‘धरती आबा’ का ‘ऊलगुलान’: आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन से बेदखल किये जाने के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड में खूंटी जिले के उलीहातू गांव में हुआ। वे मुंडा जनजाति से संबंध रखते थे, जो छोटानागपुर के पठारों में निवास करती है।
बिरसा मुंडा को ‘धरती आबा’ के नाम से जाना जाता है और अंग्रेजी हुकूमत, जमींदारी प्रथा और सूदखोर महाजनी व्यवस्था के खिलाफ उनके ऊलगुलान (महाविद्रोह) को प्रतिनिधि घटना के तौर पर याद किया जाता है। बिरसा मुंडा ने 1895 से 1900 तक आदिवासी अस्मिता, स्वतंत्रता और संस्कृति को बचाने के लिए विद्रोह किया।
दरअसल, 1894 में छोटानागपुर में मानसून की बारिश नहीं हुई। इसके बाद इलाके में भीषण अकाल और महामारी फैली। इस दौरान बिरसा मुंडा ने लोगों के बीच काफी काम किया और उन्हें एकजुट किया। वर्ष 1900 तक मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध और टकराव होता रहा। साल 1897 में बिरसा मुंडा ने तीर-कमान से लैस अपने चार सौ साथियों के साथ खूंटी थाने पर हमला कर दिया। 1898 में भी अंग्रेजी सेना के साथ बिरसा मुंडा का टकराव हुआ। जनवरी 1900 में डोम्बरी पहाड़ पर एक और ऐसा ही संघर्ष हुआ, जब बिरसा मुंडा एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। इस टकराव में कई औरतें और बच्चे भी मारे गए। लगभग महीने भर बाद फरवरी में चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें दो साल की कैद की सजा सुनाई गई। उन्हें रांची कारागार में रखा गया, जहां 07 जून 1900 को उनकी मौत हो गयी। अंग्रेजों ने उन्हें विष दे दिया था। एक बड़े हिस्से के जनमानस में इस महान विद्रोही नायक को भगवान की तरह पूजा जाता है।