देश दुनिया में अभी जो हालात हैं उनसे हम सभी प्रभावित हुए हैं। कुछ लोग लॉकडाउन में अपने परिवार के साथ घर में समय बिता रहे हैं तो वहीं कुछ लोग कोरोना से लड़ने के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी बाहर रहकर काम कर रहे हैं। ऐसे में भारत का हर नागरिक देश की न्यायपालिका और मुख्य तौर पर देश के सर्वोच्च न्यायालय की तरफ और अधिक उम्मीद से टकटकी लगाए देखता है। हालांकि काफ़ी लोगों ने इस वक्त में उच्चतम न्यायालय के सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया है।
अभी दो दिन पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश महोदय माननीय श्री शरद अरविंद बोबडे जी की एक फोटो सामने आई जिसमें वो नागपुर में एक महंगी विदेशी मोटरसाइकिल पर बैठे हुए देखे गए थे। कई लोगों ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश महोदय को मोटरसाइकिल का पुराना शौक है और आज भी जब अवसर मिलता है तो शौक पूरा करने में पीछे नहीं रहते।
लोगों ने इस तस्वीर को देखकर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया जा़हिर की।
कुछ लोगों ने इसको बहुत बढ़िया फोटो बताया है। ऐसे वक्त में जब सभी कामकाजी लोग ‘Work from home’ में व्यस्त हैं और खाली समय मेरी तरह सब्जियों को काट और कपड़े-बर्तन धोकर व्यतीत कर रहे हैं, ऐसे में माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय भी अपना शौक पूरा कर रहे हैं जिसके लिए वह आमतौर पर अत्यधिक व्यस्तता रहने के कारण समय नही निकाल पाते।
कुछ लोग, जो खुद को स्वतंत्र अन्वेषक बताते हैं उन्होंने अपनी आदतों के अनूरूप इस तस्वीर में दिख रही मोटरसाइकिल और उसके पंजीकरण अंक की संख्या की बड़ी मेहनत से छानबीन करी और इस आधार पर कई तरह के षड्यंत्र सिद्धांतों को हवा देने की कोशिश करी है। गौरतलब है कि ऐसे लोगों को खाली वक्त निकालने के लिए लाॅकडाउन की जरूरत नहीं होती। 2014 के बाद से इनके पास वक्त ही वक्त है। बाकी जानकारी यहां नही बताऊंगा, जिनको दिलचस्पी है वो महंगाई के ज़माने में सस्ते इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं।
कुछ लोगों ने बिना हेलमेट और मास्क पहने हुए माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय की तस्वीर पर आपत्ति जताई है। स्वास्थ्य की दृष्टि से इन लोगों की चिंता स्वाभाविक है।
एक और प्रजाति है जिन्होंने इस तस्वीर पर बोरा भर कर Memes और चुटकुले बना डाले। इनके लिए भी वक़्त का अभाव कभी कर्मयोग के बीच में नही आता। पर मेरी नज़र में इस तरह के लोग बहुत बढ़िया होते हैं। “ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर” के मूल सिद्धांत पर चलने वाले ये लोग memes बनाने में कभी भेदभाव नहीं करते और खुद भी ख़ुश रहते हैं और दूसरों को भी ख़ुश करने की कोशिश करते रहते हैं।
इन सबके बीच एक तबका ऐसा भी है जो काफ़ी आशावादी है। इन्हें लगता है कि जिस उम्र में अधिकांश सरकारें अपने अधिकारियों को सेवानिवृत्त कर देती हैं उस उम्र में देश के मुख्य न्यायाधीश महोदय इतनी भारी मोटरसाइकिल संभाल रहे हैं, तो देश की न्यायपालिका और न्यायिक प्रणाली क्या चीज़ है। इन लोगों ने इस तस्वीर को एक आशा की किरण समझा है। ऐसे लोगों को कोटि कोटि नमन है।
