग एक गलत संदेश दे सकता है. इसलिए बेहतर होगा कि एंटी नक्सलवादी ऑपरेशन में सेना की तकनीकी सहायता ली जाए.

एंटी नक्सल ऑपरेशन में अक्सर अंतर्राज्यीय समन्वय की कमी देखी जाती है. एक राज्य से भागकर दूसरे राज्य में शरण लेना एक बड़ी चुनौती है. इसलिए एकीकृत कमांड की स्थापना की जानी चाहिए जिसमें अर्द्धसैनिक बल, राज्य पुलिस, स्थानीय आसूचना ईकाई (LIU) का समन्वय हो. गृह मंत्रालय विभिन्न समितियों की ऐसी अनुशंसाओं पर कार्य कर रहा है.

कोबरा कमांडो, और ग्रे – होंड जैसे माॅडल विशेष रूप से वामपंथी उग्रवाद की कमर तोड़ रहे हैं. साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर पिछड़े इलाकों में “वापसी”या “आत्मसमर्पण कार्यक्रम” भी चलाए जा रहे हैं.

स्थिति साफ है कि भारत में सभी विचारधाराओं का सम्मान है. एक व्यक्ति की दूसरे से असहमति भी आवश्यक ही है. परन्तु कोई भी विचारधारा तब अस्वीकार्य हो जाती है जब वह देश की कानून- व्यवस्था, नागरिकों की सुरक्षा और अंतत: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो जाती है.वही राष्ट्रीय सुरक्षा, देश का प्राथमिक राष्ट्रीय हित है.

नक्सलियों पर की गई कार्यवाही पर रोना रोने दोमुँहे लोगों के नाम अंत में एक संदेश,

भारतीय लोकतंत्र का गला मोम का नहीं बना है कि जब तब कोई भी उसे दबोच कर, लोकतंत्र की हत्या कर सकता है. ये तुम्हारा दोहरा रवैया है कि सुरक्षा बलों के बलिदान देने पर तुम पिशाची चुप्पी सांट लेते हो. और जब वही सुरक्षा बल नक्सलवादियों को असली विकास दिखाते हैं, तो तुम्हारा नंगानाच शुरू हो जाता है.” बंद कर दो ये ढोंग तुम्हारे लाल सलाम में खून के छीटें साफ नज़र आते हैं”

#बड़कालेखक

(यहाँ व्यक्त विचार मेरे स्वयं के हैं. कोट की गई आधिकारिक तथ्यों की जानकारी पूर्णतः प्रमाणिक है. संदर्भ पुष्टि हेतु पुस्तक- “आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ”)

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Shivam Sharma
Shivam Sharmahttp://www.badkalekhak.blogspot.com
जगत पालक श्री राम की नगरी अयोध्या से छात्र, कविता ,कहानी , व्यंग, राजनीति, विधि, वैश्विक राजनीतिक सम्बंध में गहरी रुचि. अभी सीख रहा हूं...
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