क्या आज एक मानव के जीवन का कोई मूल्य नहीं रह गया है ?
ऐसा क्यों होता है कि जब लोग जीवित होते हैं, तब हम उनकी कद्र नहीं करते हैं? क्यों उनकी कद्र, उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद ही होती है? क्यों उनकी अच्छी बातें उनके इस दुनिया से चले जाने की बाद ही याद आती हैं? क्यों मानवता के रिश्ते से हम दूसरों को वह प्यार और सम्मान नहीं देते, जिनके वो असली हकदार होते हैं? क्यों जो जैसा है, हम उसको वैसे नहीं अपना पाते हैं? अगर आप कहेंगे की इसमें नया क्या है और यह हमेशा से ही होता आया है, तो आप इस बात को समझने की कोशिश कीजिये की यह कोई रीति नहीं है जो कि हमेशा से चली आयी है और चलती रहेगी। यह हमारी मानसिकता को दर्शाता है और हमें इसको बदलने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए।
दुनिया में आज भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनके साथ आप कितना भी अच्छा व्यवहार कर लें, पर उनको हमेशा ही आपकी कमियां दिखाई देंगी। ऐसे लोगों को आपके जीवनसंघर्ष में कोई रूचि नहीं होगी, उनका तो बस एक ही ध्येय होता है की कहाँ और कैसे वो आपकी दुखती रग पकड़ ले। और भगवान् न करें, अगर उनको कभी आपकी कोई कमी पता चल जाए, तो उसका ढिंढोरा कैसे पीटना है, यह उन लोगों को बहुत अच्छे से आता होगा।
प्रायः देखा गया है कि हम अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हो जातें हैं कि दूसरों के लिए हमारे पास समय ही नहीं होता है। हमारी व्यस्तता दर्शाती है कि हम अपने जीवन में इतने रमे हुए हैं की हमारे आसपास क्या हो रहा है हमें उससे कोई मतलब भी नहीं रहता है। पर क्या यह व्यवहार पूर्णतः सही है? क्या हमको हमारे आस पास हो रही चीज़ों का ज्ञान नहीं होना चाहिए? क्या हमारे जीवन में दूसरों का कोई भी मूल्य नहीं है। क्या यह जीवन जीना का सही तरीका है प्रमाण यह सिद्ध करते हैं की अत्याधुनिक युग का मनाव स्वयं को सर्वश्रेठ समझने लगा है। उसे दूसरों के दुःख दर्द को देखकर, कोई भी कष्ट नहीं होता है।
क्यों कभी हम दूसरों की सहायता के लिए अपना हाथ नहीं बढ़ाते हैं? क्यों हम दूसरों का इंतज़ार करते हैं? क्यों हम दूसरों के दुःख को कम करने की कोशिश नहीं करते हैं?
सुशांत सिंह राजपूत के केस में जिस तरफ से हैरत-अंगेज खुलासे हो रहे हैं, उनको देखकर तो यही लगता है कि बहुत से लोगों को बहुत कुछ, बहुत पहले से ही पता था। पर अगर समय रहते लोगों ने उसकी सहायता करी होती, तो वो आज हमारे बीच में जीवित होता। अगर किन्ही कारणों से एक इंसान अपनी सहायता करने में अक्षम है, तो क्या उसके आस पास के लोगों का कोई फ़र्ज़ नहीं बनता। आज सब मीडिया में आकर खुलम खुल्ला या दबी आवाज़ों में अपनी ब्यान बाजी कर रहे हैं, पर जब इन सब घटनाक्रमों की शुरुवात हुई थी, तब यह सब लोग आगे क्यों नहीं आये और क्यों कुछ नहीं बोलें। शायद अगर किसी एक ने भी साहस करके अपनी आवाज़ उठायी होती, तो आज सुशांत हमारे बीच में जीवित होता।
यह वारदात हमको सबक सिखाती है कि अगर आपके आस पास किसी को आपकी सहायता की आवशयकता हो, तो आप सब सजग रहें। आपसी मत मुटाव को भूलाकर, मानवता को प्रधानता दें। ताकि भगवान् न करे अगर कल आपको किसी की सहायता की जरूरत पड़े , तो आपको भी सहायता मिल सके। हमेशा यह कहावत याद रखें ” जैसे को तैसा”। अगर आज आप किसी की सहायता करेंगे, तो कल जरूरत पड़ने पर आपको भी सहायता मिलेगी।
आज के युग में अपना भला तो हर कोई देखता है, पर जो दूसरों का भला भी देखता हुआ चले, वो ही सही मायनो में भला इंसान है।
यह बात हम सबको समझने की जररूत है कि समय बदल रहा है और बदलते समय के साथ हमको अपने जीवन के स्तर को भी सही मायनो में उठाना होगा। आप चाहें जहाँ भी रहते हों, आपको हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि आप सही मायनो में प्रगतिशील बनें। सिर्फ भौतिक सुख सुविधाओं के आधार पर स्वयं का मूल्यांकन न करें। आध्यात्मिक प्रगति के पथ पर भी अग्रसर रहें। हमेशा याद रखें कि हमारा उठाया गया एक भी सकारात्मक कदम, हमारे साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक प्रभाव ला सकता है। हमारा दृष्टिकोण हमेशा प्रगतिशील ही होना चाहिए ताकि दुनिया में बदलाव लाना स्वत: ही सरल और सुगम बन जाये।