पिछले कुछ दिनों में, एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम हुआ है जो बहुत अधिक जन रुचि का नहीं है, फिर भी बौद्धिक रुचि का है। विभिन्न अदालतों में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट में आमना-सामना हो गया है।
नागपुर एकल पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने पौक्सो एक्ट को अपने तरीके से परिभाषित करते हुए 12 वर्षीय एक बच्ची पर हुए यौन हमले के लिए नागपुर सत्र न्यायालय द्वारा पौक्सो एक्ट के तहत इस मामले में दोषी ठहराए गए सतीश बंधु रगड़े को इस अपराध से मुक्त कर दिया।
अदालत के लिए केवल एक आवश्यकता यह है कि उसके द्वारा ऐसी प्रक्रिया का पालन किया जाए, जो न्यायसंगत है, न्यायपूर्ण है और न्यायालय द्वारा तय किए गए नियमों और उस पर व्यक्त किये गये जनता के भरोसे के अनुसार है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश महोदय माननीय श्री शरद अरविंद बोबडे जी की एक फोटो सामने आई जिसमें वो नागपुर में एक महंगी विदेशी मोटरसाइकिल पर बैठे हुए देखे गए थे। लोगों ने इस तस्वीर को देखकर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया जा़हिर की।
By entertaining so much worthless Public Interest Litigation, Judiciary is able to successfully exert pressure on government and divert the focus from their incompetence because Public Interest Litigation give them undue popularity and hide their incompetence and shortcomings especially at the lower Judiciary level.
We now have a bench strength of 34 which never sits together as one, but split as benches of 2 or more and hears a variety of causes on their Boards, as picked and chosen by the Chief Justice of India as Master of the Roster.
कांग्रेस पार्टी ने पिछले 70 सालों में न्यायपालिका पर अपनी ऐसी पकड़ बनाई है और इस संस्था को इतना शर्मशार किया है जिसका अंदाज़ा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 5 सालों में मोदी सरकार किसी भी कांग्रेसी को तमाम सुबूतों के बाबजूद हवालात के अंदर नहीं डाल पायी है.
The supreme court needs to understand that their job is not to govern people, their job is to ensure that the people of the country govern themselves in the best possible way