बहरहाल, एक वकील होने के नाते मुझसे कुछ दोस्तों ने इस तस्वीर पर टिप्पणी करने के लिए कहा। उन्होंने मुझे कानून विशेषज्ञ की श्रेणी में रखने का निर्णय लिया। कानून विशेषज्ञों को आप लोग आजकल दिनभर टीवी चैनलों और webinars पर देखते होंगे। टीवी पर कानून विशेषज्ञों को जहां बोलना होता है वहां पर बोलते हैं, और जहां नही बोलना होता है वहां पर ज़रूर बोलते हैं। यह कानून विशेषज्ञों के लिए मौलिक अधिकारों के समान है।
मेरी नज़र में इस तस्वीर का सांकेतिक मूल्य है। हमारी न्यायपालिका इस दो पहिए वाली महंगी और भारी इंजन वाली मोटरसाइकिल की तरह ही है। सारी सुविधाओं से लैस है लेकिन इसकी गद्दी पर बैठ कर इसे चलाना और संतुलन बनाए रखना हर किसी के लिए संभव नहीं है और किसी अनुभवी चालक की ज़रूरत होती है। ये जहां से भी गुज़रती है, लोगों की नज़र में आ जाती है। और जो इस पर सवार हो, उसपर, लोग उसको जाने बगैर ही टीका टिप्पणी करते हैं। यह मोटरसाइकिल आम आदमी की पहुंच से दूर है और हमारे देश के ट्रैफिक जाम और सड़कों की हालत की वजह से इस मोटरसाइकिल को हर जगह लेकर जाना इसके चालक के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। अंग्रेजी भाषा के विद्वान लोग इसे tyranny of distance कहकर भी संबोधित करते हैं। कई बार तो मोटरसाइकिल को बिना चालक के खड़ा देखकर असामाजिक तत्व इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं। कुछ वरिष्ठ लोगों का कहना है कि एक बार सन् 1975 में तो इस मोटरसाइकिल के पहिए किसी ने रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए चोरी कर लिए थे और चालक से मोटरसाइकिल को छीनने की कोशिश भी की गई थी। कुछ लोग तो यह भी बताते हैं कि इस के कुछ दिन बाद ही ये मोटरसाइकिल दिल्ली में एक बड़े पेड़ से टकरा गई थी और बड़े पेड़ को ये बात बिल्कुल भी पसंद नही आई। मोटरसाइकिल को काफ़ी नुक़सान हुआ था और और पूर्णतः ठीक होने में काफी समय लगा था।
एक बात और है कि इस मोटरसाइकिल में ईंधन की खपत बहुत ज्यादा है। वैसे ही आज-कल तेल के दाम रोज़ बढ़ रहे हैं और विपक्ष में बैठे हुए राजनीतिक दलों के समर्थक इसके विरोध में प्रदर्शन करते हुए बैलगाड़ी की सवारी कर रहे हैं। लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा कि बैलगाड़ी कब तक इस मोटरसाइकिल के मुकाबले में रह पाती है।
महंगी मोटरसाइकिल के रख रखाव में भी काफी खर्च करना पड़ता है और छोटी तकनीकी ख़राबी होना भी काफी खर्चीला होता है। मोटरसाइकिल सवार को भी पूरी तरह तैयार होकर ही इसे चलाना होता है और इसके लिए भी एक अलग पोषक धारण करनी पड़ती है। भारी इंजन होने की वजह से ये ज्यादा गर्मी उत्पन्न करती है और शायद यही वजह है कि इसे ग्रीष्मकालीन अवकाश देना ज़रूरी है।
एक पहलू और भी है। हमारे देश में इन महंगी मोटरसाइकिलों का क्लब बनाया जाता है और महंगी होने की वजह से इस विशिष्ट चालक क्लब में एंट्री न्यूनतम लोगों को ही मिल पाती है।
बहरहाल हम तो बस यही उम्मीद करते हैं कि ये मोटरसाइकिल अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे ताकि आम जनता भी इसे समझ सके और इसे सिर्फ सुविधा मात्र नही बन कर रह जाना चाहिए।