Tuesday, March 19, 2024
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राम-भक्त कारसेवकों को नमन

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Rajeev Raman
Rajeev Raman
Rajeev Raman, PhD Apart from science also have interest in national and international socio-political and economic issues.

कहते हैं की समय बड़ा बलवान होता है, ये बात उन राम भक्तों के अलावा बेहतर कोई नही समझ सकता है, जिन्हे अपने आराध्या का मंदिर बनाने के संकल्प को पहले आक्राणताओं ने कुचल दिया और फिर कालांतर में स्वतंत्र भारत के राजनीतिक वामपंथियो ने एक हास्य बना दिया की ‘मंदिर वहीं बनाएँगे लेकिन तारीख नही बताएँगे. वर्षो से टीवी डिबेट में और जन सभाओ में राम-भक्त हिंदू के मर्यादित कर्मो को एक आडंबर और एक राजनीतिक दल का प्रपंच बता कर उन्हे अपमानित किया जाता रहा. परंतु विधि को शायद कुछ और विधान रचना था, इसीलिए सदियो की प्रताड़ना और अवहेलना के बाद भी अंततोगत्वा सर्वोच न्यायालय ने मर्यादित निर्णय मे श्री राम मंदिर का मार्ग प्रशश्त किया. 5 अगस्त राम भक्तो के द्वारा उन कलयुगी राक्षस विचारधारा के उपर जीत का दिवस है जो उसके आत्मस्वाभिमान और गर्व पे सदियों से प्रहार करता आ रहा था. यह उस सब्र और उम्मीद की जीत है जो क़ानून के द्वार पे बैठा न्याय की उम्मीद लगाए दशकों से तपस्यरत था. जिसके आराध्य ही मर्यादा पुरुषोत्तम हों उनके भक्त भी इसी आशा मे थे की क़ानून उनका फरियाद सुनेगा और अंततः अब मन्दिर निर्माण की आधारशिला रखी जा रही है.

5 अगस्त 2020 उत्सव मनाने का उपलक्ष्य तो है ही साथ ही साथ उन सुर-वीरो, महानात्माओ को याद करने का भी समय है जो जिन्होने राम-काज में आपने प्राणो की आहुति दे दी. कौन भूल सकता है 30 अक्टूबर 1990 का दिन जब हिंदू संगठनो ने अयोध्या में कारसेवा की घोषणा कर रखी थी, पूरी दुनिया से लोग कारसेवा करने के लिए अयोध्या आ रहे थे. अयोध्या जाने के सारे मार्ग बंद कर दिए गये थे. ऐसे वक़्त उत्तर-प्रदेश मे मुलायम यादव की सरकार थी, वो सरकार जिसने ये घोषणा कर रखी थी की ‘अयोध्या मे परिंदा भी पर नही मार सकता’. ये स्वाभिमानी हिन्दूओं के लिए एक खुली चुनौती सी थी, उन मौका परस्त लोगो के द्वारा जो तुस्टिकरण की राजनीति के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे! मैं उस वक्त किशोरावस्था में क़दम रख रहा था जब धावनियों मे रक्त दुगनी रफ़्तार से दौड़ती थी. रेडियो, टीवी और समाचार-पत्र ही समाचार के मध्यम थे, लोग रेडियो स्टेशन की फ्रीक्वेन्सी बदल बदल कर अद्यतन खबर जानने की कोशिश कर रहे थे, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन की खबर ऐसे वक़्त पर विश्वसनीय नही मानी जाती थी, लोगों का भरोसा BBC पे ज़्यादा था. लोग नुक्कड़, चौराहे पे जमा हो कर पल पल की ख़बरे जानने  की कोसिस कर रहे थे, मगर जैसे जैसे मिनिट की सुई आगे बढ़ती थी मन निरासा और ग्लानि से भरा जाता था. लगता था करोड़ो हिंदुओं की आत्मगौरव कुछ लोगो के हाथो दफ़न हो जाएँगे. दिन का सूरज माध्यांत्र की तरफ बढ़ता चला जा रहा था तभी एक खबर मिलती है की किसी ने बाबरी मस्जिद के उप्पर भगवा धवज फहरा दिया है.

मुझे ये पता नही था कौन थे वो लोग जो करफ्यू में भी, बिना अपने प्राणों की परवाह किए बगैर बलिदान होने को तत्पर हो गये थे; हिन्दूओं की प्रतिष्ता के लिए इतना बड़ा ख़तरा मोल ले लिया. अचानक एक दिन मेरे मुहल्ले में अस्थि कलस यात्रा आई, पता चला ये उन कारसेवकों का अस्थियाँ है जो 30 अक्टूबर 1990 के पुलिस फाइरिंग मे बलिदान हुए. कुछ दिनो के बाद पता चला की कोलकाता से दो भाई कारसेवा करने निकले थे दोनो पुलिस फाइरिंग में शहीद हो गये, ऐसी खबर मस्तिस्क पे दीर्घकालिक अवसाद छोड़ जाती हैं, मन में ये खबर बार बार चलता रहा की उसके माता पिता, परिवार की क्या मनोदशा होगी जिसने अपने दो-दो लाल एक ही दिन में खो दिए हों.

बड़ा हो कर खबरओं को जोड़ने की कोशिश करता हूँ. पता चला की दोनो भाई का नाम राम कोठारी और शरद कोठारी है, कोलकाता के रहने वाले थे. ये दोनो भाई ही थे जो बबरी मस्जिद के गुंबद पे केसरिया पताका लहरा कर हिंदुओं की मान मर्यादा की लाज बचाई थी. मेरे पापा कोलकाता में व्यवसाय करते थे, तो मैं कोलकाता जाया करता था बस घूमने के लिए, कोठारी बन्धूं का घर था बस हमरी गाली से 500 मीटर की दूरी पे. राम और शरद घर वालों से कह कर गये थे की अपने बहन की शादी की सारी तैयारियाँ कर के रखने के लिए, वो ज़रूर आएँगे! लोग कहते हैं 30 अक्टूबर से 2 नवंबर 1990 के बीच में सरयू नदी का पानी पुलिस के गोली से मारे हुए राम भक्तो के रक्त से लाल हो गया था. मन में भगत सिंह की ये पंक्तियाँ ख्याल आती हैं-

हम भी आराम उठा सकते थे घर पे रह कर
हमे भी पाला था मा बाप ने दुख सह सह कर

ऐसी कितने ही कहानियाँ होंगी जो कालांतर में खो जाएँगे लेकिन बनने वाला भव्य राम लाला का मंदिर के उप्पर का पताका आने वाले पीढ़ियों के लिए ये याद दिलाते रहेगा की ये भगवा धवज की कीमत अमुल्य है! समय बलवान होता है, ये पता था मगर नियती (डेस्टिनी) उससे भी बड़ी होती है, ये आज पता चला और नियती उनका साथ देती है जो धर्म के तरफ खड़े होते हैं! अपने आराध्य के लिए अपना सर्वस्व निछiवर करने वाले सभी कार्यसेवकों को मेरा शत्-शत् नमन!  

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