Friday, April 19, 2024
HomeHindiकोरोना संकट के बीच भारत का गुटनिरपेक्ष देशों को संबोधन: वैश्विक एकजुटता एवं वैश्विक...

कोरोना संकट के बीच भारत का गुटनिरपेक्ष देशों को संबोधन: वैश्विक एकजुटता एवं वैश्विक प्रतिक्रिया पर बल

Also Read

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सम्मलेन में भाग लिया. कोविड-19 महामारी से निपटने में देशों के बीच सहयोग स्थापित करने के लिए इस वर्चुअल सम्मलेन में प्रधानमंत्री ने कहा की “मानव आज कई दशको में सबसे भयानक त्रासदी का सामना कर रहा है. इस संकट के समय में गुटनिरपेक्ष देश वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा दे सकते हैं. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन हमेशा ही विश्व में नैतिकता का आवाज उठाता रहा है. इस भूमिका को निभाने के लिए गुटनिरपेक्ष देशों को समावेशी रहना चाहिए.” उन्होंने कहा की भारत कोरोना से लड़ाई में पूरी मुस्तैदी के साथ जुटा है एवं साथ ही विश्व को एक परिवार मानते हुए उसे भी पूरी सहायता उपलब्ध करा रहा है. भारत अभी तक 123 देशों को दवाई उपलब्ध करा चूका है जिसमे 59 देश गुटनिरपेक्ष के भी शामिल हैं. हाल ही में भारत ने एंटी-मलेरिया दवाई हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन और पैरासिटामोल कई देशों को उपलब्ध कराइ है जिसे कोरोना से बचने की संभावित दवाई के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है. इसलिए उन्होंने भारत को ‘दुनिया का फार्मेसी’ कहा.   

प्रधानमंत्री ने गैर-पारम्परिक सुरक्षा खतरों के तरफ विश्व का विशेष ध्यान आकृष्ट कराया और पाकिस्तान का बिना नाम लिए हुए कहा की जिस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस का सामना कर रही है उसी समय कुछ लोग अन्य तरह के वायरस फ़ैलाने का काम कर रहे हैं जिसमे आतंकवाद, फेक न्यूज और विडिओ के साथ छेड़-छाड़ करके समुदायों और देशों को बाँटने का काम हैं. वे कश्मीर में पिछले 2 दिनों में हुई आतंकवादी वारदातों के तरफ दुनिया का ध्यान दिला रहे थे जिसमे 8 से ज्यादा भारतीय जवान शहीद हो गए थे.

प्रधानमंत्री मोदी अन्तराष्ट्रीय प्रणाली की सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा की कोविड के बाद  के विश्व में अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं को विकाशशील देशों को अधिक प्रतिनिधत्व देने की जरुरत है. उन्होंने आर्थिक गतिविधियों के साथ साथ मानव कल्याण पर जोर देने की बात देशों से की एवं कहा की भारत मानव कल्याण को प्रमुखता देने में हमेशा ही अग्रणी रहा है. उन्होंने कहा की चाहे शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता के लिए अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की बात हो या जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए अन्तराष्ट्रीय सौर उर्जा संधि करने की बात भारत हमेशा ही इनसबो का नेतृत्व किया है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा की कई देश सैनिक अभ्यास का आयोजन करते हैं पर भारत ने आपदा प्रबंधन अभ्यास करने की शुरुआत इस क्षेत्र में किया है. गौरतलब है की भारत ने हाल ही में 11-12 फरवरी 2020 को भुवनेश्वर में बिम्सटेक के 6 देशों के साथ यह अभ्यास किया था.

प्रधानमंत्री ने कहा की गुटनिरपेक्ष देशों के लिए यह आवश्यक है की अन्तराष्ट्रीय समुदाय और डब्लूएचओ विकाशसील देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाएं एवं स्वास्थ्य उत्पाद एवं तकनीक हमें सस्ती, समय से तथा बराबरी के आधार पर मिल सके यह सुनिश्चित हो. उन्होंने गुटनिरपेक्ष देशों के लिए एक प्लेटफोर्म बनाने की बात कही जिससे अपना अनुभव, बेहतरीन कार्यप्रणाली, संकट प्रबंधन, शोध एवं संसाधनों का उचित तरीके से उपयोग कर सके.

यह सम्मलेन गुटनिरपेक्ष देशों के अध्यक्ष एवं अजरबेजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव ने बुलाई थी. मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के देशों के इस समूह में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शासन काल के दौरान पहली बार भाग लिया. 2016 तथा 2019 के गुटनिरपेक्षता के शिखर सम्मलेन में उन्होंने भाग नही लिया था. दोनों ही मौकों पर प्रधानमंत्री के स्थान पर दुसरे प्रतिनिधि को भेजे जाने को कई विशेषज्ञ भारत की नीति में बदलाव होना बता रहे थे क्यूंकि 1961 से हर तीन साल में होने वाला शिखर सम्मलेन में 2016 ऐसा पहला अवसर था जब भारत का कोई पूर्णकालिक प्रधानमंत्री ने सम्मलेन में भाग न लिया हो. हालाँकि 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी गुटनिरपेक्षता के सम्मलेन में भाग नही लिये थे लेकिन उस समय वे कार्यकारी प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे.

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई थी जब विश्व में दो महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध चल रहा था. बांडुंग में 25 देशों के साथ शुरू किया गया यह आन्दोलन दोनों ही महाशक्तियों से समान दुरी बनाये रखते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने के उद्देशय के साथ किया गया था. विश्व के अन्य नेताओं के साथ नेहरु के द्वारा स्थापित इस नीति को भारत लम्बे समय तक अपनी विदेश नीति के सिद्धांत के रूप में मानते रहा. पर शीत युद्ध के बाद विश्व का परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया तो इस नीति की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठने लगे. भारत भी कहीं न कहीं उत्तर शीत युद्ध काल में नेहरूवादी विदेश नीति को छोड़कर अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए विदेश नीतिओं को बनाने लगा.

प्रधानमंत्री का पिछले दो सम्मलेन में भाग नही लेने के बाद कोरोना संकट काल में 120 सदस्यों के इस गुटनिरपेक्ष सम्मलेन को संबोधित करना कई मायनों में महत्वपूर्ण है. पिछले दो महीने में मोदी ने सार्क, जी-20 तथा ब्रिक्स जैसे समूहों के साथ साथ कम से कम तीन दर्जन देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ बातचीत की है. जिस तरह से कोरोना महामारी से भारत ने अभी तक सामना किया है वैसे में विश्व के विकसित देशों के साथ साथ गुटनिरपेक्ष के विकाशसील देश भी भारत के नेतृत्व को सराह रहे हैं. बदलते हुए अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत इस तरह के बहुदेशीय संस्थाएं को अपने पक्ष में करके क्षेत्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है. प्रधानमंत्री मोदी की यह “डिजिटल डिप्लोमैसी” भारत की राजनीतिक, आर्थिक के साथ-साथ सामरिक हितों की भी प्रतिपूर्ति करेगा.

लेखक: बिनीत लाल, नालन्दा कॉलेज, नालन्दा में प्राध्यापक हैं एवं जेएनयू से पीएचडी किया है 

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular