भुवनेश्वर: सी- वोटर द्वारा किया गया एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकप्रियता में 65% समर्थन प्राप्त है। रिसर्च फर्म C Voter ने “सबसे बड़ा, निश्चित और स्वतंत्र सर्वेक्षण,” स्टेट ऑफ द नेशन 2020: मई “कहे जाने वाले इस सर्वेक्षण का आयोजन किया। इसके तहत देश के प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के 3,000 से अधिक लोगों की प्रतिक्रियाओं को लिया गया।
नरेंद्र मोदी, जिन्होंने हाल ही में अपने दूसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ मनाई, सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें 65.69% वोट मिले। देश में मतदान किए गए लोगों की कुल संख्या में से, 58.36% प्रधानमंत्री मोदी के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट थे। जबकि 24.4% लोग थोड़े संतुष्ट, और शेष 16.71% मोदी की कामकाज से असंतुष्ट थे। नरेंद्र मोदी शीर्ष पद की दौड़ में एक स्पष्ट पसंदीदा नेता के रूप में उभरे हैं। पोल के मुताबिक, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मोदी के तुलना में 66.2% लोगों ने मोदी के पक्ष में मतदान किया, जबकि राहुल गांधी केवल 23.11% लोगों के बीच लोकप्रिय विकल्प थे।
मोदी की लोकप्रियता पर सर्वेक्षण में ओड़िशा की सबसे बड़ी हिस्सेदारी रही। ओड़िशा के लोगों ने मोदी के प्रदर्शन के लिए मोदी को अधिकतम 95.6% अंक दिए हैं। इसके बाद हिमाचल प्रदेश 93.95% और छत्तीसगढ़ 92.73% अंक दिए। इसी तरह, आंध्र प्रदेश के लोगों नें 83.6%, झारखंड 92.97%, कर्नाटक 82.56%, गुजरात 76.42%, असम 74.59%, तेलंगाना 71.51 और महाराष्ट्र के लोगों नें 71.48% अंक दिया। दो दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु के लोगों नें 32.15% और केरल के लोगों नें 32.89% के साथ, मोदी को वहां सबसे कम अंक मिले।
मोदी को अपने गृह राज्य गुजरात और अन्य भाजपा शासित राज्यों की तुलना में ओड़िशा के लोगों से मोदी कहीं अधिक समर्थन हासिल किए। दूसरे शब्दों में सर्वेक्षण के अनुसार, इस बात के प्रमाण हैं कि मोदी देश के बाकी हिस्सों की तुलना में ओड़िशा में अधिक लोकप्रिय हैं। तो सवाल यह है, चुनावों के दौरान यह लोकप्रियता और ओड़िशा के लोगों का मोदी के प्रति प्यार कहां गया? क्यों भाजपा ओड़िशा में विफल रही? क्या, ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ओड़िशा में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है, और उनका कोई विकल्प नहीं है? या, फिर ओड़िशा भाजपा का अत्यन्त अक्षम और कमजोर नेतृत्व है? चापुलिस करके पदाधिकारी बने हुए नेताओं के कारण ओड़िशा में भाजपा का यह दुर्दशा है, या फिर मिश्रण के नाम पर भाजपा में अपमिश्रण का यह परिणाम है? या, फिर मूल संगठन बिचारधारा से हटकर और स्वामी स्वर्गीय लक्षमणानंद सरस्वती जी महाराज के साथ ओड़िशा भाजपा द्वारा किया गया प्रतारणा के कारण स्वर्गीय स्वामी जी का अभिषाप का यह परिणाम है? इसका तर्जमा होना जरुरी है।