जहाँ एक तरफ भारत देश अपनी आज़ादी के ७४ वर्ष की वर्षगाँठ मना रहा है, वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार अपनी मनमानी करके अपने तानाशाह होने का सबूत दे रही है।
क्यों कभी हम दूसरों की सहायता के लिए अपना हाथ नहीं बढ़ाते हैं? क्यों हम दूसरों का इंतज़ार करते हैं? क्यों हम दूसरों के दुःख को कम करने की कोशिश नहीं करते हैं?
जब एक तरफ सुशांत सिंह राजपूत जैसी बड़ी हस्ती के लिए आम लोग इंसाफ की गुहार करते थक नहीं रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ सरकार और बॉलीवुड दिगज्जों की तरफ से कोई भी आवाज़ नहीं आ रही है, ऐसा क्यों?